परमाणु बम का हौवा बरकरार रहने की आशंका
हाल ही में भारत-पाकिस्तान टकराव के दौरान उभरे हालात के मद्देनजर भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणु युद्ध के खतरे को हलके में लेना दुस्साहस ही कहा जाएगा। पाकिस्तान की परमाणु धमकी जगजाहिर है। वहीं भारत का नया दावा भी अहम है कि वह परमाणु ब्लैकमेल बर्दाश्त नहीं करेगा। दरअसल, बड़ा खतरा पूर्ण युद्ध का है।
मनोज जोशी
शेक्सपियर के मशहूर नाटक मैकबेथ के चरित्र बैंको के भूत की तरह, परमाणु हथियारों का साया हाल के दशकों में भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षों पर रह-रहकर मंडराता रहा है। नकारने के बावजूद, ऑपरेशन सिंदूर पर भी यह मंडराता रहा।
पिछले इतिहास को देखने पर, वास्तविक परमाणु युद्ध का जोखिम हालांकि बहुत कम, लगभग नगण्य लगता रहा है। लेकिन जिस प्रकार की घटनाएं सामने आई हैं, कई राहें दिखाई देनी लगी हैं,जो भयावह अंजाम की ओर ले जा सकती हैं। इन संभावनाओं की गंभीरता ने ही अमेरिका को इस युद्ध से दूरी बनाए रखने के अपने पहले रुख को तजकर, त्वरित सक्रिय कूटनीतिक प्रयास करने और दोनों पक्षों के बीच युद्ध विराम करवाने में मदद करने को सक्रिय किया। भारत का कहना है कि यह युद्ध विराम द्विपक्षीय रहा, लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि यह ‘अंकल सैम’ (ट्रंप) की मध्यस्थता से बना है, जो अब हमें इसके बारे में बार-बार याद दिलाते नहीं थक रहे।
बीती 12 मई को कतर की अपनी यात्रा की पूर्व संध्या पर व्हाइट हाउस में बोलते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा : ‘मेरे प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्ण और तत्काल युद्धविराम करवाने में मदद की, मुझे लगता है यह स्थायी होगा, इस तरह बड़ी संख्या में परमाणु हथियारों से लैस इन दो मुल्कों के बीच खतरनाक संघर्ष समाप्त हो गया’। इससे एक दिन पहले, उन्होंने ‘मौजूदा आक्रामकता’ को खत्म करने के लिए भारतीय और पाकिस्तानी नेतृत्व की प्रशंसा की थी और कहा कि ‘लाखों भले और निर्दोष लोग अन्यथा मारे जाते’।
टकराव बनने से पहले ही, पाकिस्तान ने परमाणु घुड़की देनी शुरू कर दी थी। भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी एक बयान में कहा गया कि पानी को रोकने या मोड़ने के किसी भी प्रयास को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा और इसका जवाब राष्ट्रीय शक्ति और उपलब्ध तमाम संसाधन का उपयोग करके दिया जाएगा’। यहां पर ‘तमाम संसाधन’ का अभिप्राय स्पष्ट रूप से परमाणु हथियार था। फिर, जैसे-जैसे संकट बढ़ता गया, पाकिस्तान और ज्यादा परमाणु घुड़कियां देने लगा। बता दें कि 10 मई को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण की बैठक बुलाई, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के अलावा परमाणु हथियारों से संबंधित मामलों पर निर्णय लेने वाली शीर्ष संस्था है। बाद में पाकिस्तान आसानी से इससे मुकर गया।
परमाणु हथियारों से संबंधित घटनाक्रमों को लेकर बहुत सी भ्रामक सूचनाएं फैलीं। ऐसी ही एक खबर में बताया गया कि किराना हिल्स पर भारतीय हमले के तुरंत बाद, जहां कथित तौर पर कुछ पाकिस्तानी परमाणु हथियार रखे हुए हैं, एक बीचक्राफ्ट सुपर किंग एयर 350 विमान सरगोधा में उतरा है - जो कथित तौर पर अमेरिकी ऊर्जा विभाग का है। बाद में पता चला कि यह विमान सच में पहले अमेरिकी एजेंसी का था, जिसे पाकिस्तान ने 2010 में खरीद लिया था और इसकी उपस्थिति का परमाणु एंगल से कुछ लेना-देना नहीं था।
भारत ने इस बात से इनकार किया कि उसने सरगोधा के नज़दीक मुशाफ एयरबेस से लगभग 15 किमी. दूर स्थित किराना हिल्स पर कोई हमला किया है। लेकिन हां, किराना हिल्स के मुहाने पर स्थित दो सैन्य ठिकानों पर भारतीय हमले के सबूत अवश्य हैं। यहां स्पष्ट करना होगा कि रावलपिंडी के पास नूर खान वायुसेेना अड्डा, कराची के पास मलीर और किराना हिल्स पर भारतीय हमलों का मकसद कुछ ऐसा ही संदेश देना था। क्योंकि इन जगहों पर या इनके आसपास ही कहीं पाकिस्तान के परमाणु हथियार रखे होने के कयास हैं।
यह 12 मई को और भी स्पष्ट हो गया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि ‘भारत परमाणु ब्लैकमेल बर्दाश्त नहीं करेगा और परमाणु ब्लैकमेल की आड़ में पनप रहे आतंकी ठिकानों पर भारत सटीक और निर्णायक हमला करेगा’।
यह एक नया सैद्धांतिक रुख है, क्योंकि पिछले 40 वर्षों में भारत ने सीमा पार से चलाए जा रहे आतंकवाद का सामना किया है, यह परमाणु कारक ही था जिसने भारत के हाथ बांध रखे थे। गत 13 मई को अपने आधिकारिक व्यक्तव्य में, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने संघर्ष विराम करवाने में ट्रम्प के दावों को खारिज कर दिया और इस बात पर भी जोर दिया कि भारतीय ‘सैन्य कार्रवाई का तरीका पूरी तरह से पारंपरिक था’।
भारत का अपना परमाणु सिद्धांत है, जो कहता है कि उसके परमाणु हथियार केवल भारत या भारतीय सेना पर कहीं भी परमाणु, रासायनिक या जैविक हथियार हमले के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए हैं। जबकि पाकिस्तान का कोई घोषित सिद्धांत नहीं है, लेकिन उसने कई बार दावा किया है कि उसके आण्विक हथियारों का लक्ष्य भारत है, जिनका इस्तेमाल वह तब करेगा जब उसे बड़ी इलाकाई हानि पहुंचे या प्रमुख सैन्य सीमा नष्ट किए जाने पर या फिर आर्थिक रूप से गला घोंटने की कोशिश की जाए।
परमाणु युद्ध की संभावना को नज़रअंदाज़ करना सरासर मूर्खता होगी, भले ही अपनी ओर से प्रयास युद्ध के तौर-तरीके पारंपरिक लड़ाई वाले बनाए रखने का हो। पाकिस्तानी वायु सेना (पीएएफ) के ठिकानों पर हालिया भारतीय हमलों में यह खतरा स्पष्ट रूप से बन चला था। ऑपरेशन सिंदूर के हमले सीमित रखे गए थे – पहले पहल केवल आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया गया, बाद में पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर भी हमले किए गए, जब पाकिस्तान वायुसेना ने भारतीय वायु क्षेत्र में भारतीय विमानों पर वार किया। मुख्य संघर्ष 48 या उससे कुछ अधिक घंटों तक सीमित रहा।
एक वास्तविक युद्ध में, यहां तक कि दो या तीन सप्ताह तक चलने वाले युद्ध में भी, अमूमन बमबारी काफी सघन होती है। इसी से समस्या हो सकती है। अभी तक, भारत की नीति लड़ाई में अपने परमाणु हथियार अलहदा रखने की रही है - रिवायती हथियारों और परमाणु विकल्प पर नियंत्रण अलग-अलग है - ताकि परमाणु सुरक्षा पर राजनीतिक अंकुश बना रहे। लेकिन पाकिस्तान के मामले में, जहां सेना ही सब कुछ चलाती है, हथियार और परमाणु निर्णय, दोनों सेना के हाथ में हैं।
एक फुल स्केल वॉर में, भले ही भारत का इरादा युद्ध शैली पारंपरिक रखने तक सीमित हो, एक बड़ा खतरा यह होता है कि अनजाने में सही, मजबूत से मजबूत बंकर तक को भेदने में समर्थ मिसाइलें जैसे स्कैल्प यानी स्टॉर्म शैडो,, क्रिस्टल मेज़ और पेववे का उपयोग करते वक्त कहीं ऐसा न हो कि वे दुश्मन के परमाणु हथियार भंडार स्थलों को भी नुकसान पहुंचा दें। इस तरह बिना इरादा किए, परमाणु शस्त्रागार का नुकसान अगर इस हद तक हो जाए कि उसके लिए ‘उपयोग करूं या इन्हें खो दूं’ वाली दुविधा बन जाए, तो इस स्थिति में खुद को पाकर, हो सकता है पाकिस्तान पूर्ण रूपेण परमाणु हथियारों का उपयोग करने को मजबूर हो जाए।
लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नयी दिल्ली में वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता हैं।