पाठकों के पत्र
हिंसक प्रवृत्ति
दो जून के दैनिक ट्रिब्यून में ‘पढ़ने की उम्र में जुर्म’ संपादकीय में बच्चों में बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति के बारे में चर्चा की गई। कहां से सीखते हैं बच्चे ये सब? जाहिर बात है सोशल मीडिया, इंटरनेट और फिल्मों से। कहीं मां-बाप का बच्चों के साथ न बैठना, न बातें करना न उन्हें सुनना, उनका सही मार्गदर्शन न करना भी इन सब के लिए जिम्मेदार हैं। आज अगर बच्चों की इस गुस्सैल और हिंसक प्रवृत्ति को नहीं रोका गया तो भावी पीढ़ी में आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ती जाएगी।
अभिलाषा गुप्ता, मोहाली
जिम्मेदारी की दरकार
इन दिनों रील बनाना एक अजीबो-गरीब शौक के रूप में लोकप्रिय हो गया है। रचनात्मक, सामाजिक या धार्मिक विषयों पर बनाई गई रीलें सभी को पसंद आती हैं, लेकिन जब रीलों में नशा, हथियार या खतरनाक स्टंट दिखाए जाते हैं, तो वे समाज में गलत संदेश देती हैं और पुलिस की नजर में वे अपराधी बन जाते हैं। युवाओं को चाहिए कि वे जिम्मेदारी से रील बनाएं और अपनी जान को जोखिम में न डालें।
एमएम राजावत, न्यू रोड, शाजापुर
जागरूकता जरूरी
एक जून के दैनिक ट्रिब्यून में विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर कृष्ण प्रताप सिंह का प्रकाशित लेख विचारणीय था। तंबाकू का सेवन न केवल स्वयं के लिए, बल्कि दूसरों के लिए भी घातक है। इससे कैंसर व हृदय रोग होते हैं। चेतावनियों के बावजूद धूम्रपान बढ़ रहा है। सख्त कानून और जनजागरूकता से ही इस पर नियंत्रण संभव है।
शाम लाल कौशल, रोहतक
स्थिति स्पष्ट हो
एक जून के दैनिक ट्रिब्यून में ‘विमान गिरना अहम नहीं, क्यों गिरे यह महत्वपूर्ण’ शीर्षक से जनरल चौहान का बयान विचारणीय है। उन्होंने भारत-पाक युद्ध में हुए नुकसान की पुष्टि की। विपक्ष ने सरकार से पारदर्शिता की मांग की है। संसद का विशेष सत्र बुलाकर प्रधानमंत्री को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल