पहले जैसा क्रेज नहीं रहा हीरोइनों का
बॉलीवुड में हीरोइनों का स्वर्णकाल ’50 से ’90 के दशक तक माना जाता है। इस दौरान एक के बाद एक लोकप्रिय तारिकाएं आती-जाती रहीं। हिंदी फिल्मों में हीरोइनों का अलग ही आकर्षण था। दर्शक इस चार्म के चलते भी फिल्म देखने जाते थे। लेकिन अब वह क्रेज नहीं। दीपिका पादुकोण इस शीर्षकाल की अंतिम कड़ी मानी जाती हैं।
असीम चक्रवर्ती
शुरुआती दौर की लोकप्रिय तारिकाओं सुरैया,निम्मी,मधुबाला से लेकर माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय तक बॉलीवुड में कभी अच्छी हीरोइनों की कमी नहीं रही। मगर कुछ आलोचकों के मुताबिक दीपिका पादुकोण के बाद से इसमें बड़ा ठहराव आ गया। कोई भी हीरोइन आकर बॉलीवुड में बड़ा योगदान नहीं दे पा रही है।
कई दशक का स्वर्णकाल
बॉलीवुड में हीरोइनों का स्वर्णकाल ’50 से ’90 के दशक तक माना जाता है। इस दौरान सुरैया से लेकर निम्मी,मधुबाला,नर्गिस,मीना कुमारी, वैजयंतीमाला, माला सिन्हा,पद्मिनी,वहीदा रहमान, हेमा मालिनी, रेखा,जीनत अमान,परवीन बॉबी, फिर माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय, श्रीदेवी, पूनम ढिल्लों, जूही चावला, मनीषा कोइराला, रवीना टंडन आदि तारिकाओं की वजह से बॉलीवुड में हमेशा रौनक रही है। हिंदी और दक्षिण की फिल्मों के जानकार राजगोपाल नांबियार कहते हैं,‘ धीरे-धीरे ही सही, 1990 से बॉलीवुड की रौनक गायब हो रही है। जबकि हिंदी फिल्मों में कभी हीरोइनों का अलग ही आकर्षण होता था। दर्शक इसी चार्म के चलते थियेटर के चक्कर मारते थे।’
किसको भुलाएं, किसे याद रखें
इसी चार्म का नतीजा है कि स्वर्णकाल के हर दौर में तीन-चार हीरोइनों का सम्मोहन रहा। सुरैया,निम्मी,मधुबाला आदि के साथ ही कामिनी कौशल,नर्गिस आदि तारिकाओं का भी जुदा जलवा होता था। जहां सुरैया के रूप लावण्य की बढ़-चढ़कर चर्चा होती थी। वहीं मधुबाला की खूबसूरती सभी को मोहित करती थी। नर्गिस से लेकर कामिनी कौशल तक कई हीरोइन के सौंदर्य का अलग-अलग मोहपाश था। उस दौर में इनकी हर गतिविधि में दर्शकों की रुचि होती थी। याद कीजिए सुरैया-देव की चर्चित प्रेम कहानी। इन दोनों के विवाह की प्रार्थना की जाती थी। हालांकि ताउम्र सुरैया ने विवाह नहीं किया। ऐसे किस्से हर हीरोइन की निजी जिंदगी का हिस्सा होते थे। मगर फैन इसे निजी नहीं रहने देते थे।
तिलिस्म का दबदबा
उस समय ज्यादातर हीरोइनों का अपना तिलिस्म होता था। कई चोटी की तारिकाएं तो अपनी शर्तों पर फिल्मों में काम करती थी। उन्हें हीरो से ज्यादा तवज्जो मिलती थी। सुरैया, मधुबाला, नर्गिस, मीना कुमारी, वैजयंतीमाला, माला सिन्हा आदि हीरो के बराबर फीस लेती थी। यह सब वे अपनी करिश्माई प्रेजेंटेशन से अर्जित करती थीं। इनका अपना-अपना फैन बेस होता था। यह वह दौर था,जब कुछ तारिकाओं की एक झलक देखने के लिए दर्शक बेताब हो जाते थे। आज वैसा क्रेज न के बराबर अभिनेत्रियों को नसीब होता है।
दीपिका के बाद कौन
फिलहाल दीपिका पादुकोण को तारिकाओं के इस शीर्षकाल की अंतिम कड़ी माना जाता है। हालांकि कई आलोचक दीपिका को इस तुलना में बहुत पीछे मानते हैं। इसके बावजूद दीपिका की प्रस्तुति का अपना एक अंदाज था और उसका सम्मोहन आज तक है। मगर वक्त की शाख पर पत्ते तो सूखते ही हैं। उनकी जगह आलिया भट्ट ने ली थी। पर उनका क्रेज कुछ खास नहीं चला। परिवार में व्यस्त आलिया की स्थिति लगभग दीपिका जैसी हो गई। इसके बाद से तारिकाओं के बीच यह दौड़ शुरू हो चुकी है। कृति सैनन,कियारा आडवाणी जैसी कुछ हीरोइनें इसकी दावेदार भी बनती हैं,पर यह असर जल्दी खत्म हो जाता है।
याद नहीं रहती नई तारिकाएं
वाणी कपूर, तापसी पन्नू,कियारा आडवाणी,कृति सैनन,अनन्या पांडे, तृप्ति डिमरी, सारा अली खान,रश्मिका, जाह्नवी कपूर आदि का बॉलीवुड में आना-जाना जारी है। पर इनमें से किसी तारिका में इतना दमखम नहीं कि अपना लोहा मनवा सके। बीच में कृति और कियारा ने बहुत संभावनाएं जगाई थी। पर फिलहाल वे भी सिर्फ काम कर रही हैं।
बोल्डनेस का प्रहार
असल में ज्यादातर हीरोइनें बोल्डनेस के भरोसे रहती हैं। इस चक्कर में वे अपने आपको बहुत एक्सपोज कर देती हैं। इसमें उनकी सौम्यता और सादगी को बड़ा झटका लगता है। दर्शक अपनी पसंदीदा हीरोइन को अपने मन के विरुद्ध देखना नहीं चाहते।
इंडोर्समेंट का प्रभाव
तारिकाओं में यह बेफ्रिकी इंडोर्समेंट की शक्ति से आती है। जरा सी लोकप्रियता मिलते ही इंडोर्समेंट के आफर मिलने लगते हैं। अक्सर उनके बड़े इंडोर्समेंट का पारिश्रमिक किसी फिल्म के बराबर होता है। टीवी शो या छोटे-मोटे इवेंट के इंडोर्समेंट तो मिलते ही रहते हैं। अब कियारा आडवाणी का उदाहरण ही लें, उनके पास इतने ज्यादा इडोर्समेंट हैं कि वह चाह कर भी फिल्में बहुत कम कर पाती हैं।
आखिर कमी कहां
असल में यह कमी इनकी संजीदगी में होती है। जबकि एक्टिंग हमेशा समर्पण की मांग करती है। यह पाठ वे पुराने दौर की हीरोइनों से सीख सकती हैं। पर नया सीखने या चैलेंजिंग रोल करने में इनकी खास दिलचस्पी नहीं होती है। बस अतिरिक्त कमाई को तरजीह देती हैं। इसी चूक के चलते वे धीरे-धीरे लाइम लाइट से हट जाती हैं।