पाठकों के पत्र
सकारात्मक संदेश
हालिया पहलगाम आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सभी दलों द्वारा एकजुट होकर निंदा करना सकारात्मक संदेश है। यह केवल आतंकवाद के खिलाफ एक आवाज नहीं, बल्कि देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए दृढ़ संकल्प है। उमर अब्दुल्ला का बदली सोच की ओर इशारा करना भी दर्शाता है कि अब कश्मीर शांति और विकास चाहता है, न कि भ्रम और हिंसा।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम म.प्र.
बेलगाम ओटीटी प्लेटफॉर्म्स
आजकल कई शहरों में दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जिनका कारण इंटरनेट बेलगाम ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और अश्लील वेब साइट्स हैं, जिनसे युवा और अपरिपक्व मस्तिष्क प्रभावित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर चिंतित है। केंद्र सरकार को इन साइट्स और कंटेंट्स पर कड़े नियम लागू करने होंगे, जैसा कि यूट्यूब पर हुआ था। नहीं तो हमारी पवित्र संस्कृति और भावी पीढ़ियां संकट में पड़ जाएंगी।
भगवानदास छारिया, इंदौर, म.प्र.
युद्ध नहीं समाधान
एक मई के दैनिक ट्रिब्यून में क्षमा शर्मा के लेख ‘बड़ी कीमत चुकानी होती है युद्ध की’ में लेखिका ने पहलगाम आतंकी त्रासदी के बाद युद्ध की बजाय शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की है। उन्होंने रूस-यूक्रेन व इस्राइल-हमास युद्धों का हवाला देते हुए बताया कि युद्ध से आम जनता को ही सबसे ज्यादा नुकसान होता है। अतः सरकार को सोच-समझकर और विवेकपूर्ण कदम उठाने चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
समय सीमा हो जरूरी
दो मई के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित संपादकीय ‘जाति जनगणना’ पढ़ा। यह संतोष की बात है कि केंद्र सरकार ने विपक्ष की मांग के बावजूद अंततः जातिगत जनगणना स्वीकार की, लेकिन इसके लिए निश्चित समयसीमा घोषित की जानी चाहिए। अन्यथा यह भी महिला आरक्षण कानून की तरह वर्षों अधर में लटका रह सकता है।
डी.वी. अरोड़ा, फरीदाबाद