पाठकों के पत्र
गैर-जरूरी आलोचना
खेल तो खेल होता है। उनका मकसद सिर्फ शिद्दत से खेलना और भाईचारे का वातावरण बनाना होता है। यह ही खेल की असली खूबसूरती है। लेकिन, खिलाड़ी अब राजनीति और धर्म के चश्मे से देखे जा रहे हैं। चैंपियंस ट्रॉफी में विराट कोहली ने पाकिस्तानी खिलाड़ी के जूते के फीते बांधकर एक सुंदर उदाहरण पेश किया, जिसे आलोचना का सामना करना पड़ा। यह दृश्य गलत नहीं था, बल्कि सौहार्दपूर्ण था। खिलाड़ियों को इस प्रकार की आलोचनाओं से बचना चाहिए।
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन
सुधार की आवश्यकता
पांच मार्च के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय ‘बदहाली की शिक्षा’ में हरियाणा में शिक्षा व्यवस्था की गंभीर स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई है। प्रदेश में 487 सरकारी प्राथमिक स्कूलों में अध्यापक नहीं हैं, और 293 स्कूलों में कोई छात्र नामांकित नहीं है। शिक्षकों की कमी और शिक्षा विभाग में खाली पद समस्या को बढ़ा रहे हैं। सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता निजी स्कूलों से कम है, और ग्रामीण इलाकों में अभिभावकों की अज्ञानता भी समस्या को बढ़ा रही है। इसके साथ ही उन कारणों की भी पड़ताल होनी चाहिए जिनकी वजह से छात्रों का सरकारी स्कूलों में प्रदर्शन निराशाजनक बना हुआ है। शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
बसपा में उठापटक
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बहुजन समाज पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में ताबड़तोड़ बदलाव करके राजनीतिक हलचल मचा दी है। भतीजे आकाश आनंद को पार्टी से निष्कासित करने और पूर्व राज्यसभा सांसद अशोक सिद्धार्थ को अनुशासनहीनता के कारण बाहर करने से यह साफ है कि पार्टी में संकट गहरा गया है। इस उठापटक से उत्तर प्रदेश की राजनीति और दलित अस्मिता आंदोलन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, जिससे बहुजन आंदोलन को भी बड़ा नुकसान होगा।
वीरेंद्र कुमार जाटव, दिल्ली