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पाठकों के पत्र

04:00 AM Jun 13, 2025 IST
पाठकों के पत्र
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जीवों की चिंता
जंगली जानवर रहवासी बस्तियों के निकट इसलिए आते हैं क्योंकि उनके जंगलों में पानी, आहार और विचरण क्षेत्र की कमी हो रही है। जंगल के आसपास शोरगुल और छेड़छाड़ से उनका स्वभाव गुस्सैल हो जाता है, जिससे वे हमले कर सकते हैं। तेंदुए-बाघ जैसे जानवरों से संघर्ष में जान बचाने वालों को तात्कालिक सहायता बढ़ानी चाहिए। कुओं पर मुंडेर व जाली लगाकर दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी आवश्यक है। जंगल और जानवरों की देखभाल हम सबका कर्तव्य है।
संजय वर्मा, मनावर, धार, म.प्र.

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नैतिक चेतना का पतन
फरीदाबाद में एक पिता द्वारा अपने चार बच्चों संग आत्महत्या करना बेहद हृदयविदारक है। निजी तनाव और शक के चलते मासूमों की ज़िंदगी छीन लेना अमानवीय है। बच्चे न झगड़े समझते हैं, न रिश्तों की जटिलता। ऐसे कृत्य की परिणति ‘पारिवारिक विवाद’ नहीं, हत्या है। समाज को अब ऐसे मामलों को ‘पारिवारिक विवाद’ कहकर छोड़ना बंद करना होगा। यह हत्या और नैतिक चेतना का पतन है।
विक्रम बिजराणियां, सीडीएलयू, सिरसा

गर्मी का प्रकोप
बढ़ती गर्मी आज मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण, कृषि और जल संसाधनों के लिए गंभीर चुनौती बन चुकी है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों में लू का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। मौसम विभाग ने अलर्ट जारी करते हुए सावधानी बरतने की सलाह दी है। ऐसे समय में न सिर्फ स्वयं की, बल्कि पशु-पक्षियों की भी देखभाल करना हमारा नैतिक दायित्व बनता है।
दीपांशी सैनी, चौ. देवीलाल विवि, सिरसा

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संस्कृति के अनुरूप
ग्यारह जून के दैनिक ट्रिब्यून में डॉ. सुधीर कुमार का लेख ‘विश्वविद्यालयों में बदलाव की अर्थपूर्ण पहल’ पढ़कर अत्यंत सारगर्भित लगा। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुलपति के स्थान पर ‘कुलगुरु' शब्द का प्रयोग न केवल भारतीय संस्कृति के अनुरूप है, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा को भी सुदृढ़ करता है। यह बदलाव केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि दृष्टिकोण में भी बदलाव है।
शामलाल कौशल, रोहतक

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