पाठकों के पत्र
मर्यादा का टूटना दुर्भाग्यपूर्ण
जहां चरित्र गढ़े जाते हैं, वहां मर्यादा टूटे तो पूरी व्यवस्था पर सवाल उठता है। जेएनयू में एक जापानी शोधार्थी द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों ने सबको स्तब्ध किया। विदेशी छात्रा ने महीनों उत्पीड़न सहने के बाद जापान लौटकर शिकायत की। प्रशासन ने त्वरित जांच शुरू की, और आरोप सिद्ध होने पर दोषी प्रोफेसर को बर्खास्त कर दिया। यह कदम न्याय और कठोर कार्रवाई का प्रतीक है। शिक्षा संस्थानों को ज्ञान के साथ-साथ सुरक्षा, सम्मान और नैतिकता का केंद्र होना चाहिए। शिक्षकों को आदर्श बनना होगा, वरना उनके लिए कोई स्थान नहीं।
आरके जैन, बड़वानी, म.प्र.
विदेशी शिक्षा से मोहभंग
दैनिक ट्रिब्यून के 18 अप्रैल के सम्पादकीय ‘परदेस से मोहभंग’ में विदेशों में पढ़ाई के प्रति घटती रुचि का उल्लेख किया गया है। छात्रों में विदेशी डिग्री के प्रति आकर्षण अब कम हो रहा है क्योंकि अत्यधिक खर्च के बावजूद नौकरी या स्थायी निवास की गारंटी नहीं होती। नस्लीय हमले, उन देशों की नीति और भारत-विरोधी रुख ने भी मोहभंग किया है। भारत को चाहिए कि वह प्रतिभाशाली युवाओं को देश में ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व अवसर देकर उनका भविष्य संवारने का वातावरण बनाए।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़, रेवाड़ी
कैदियों की पीड़ा
उन्नीस अप्रैल के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘जंजाल की जेलें’ भारतीय जेलों की अमानवीय परिस्थितियों पर व्यथा प्रकट करने वाला था। जेलों में कैदियों की संख्या क्षमता से कहीं अधिक है। वहीं चिकित्सा और स्टाफ की भारी कमी है। विचाराधीन कैदी वर्षों से बिना सुनवाई के बंद हैं, जो न्यायिक अन्याय है। सुप्रीम कोर्ट के सुझावों की अनदेखी हो रही है। जेल सुधार के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति जरूरी है। कैदियों को संवेदनशीलता के साथ देखना होगा और फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा शीघ्र सुनवाई और न्याय सुनिश्चित करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक