For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

न्यायपालिका में पारदर्शिता की ओर पहलकदमी

04:00 AM Mar 01, 2025 IST
न्यायपालिका में पारदर्शिता की ओर पहलकदमी
Advertisement

न्यायपालिका में पारदर्शिता-जवाबदेही बढ़ाने के लिए प्रस्तावित अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 न्यायपालिका में सुधार की दिशा में नया कदम है। इससे कानूनी पेशे का दायरा व सेवाओं की उपलब्धता बढ़ेगी, नागरिकों को विविध कानूनी मदद प्राप्त करना आसान होगा। हालांकि प्रस्तावित विधेयक पर विचार-विमर्श कर बीसीआई और वकीलों की चिंताओं को संबोधित करना जरूरी है।

Advertisement

डॉ. सुधीर कुमार

भारत की न्यायपालिका, जो न्याय और समानता की आधारशिला है, हमेशा से ही सुधारों की मांग करती रही है। लंबित मामलों का बोझ, ऊंच-नीच के आरोप और प्रक्रियात्मक जटिलताओं ने न्यायपालिका की दक्षता और पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं। अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025, भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित महत्वपूर्ण विधान है, जिसका उद्देश्य न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है। यह विधेयक अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन करता है, जो भारत में कानूनी पेशे को नियंत्रित करता है।
पहले, 1961 के अधिनियम के अनुसार, कोर्ट में वकालत करना ही कानूनी व्यवसाय माना जाता था। लेकिन, नए विधेयक में कानूनी व्यवसाय की परिभाषा को और बढ़ा दिया गया है। अब, कानूनी व्यवसाय में कोर्ट में वकालत करने वालों के अलावा वे सभी लोग शामिल होंगे जो कानून से जुड़े अलग-अलग कामों में लगे हैं, जैसे कि कंपनियों के लिए कानूनी काम, कॉन्ट्रैक्ट बनाना और अंतर्राष्ट्रीय कानून से जुड़े काम। इस बदलाव से कानूनी पेशे का दायरा बढ़ गया, इसमें कई तरह के कानूनी काम शामिल हो गए हैं। इससे कानूनी सेवाओं की उपलब्धता बढ़ेगी और नागरिकों को विविध कानूनी मदद प्राप्त करने में आसानी होगी।
वर्तमान में, बार काउंसिल ऑफ इंडिया यानी बीसीआई के सदस्य राज्य बार काउंसिल द्वारा चुने जाते हैं। लेकिन, अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 की धारा 4 में संशोधन करके केंद्र सरकार को यह अधिकार मिल जाएगा कि वह बीसीआई में मौजूदा निर्वाचित सदस्यों के अलावा 3 सदस्यों को नामित कर सके। यह संशोधन सरकार को कानून के प्रावधान लागू करने में बीसीआई को निर्देश देने का अधिकार प्रदान करेगा।
वर्तमान में, अपने मुवक्किल को धोखा देना पेशेवर कदाचार माना जाता है, जिसकी शिकायत बार काउंसिल ऑफ इंडिया से की जाती थी। हालांकि, अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 की धारा 45बी के तहत, पेशेवर कदाचार के कारण यदि किसी व्यक्ति को नुकसान होता है, तो वह बीसीआई में शिकायत दर्ज करा सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि किसी हड़ताल के कारण किसी का नुकसान होता है, तो यह वकील का पेशेवर कदाचार माना जाएगा। यह संशोधन मुवक्किलों के अधिकारों को और अधिक सुरक्षित करता है। यह प्रावधान वकीलों को अपने कर्तव्यों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाता है और उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित करता है कि वे अपने मुवक्किलों के हितों की रक्षा करें।
अभी तक, एक वकील एक साथ कई बार एसोसिएशनों का सदस्य हो सकता था और उन सभी में चुनाव के दौरान वोट भी कर सकता था। लेकिन, नए विधेयक में धारा 33ए जोड़ी गई जिसके अनुसार, अदालतों, ट्रिब्यूनलों और प्राधिकरणों में वकालत करने वाले वकीलों को उस बार एसोसिएशन में पंजीकरण कराना होगा जहां वे वकालत करते हैं। यदि वे अपना स्थान बदलते हैं, तो 30 दिनों के भीतर बार एसोसिएशन को सूचित करना होगा। अब वकील एक से अधिक बार एसोसिएशन के सदस्य नहीं हो सकते और केवल एक बार एसो. में वोट कर सकते हैं।
मौजूदा व्यवस्था में, हड़ताल करना गैरकानूनी नहीं था, लेकिन पेशेवर कदाचार माना जाता था। हालांकि, नए विधेयक में धारा 35ए जोड़ी गई है, जो किसी वकील या वकील संगठन को अदालत के बहिष्कार का आह्वान करने, हड़ताल करने या काम रोकने से रोकती है। इस धारा का उल्लंघन वकालत पेशे का कदाचार माना जाएगा और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकेगी।
अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 को लेकर वकीलों में कई चिंताएं हैं। उनका मानना है कि इसके कुछ प्रावधान उनके अधिकारों का हनन और न्याय व्यवस्था को कमजोर करते हैं। तर्क है कि धारा 35ए उन्हें अपनी बात रखने और समस्याएं उठाने के लिए हड़ताल-बहिष्कार जैसे महत्वपूर्ण हथियारों से वंचित करती है। वे इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) और जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन मानते हैं। उनका कहना है कि यह धारा उनकी आवाज दबाने जैसी है और अपने अधिकारों के लिए लड़ने से रोकती है।
विधेयक की धारा 35 में वकीलों पर 3 लाख रुपये तक जुर्माना लगाने का प्रावधान है। वकीलों का मानना है, यह जुर्माना उन पर अनावश्यक दबाव डालेगा और उनकी स्वतंत्रता को प्रभावित करेगा। इसके अलावा, नए कानून के अनुसार, अगर किसी की शिकायत झूठी या बेकार साबित होती है, तो उस पर 50,000 रुपये तक जुर्माना लग सकता है। लेकिन, यदि किसी वकील के खिलाफ झूठी शिकायत की जाती है, तो उसके लिए कोई सुरक्षा नहीं है। वकील इसे एकतरफा कानून मानते हैं और अपने साथ अन्याय बताते हैं। नये विधेयक की धारा 36 के तहत, बीसीआई को किसी भी वकील को तुरंत निलंबित करने का अधिकार है। वकीलों को डर है कि यह प्रावधान उनके खिलाफ दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है। बिना उचित जांच किसी को निलंबित करना अन्यायपूर्ण हैै।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया का मानना है कि नया विधेयक वकीलों की स्वतंत्रता और बीसीआई की स्वायत्तता पर प्रहार है। विधेयक के कुछ प्रावधान वकीलों के अधिकारों को कम करते हैं और उनकी स्वतंत्रता को खतरे में डालते हैं। यह विधेयक वकीलों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में मुश्किल पैदा करेगा। बीसीआई ने सरकार से इस विधेयक पर पुनर्विचार करने और वकीलों और बीसीआई के साथ चर्चा करने की मांग की है। इन चिंताओं के बावजूद, अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 में न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने की क्षमता है। यदि इसे सही तरीके से लागू किया जाता है।

Advertisement

लेखक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के विधि विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।

Advertisement
Advertisement