पाठकों के पत्र
संस्कारहीनता का दानव
हरियाणा के कैथल की हृदयविदारक घटना, जहां पुत्र ने पिता को आग के हवाले कर दिया, यह दर्शाती है कि संस्कारहीनता व्यक्ति को दानव बना सकती है। परिवार पहला विद्यालय है, जहां नैतिकता व अनुशासन सिखाए जाएं तो संतान सुसंस्कृत बनती है। कुसंगति व नशा समाज के पतन के कारण हैं, अतः माता-पिता को संवाद व मार्गदर्शन देना होगा। शिक्षा केवल ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण का अस्त्र है। संस्कार, अनुशासन व दृढ़ शिक्षा से ही उन्नत समाज की नींव रखी जा सकती है।
आरके जैन, बड़वानी, म.प्र.
दिल्ली की नई उम्मीदें
इक्कीस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून का संपादकीय ‘रेखा के हवाले दिल्ली’ रेखा गुप्ता का भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री बनने का वर्णन करने वाला था। उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा शीर्ष नेताओं ने महिला वर्ग को खुश करने की कोशिश की है। भाजपा, केजरीवाल सरकार को जिन मामलों को लेकर कटघरे में खड़ा करती रही है, रेखा को उन्हीं समस्याओं को हल करना होगा। यमुना की सफाई, प्रदूषण की समस्या, सड़क निर्माण तथा मरम्मत, पीने का स्वच्छ पानी, कूड़े के पहाड़ों की सफाई, यातायात की समस्या, भ्रष्टाचार उन्मूलन, जनहित में किए चुनावी वादे पूरे करने से मुख्यमंत्री पद की गरिमा बढ़ेगी।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
बचपन पर भारी
उन्नीस फरवरी के दैनिक ट्रिब्यून में संपादकीय ‘बचपन पर भारी स्मार्टफोन’ थोड़े शब्दों में काफी कुछ कह गया। स्मार्टफोन बच्चों के लिए न केवल उपयोगी बल्कि बहुउपयोगी हैं, खासकर पढ़ाई के लिए। हालांकि, स्मार्टफोन में अश्लील सामग्री, गलत जानकारियां और विज्ञापन बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ‘बचपन पर भारी स्मार्टफोन’ में यह कहा गया है कि बच्चों को स्मार्टफोन केवल पालकों और शिक्षकों के मार्गदर्शन में सीमित उपयोग के लिए दिया जाए। बोहरा समाज और विदेशों में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए स्मार्टफोन प्रतिबंधित हैं। भारत में भी इस दिशा में ठोस प्रयास किए जाने चाहिए।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन