पाठकों के पत्र
आतंक का मुकाबला
तीन मई के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘वक्त की आवाज’ पहलगाम त्रासदी के बाद पाकिस्तान के खिलाफ गर्माये माहौल का वर्णन करने वाला था। शहीद नौसेना अधिकारी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की पत्नी ने उनके जन्मदिन पर रक्तदान शिविर लगाकर देश को संदेश दिया कि आतंकवादियों को तो उनके किए की सजा मिलनी चाहिए। कुछ राजनेता आतंकी घटनाओं का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करते हैं। आतंकवादियों को सजा तो मिले, परंतु गंगा- जमुनी संस्कृति के संरक्षण के साथ हमें आतंकवाद का डटकर मुकाबला करना है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
समता का संदेश
छह मई को ‘दैनिक ट्रिब्यून’ में प्रकाशित डॉ. रामजीलाल का लेख ‘समता व न्याय आधारित विकल्प के समक्ष चुनौतियां’ आज की पीढ़ी को जागरूक कर रहा है। लेखक, स्वयं एक शिक्षाविद् होने के नाते, भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन व विचारों से समाज को अवगत करवा रहे हैं। उनके द्वारा प्रेरणादायक लेख और शिक्षाएं समाज के मार्ग को आलोकित करती हैं। साथ ही, बाबा साहेब अंबेडकर के सपनों का भारत बनाने की दिशा में जो भी बाधाएं हैं, उन्हें दूर किया जाना चाहिए।
करमवीर लाठर, करनाल
निरंकुश ट्रोलिंग
डिजिटल युग में सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का प्रभावशाली मंच बन चुका है, लेकिन जब यह स्वतंत्रता किसी की गरिमा और मानसिक शांति को ठेस पहुंचाए, तो यह आलोचना नहीं, अपमान बन जाती है। ट्रोलर्स किसी भी मर्यादा का पालन नहीं करते। वे असहमति जताने के नाम पर अपशब्दों और व्यक्तिगत हमलों का सहारा लेते हैं, जो गंभीर चिंता का विषय है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ सामाजिक जिम्मेदारी और संवेदनशीलता बनाए रखना आज अत्यंत आवश्यक हो गया है।
विभूति बुपक्या, खाचरौद, म.प्र.