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पर्यावरण अनुकूल पर्यटन

04:00 AM Jun 11, 2025 IST
पर्यावरण अनुकूल पर्यटन
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इसमें दो राय नहीं कि देश के पहाड़ी राज्यों के लिये पर्यटन उद्योग अब अर्थव्यवस्था को गति देने का एक सशक्त माध्यम बन गया है। कह सकते हैं तमाम पारिस्थितिकीय चुनौतियों के चलते एक मजबूरी भी बन गया है। लेकिन इसमें दो राय नहीं है कि राजस्व सृजन और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने के लिये, राज्य सरकारें एक कठिन राह पर चलना सीख रही हैं। दरअसल, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील और संरक्षित क्षेत्रों में यह चुनौती ज्यादा बड़ी है। यही वजह है कि हिमाचल प्रदेश के संवेदनशील स्पीति के इलाके में प्रदेश के वन विभाग ने आने वाले पर्यटकों के लिए दैनिक आधार पर उपयोगकर्ता शुल्क आरंभ करने का निर्णय किया है। निश्चित रूप से हिमाचल सरकार की इस अभिनव पहल का स्वागत ही किया जाना चाहिए। निस्संदेह, इस फैसले के बाद अब बिना किसी प्रवेश शुल्क के इन इलाकों में पहुंचना अतीत की बात हो जाएगी। इतना ही नहीं शूटिंग के लिये, मसलन वृत्तचित्र, फीचर फिल्मों व विज्ञापन आदि के साथ ही टेंट लगाने जैसी गतिविधियों के लिये भी शुल्क संरचना तैयार की गई है। यह एक हकीकत है कि पर्यटकों का अराजक व्यवहार वातावरण में न केवल पर्यावरणीय प्रदूषण फैलाता है बल्कि ठोस कचरा भी छोड़कर जाता है। जिसकी क्षति व सफाई का दबाव राज्य पर पड़ता है। निस्संदेह, सरकार की नई पहल का उद्देश्य आदिवासी जिले लाहौल और स्पीति में पर्यटन के कार्बन फुटप्रिंट को कम करना है। इसके अलावा हिमाचल उच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में आगंतुकों के लिये सुविधाओं का विस्तार करना भी है। दरअसल, राज्य सरकार सीमावर्ती इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा दे रही है और प्रोटोकॉल में संशोधन करके यात्रियों की पहुंच को आसान बना रही है। ऐसी ही एक पहल मंगलवार को किन्नौर जिले के शिपकी-ला में मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू ने शुरू की। दरअसल, इन क्षेत्रों के सामरिक महत्व को देखते हुए राज्य के अधिकारी सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के साथ समन्वय बनाकर काम कर रहे हैं।
निश्चित रूप से हिमाचल प्रदेश सरकार की यह पहल स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिये, खासकर दूरदराज के गांवों के लिये अच्छा संकेत है। जब ग्रामीणों का जन-जीवन बाहर से आने वाले पर्यटकों की गतिविधियों से प्रभावित होता है तो उन्हें पर्यटन से होने वाले लाभ भी मिलने चाहिए। वहीं पर्यटकों की सुरक्षा का भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पहलगाम आतंकी हमले ने हमें कई सबक दिए हैं। सबक याद दिलाए हैं कि यदि पर्यटकों की सुरक्षा दांव पर हो तो लापरवाही व चूक के लिये कोई जगह नहीं हो सकती। कश्मीर का हालिया अनुभव बताता है कि जब पर्यटक असुरक्षित महसूस करते हैं तो पर्यटन उद्योग को उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर जाने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आ रही है। ऐसे में पर्यटक जम्मू-कश्मीर के विकल्प के रूप में हिमाचल की ओर रुख कर सकते हैं। जिससे हिमाचल के पर्यटन उद्योग को नई प्राण वायु मिल सकती है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिये हर संभव प्रयास करना होगा कि नियमित पर्यटन से हिमाचल को न केवल वर्तमान में बल्कि दीर्घकालिक लाभ भी प्राप्त हों। वहीं राज्य सरकार को ध्यान रखना होगा कि बढ़ती पर्यटन गतिविधियों से क्षेत्र की जन-जातियों की संस्कृति और जीवनचर्या में प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। इसके लिये यह भी जरूरी है कि पर्यटन से होने वाली आय से इन क्षेत्रों के विकास को भी गति मिले। जिससे स्थानीय लोग पर्यटन गतिविधियों में उत्साह से भाग लें। ऐसा न हो कि अराजक पर्यटन संस्कृति स्थानीय लोगों की अस्मिता को ठेस पहुंचाए। रीति-नीतियां ऐसी बनें कि राज्य की आर्थिकी को गति मिलने का लाभ स्थानीय लोगों के हिस्से में भी आए ताकि वे पर्यटकों का खुशी-खुशी स्वागत करें। सरकार को भी पर्यटकों की सुविधाओं, सुरक्षा और आवागमन का विशेष ख्याल रखना होगा। इससे राज्य के पर्यटन उद्योग को दीर्घकालीन लाभ मिल सकेगा। उत्तराखंड व अन्य पर्वतीय राज्यों को भी हिमाचल की पहल का अनुकरण करना चाहिए।

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