For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

पाठकों के पत्र

04:00 AM Jan 25, 2025 IST
पाठकों के पत्र
Hand Holding Pen
Advertisement

कुप्रथा को बदलें
चौबीस जनवरी के संपादकीय ‘मुफ्त का चन्दन’ में चुनावों में मुफ्त की रेवड़ियां बांटने पर जो चिंता जाहिर की गई है, वह वाज़िब ही है। यह नीति लोगों को अकर्मण्य बनाकर मेहनत और स्वाभिमान को कमजोर करती है। मुफ्त की संस्कृति न केवल राजकोष पर भार डालती है, बल्कि यह दीर्घकालिक विकास के स्थान पर तात्कालिक लाभ को बढ़ावा देती है। इससे जनता के बीच निर्भरता की मानसिकता बढ़ती है। लोकतंत्र में नेताओं का कर्तव्य है कि वे नागरिकों को सशक्त बनाएं, न कि मुफ्त योजनाओं के माध्यम से उनका वोट हासिल करें। समय आ गया है कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाकर विकास और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी जाए।
डॉ. मधुसूदन शर्मा, रुड़की

Advertisement

एक नई उम्मीद
इक्कीस जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय 'खो खो के सरताज' में भारत की पुरुष और महिला खो-खो टीमों के विश्व चैंपियन बनने पर खुशी व्यक्त की गई है। आज जबकि क्रिकेट और बैडमिंटन जैसे बाजारवादी खेलों का बोलबाला है, सलमान खान का खो-खो का एंबेसडर बनना सराहनीय है। बावजूद इसके, इन टीमों को अन्य खेलों की तरह सम्मानित न किया जाना खेदजनक है। खो-खो को एशियाड और ओलंपिक में शामिल करने के प्रयासों की आवश्यकता है।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

सात्विक हो आयोजन
हिंदू, सनातनी और अन्य समाज, जो विवाह और शुभ कार्यों में भगवान को साक्षी मानते हैं, क्या वे इस बात पर विचार करते हैं कि इन आयोजनों में मांस और शराब शामिल होती है? क्या भगवान ऐसे कार्यों में आशीर्वाद देंगे? उनका मानना है कि भगवान को निमंत्रण देने का अर्थ यह नहीं कि हम उनके सामने ऐसे कर्म रखें जो उनके सिद्धांतों के खिलाफ हों। यदि हम भगवान के आशीर्वाद की कामना करते हैं, तो हमें अपने आयोजनों को उनके सम्मान के अनुसार आयोजित करना चाहिए।
लक्ष्मीकांता चावला, अमृतसर

Advertisement

Advertisement
Advertisement