पाठकों के पत्र
अधिकारियों की अहमियत
तेईस अप्रैल के सम्पादकीय में गुरबचन जगत के लेख से प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली की अहमियत स्पष्ट हुई। अच्छे शासन हेतु ईमानदार अधिकारियों की आवश्यकता होती है। भारत के इतिहास में जहांगीर भाभा, डॉ. एमएस रंधावा, सैम मानेकशॉ जैसे अधिकारी प्रेरणा स्रोत हैं। पंजाब में संस्थागत विकास में अफसरशाही की भूमिका सराहनीय रही। इन अधिकारियों ने कार्य में जवाबदेही, निगरानी और जन सरोकारों का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिससे शासन व्यवस्था सुदृढ़ हुई।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़, रेवाड़ी
निष्पक्षता पर सवाल
राहुल गांधी द्वारा विदेश में भारत के चुनाव आयोग पर की गई टिप्पणी न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि संवैधानिक संस्था की साख पर सीधा हमला है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाना लोकतंत्र को कमजोर करता है। देश के आंतरिक मुद्दों को वैश्विक मंच पर उठाना भारत की छवि को नुकसान पहुंचाता है। राजनीतिक आलोचना होनी चाहिए, लेकिन जिम्मेदारी के साथ। संस्थाओं पर अविश्वास जताना लोकतंत्र के लिए खतरा है।
सुभाष बुड़ावनवाला, रतलाम, म.प्र.
संवैधानिक मर्यादा
बाईस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित संपादकीय ‘अनुचित और अमर्यादित’ में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ व कुछ भाजपा नेताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर की गई टिप्पणियों की चर्चा की गई है। संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार प्राप्त हैं। कार्यपालिका, न्यायपालिका को आदेश नहीं दे सकती, लेकिन न्यायपालिका असंवैधानिक कानून को निरस्त कर सकती है। यह विवाद संविधानिक मर्यादाओं की अनदेखी को दर्शाता है। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को ऐसी बयानबाजी से परहेज करना ही चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक