For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

पश्चिमी घाट की जैव विविधता का अनमोल रत्न

04:05 AM Feb 14, 2025 IST
पश्चिमी घाट की जैव विविधता का अनमोल रत्न
Advertisement

पर्पल मेढक पश्चिमी घाट का एक अद्वितीय और रहस्यमयी जीव है, जो अपनी भूमिगत जीवनशैली और शारीरिक विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। इस प्रजाति का संरक्षण हमारे जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।

Advertisement

निधि चौहान

भारत का पश्चिमी घाट जैव विविधता का एक अनोखा केन्द्र माना जाता है। इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है। इस क्षेत्र में हजारों दुर्लभ और स्थानिक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से कई प्रजातियां अभी भी वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बनी हुई है। इनमें से एक विशेष प्रजाति है पर्पल मेढक, जो अपनी अनोखी शारीरिक विशेषताओं, भूमिगत जीवन शैली और विकासात्मक महत्व के कारण जीवविज्ञानियों और शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित कर रही है।
हालांकि, पर्पल मेढक की खोज विज्ञान के लिए अपेक्षाकृत नई है, लेकिन यह प्रजाति लाखों वर्षों से पश्चिमी घाट की गहरी मिट्टी के भीतर मौजूद है। इसकी अजीबोगरीब आकृति और रहस्यमयी जीवनशैली ने इसे जीववैज्ञानिकों के लिए एक अनूठी पहेली बना दिया है।
खोज और वर्गीकरण
पर्पल मेढक की खोज विज्ञान के क्षेत्र में वर्ष 2003 में हुई। हालांकि यह जीव स्थानीय समुदायों के लिए सदियों से परिचित था। इसका वैज्ञानिक नाम नासिकाबत्राचुस सह्याद्रेंसिस है, जो इसे पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वतमाला से जोड़ता है। इसे विशिष्टता प्रदान करने वाली बात यह है कि यह मेढकों के एक प्राचीन समूह से संबंधित है, जिनका विकास लगभग 130 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ था।
अनूठी शारीरिक संरचना
पर्पल मेढक का रंग गहरा बैंगनी होता है, इसके शरीर की आकृति गोलाकार और चपटी होती है। इसकी थूथन लम्बी और नुकीली होती है, जो इसे अन्य मेढकों से भिन्न बनाती है। इसके छोटे और मजबूत पैर इसे मिट्टी में खुदाई करने में सहायता करते हैं। इस जीव की आंखें अपेक्षाकृत छोटी होती हैं, जो यह दिखाती हैं कि यह ज्यादातर भूमिगत जीवन ही व्यतीत करता है।
रहस्यमयी जीवनशैली
पर्पल मेढक का जीवन अत्यधिक गोपनीय होता है। यह अपना अधिकांश समय मिट्टी के अंदर बिताता है और केवल प्रजनन के मौसम में, खासतौर पर मानसून के दौरान, बाहर आता है। यह मेढक मुख्य रूप से दीमक (टर्माइट्स) पर निर्भर रहता है, जिसे यह अपनी लंबी और चिपचिपी जीभ की सहायता से पकड़ता है।
अनोखा प्रजनन और जीवन चक्र
इस मेढक का प्रजनन एक अनोखी प्रक्रिया है। मानसून के समय, नर और मादा जल स्रोतों के पास मिलते हैं और मादा पानी में अंडे देती है। कुछ दिनों के भीतर, इन अंडों से टैडपोल (मेढक के बच्चे) निकलते हैं, जो धाराओं और नालों में रहते हैं। ये टैडपोल आकार में बड़े होते हैं और उनकी विशेषता यह होती है कि उनके मुंह में विशेष प्रकार की संरचना पाई जाती है, जिससे वे पानी में चट्टानों पर चिपके रहते हैं।
वैज्ञानिक महत्व
पर्पल मेढक का विकासवादी महत्व बहुत अधिक है क्योंकि यह उन मेढकों के समूह से संबंधित है जो डायनासोर के युग में विकसित हुए थे। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह जीव गोंडवाना लैंड से विकसित हुआ है और इसके वर्तमान अस्तित्व से महाद्वीपीय प्रवाह को समझने में सहायता मिलती है।
अस्तित्व को खतरा
हालांकि, पर्पल मेढक को एक नया खोजा गया जीव माना जाता है, लेकिन इसका अस्तित्व खतरे में है। इसके निवास स्थान यानी पश्चिमी घाट के जंगलों का तेजी से कटाव, जल स्रोतों का सूखना और मानवजनित गतिविधियां इसके अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर ने इसे लुप्तप्राय श्रेणी में रखा है।
संरक्षण के प्रयास
पर्पल मेढक के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। भारत सरकार और कई पर्यावरण संगठन इसके प्राकृतिक आवास को संरक्षित करने के लिए प्रयासरत हैं। पश्चिमी घाट में संरक्षित वन क्षेत्रों का विस्तार और जल स्रोतों का संरक्षण इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों को इस मेढक के महत्व के बारे में जागरूक किया जा रहा है, ताकि वे इसके संरक्षण में सहयोग दें।
पर्पल मेढक पश्चिमी घाट की जैव विविधता का एक अनमोल रत्न है। इसकी अनूठी विशेषताएं और भूमिगत जीवनशैली इसे एक रहस्यमयी जीव बनाती हैं। हालांकि, इसका अस्तित्व खतरे में है, लेकिन संरक्षण प्रयासों से इसे बचाया जा सकता है। यदि हम इस दुर्लभ जीव को संरक्षित करने में सफल होते हैं, तो यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होगा।
चित्र साभार : कार्तिकबाला (विकिमीडिया कॉमन्स)

Advertisement

Advertisement
Advertisement