परंपरा से पर्यावरण रक्षा
रतन सिंह
मायरा यानी भात भरने की परम्परा में भी जुड़ा है पर्यावरण प्रेम। भात भरना एक परंपरा है। हमारे देश में बहन की पुत्री या पुत्र की शादी में मायरा भरने की परम्परा सदियों पुरानी है। कोई भी महिला अपने पुत्र या पुत्री की शादी तय होते ही गुड़ की भेली व चावल लेकर मायके जाती है और अपने भाई को देते हुए उसे शादी में आने के लिए आमंत्रित करती है। भाई अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार उपहार आदि लेकर जाता है, इसी को भात भरना या मायरा भरना कहा जाता है। इस अवसर पर बहन शादी में आये अपने भाई का स्वागत करती है और भाई चुनड़ी ओढ़ा कर बहन का सम्मान करता है। एक ओर भाई-बहन का प्रेम है और दूसरी ओर बहन के बच्चों यानी भानजे-भानजियों के प्रति ननिहाल का प्रेम।
राजस्थान या कहीं और के भी कई रिवाज ऐसे हैं जहां परंपरा में पर्यावरण का प्रेम छलकता है। राजस्थान में भाई जब भात लेकर बहन के ससुराल जाता है तब सबसे पहले गांव की सीमा में घुसते ही खेजड़ी के पेड़ को चुनड़ी ओढ़ाता है। उल्लेखनीय है कि भात भरने में सबसे महत्वपूर्ण रस्म बहन को चुनड़ी ओढ़ाना होता है और ठीक यही रस्म गांव की सीमा जिसे स्थानीय भाषा में कांकड बोलते है, में प्रवेश करते ही भाई खेजड़ी के पेड़ को चुनड़ी ओढ़ा कर उसे सम्मान देता है। जो प्रदेश के लोगों के मन में पर्यावरण के प्रति प्रेम और जागरूकता को प्रदर्शित करता है। अर्थात् पेड़ों को सहेजने की प्रथा। राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ को पर्यावरण की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण समझा जाता है।
दरअसल, जो भाई खेजड़ी वृक्ष को अपनी बहन के समान समझता है, जाहिर है वह उसका संरक्षण ही करेगा और खेजड़ी वृक्ष का संरक्षण मतलब पर्यावरण का संरक्षण। इस तरह राजस्थान में सदियों पहले यह परम्परा बनाई गई और खेजड़ी के वृक्ष को बहन का दर्जा दिया गया ताकि कोई भी व्यक्ति उसे नुकसान पहुंचाने की न सोचे।
राजस्थान में ऐसी और भी कई परम्पराएं है जो सीधे सीधे पर्यावरण से जुड़ी हैं। प्रसंगवश यहां बता दें कि देश के अन्य हिस्सों में पर्यावरण को बचाये रखने के लिए या पर्यावरण की महत्ता को दर्शाने के लिए ऐसे अनेक रीति-रिवाज हैं जो लोगों को जागरूक करने या धर्म अथवा आस्था से जोड़कर पर्यावरण को संवारने का संकल्प जाहिर करवाते हैं।
साभार : ज्ञानदर्पण डॉट कॉम