पाठकों के पत्र
सेहत का मूलमंत्र
सत्ताईस फ़रवरी के संपादकीय में त्योहारों के अध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक पक्षों को बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह लेख हमारे पूर्वजों की जीवन शैली से प्रेरणा लेने और संतुलित जीवन जीने की सीख देता है। भारतीय पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक कल्याण के माध्यम भी होते हैं। भारतीय संस्कृति में संतुलित जीवन जीने की जो परंपरा है, उसे बनाए रखना ही सच्ची सेहत और खुशहाली का मूलमंत्र है। इसलिए, हमें अपने पूर्वजों की परंपराओं का पालन करते हुए शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने पर ध्यान देना चाहिए।
डॉ. मधुसूदन शर्मा, रुड़की, हरिद्वार
संकट में नैसर्गिक अस्मिता
पच्चीस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में पंकज चतुर्वेदी के लेख में कश्मीर में कम बर्फबारी और बारिश के कारण मौसम में बदलाव का प्रभाव कश्मीर की नैसर्गिक अस्मिता पर पड़ता दिखाया गया। जनवरी में 81 प्रतिशत कम बारिश और अनुकूल मौसम के अभाव में स्थानीय फल जैसे आलूबुखारा, सेब, खुमानी की पैदावार कमजोर हो रही हैं। झेलम नदी की धार कमजोर होने से जल संकट बढ़ने की संभावना है। सरकार, प्रशासन और स्थानीय लोगों को जल संरक्षण, वनीकरण और जलवायु अनुकूलन की दिशा में कदम उठाने होंगे।
जय भगवान भारद्वाज, नाहड़, रेवाड़ी
साइबर सुरक्षा जागरूकता
म्यांमार के साइबर अड्डे से 70 भारतीयों को छुड़ाया गया, जिन्हें बंधक बनाकर ऑनलाइन अपराध को अंजाम दिया जा रहा था। यह पहली बार नहीं है, पहले भी कई लोग छुड़ाए जा चुके हैं। जब तक अपराधियों के नेटवर्क को पूरी तरह नष्ट नहीं किया जाता, यह अवैध गतिविधि जारी रहेगी। सरकार को म्यांमार से बातचीत कर इस गिरोह को खत्म करना होगा और सभी भारतीयों को सुरक्षित लाना होगा। साथ ही, साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलानी होगी और सख्त कानून बनाना होगा।
विभूति बुपक्या, खाचरौद, म.प्र.