For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

नीले गगन के तले तबाही का खेल चले

04:00 AM Jun 19, 2025 IST
नीले गगन के तले तबाही का खेल चले
Advertisement

शमीम शर्मा

Advertisement

आसमान... कभी वो खुला नीला कैनवास था जहां इंसानी कल्पनाओं की उड़ानें और राइट बंधुओं के सपने आकार लेते थे। सुबह की सुनहरी धूप में चिड़ियों का चहचहाना, पतंगों का इठलाना और हवाई जहाज का बादलों को चीरते हुए आगे बढ़ना। आकाश के वक्ष पर सतरंगी इंद्रधनुष को निहारना, कागज के हवाई जहाज उड़ाना और आकाश के तारे गिनना कितना आम था।
अब तो आसमान की कहानी कुछ और ही है। अब वो सिर्फ बमों, मिसाइलों और ड्रोन के लिए रह गया है। जहां कभी उम्मीदों के पंख फड़फड़ाते थे, वहां अब विनाश का साया मंडराता है। लगता है जैसे आसमान ने भी अपनी नीली चादर ओढ़कर सिसकना शुरू कर दिया है। जिस आसमान ने हमें आजादी और विस्तार की कल्पना दी, वही अब युद्ध और आतंक का साक्षी बन रहा है। परिंदे आज भी उड़ते हैं, लेकिन शायद वो भी डरते होंगे कि कहीं कोई मिसाइल उनके रास्ते में न आ जाए। और हवाई जहाज? वो अब सिर्फ यात्री नहीं ढोते, बल्कि अक्सर युद्ध के मैदानों में मौत का सामान भी पहुंचाते हैं।
लगता है इंसानी तरक्की ने आसमान का रंग नीला नहीं, बल्कि काला कर दिया है। उस धुएं से जो मिसाइलों के पीछे छूटता है, उन विस्फोटों से जो उसके सीने पर घाव करते हैं। रडार की नजरों में कैद, ड्रोन की भनभनाहट से घायल और मिसाइलों की आवाज से थरथराता हुआ बेचारा अम्बर। कभी आकाश, कल्पनाओं का चित्र-पट था। आज उसी नीलांबर पर मिसाइलों और ड्रोन का साया मंडराता है।
कभी हम एक गीत गाते थे- नीले गगन के तले धरती का प्यार पले। ऐसे ही नभ में होती है सुबह ऐसे ही शाम ढले। नन्हे बच्चों की उंगली सांझ को आसमान की ओर उठती थी और दादी कहती थी- बेटा, देखो! चंदा मामा बैठे हैं। आसमान अब शांति का नहीं, शक्ति का मैदान है। अब आसमान में उड़ते परिंदे नहीं ड्रोन हैं जिनका पेट बारूद से भरा है और दिमाग किसी एआई सिस्टम से संचालित है।
बड़े-बड़े देश शांति वार्ता के नाम पर दुनिया के मंचों से कुटिल मुस्कानें और कूटनीतिक झूठ परोस रहे हैं। वह दिन दूर नहीं, जब आसमान से सिर्फ राख गिरेगी क्योंकि जहां कभी परिंदे गीत सुनाते थे, आज वहां बमों की गूंज में इंसानियत सहमी है। काश! आसमान फिर से पंछियों की उड़ान, सपनों के पंख और सुकून भरी सांसों के लिए बन जाये वरना लोगों के हाथों के तोते उड़ जायेंगे।
000
एक बर की बात है नत्थू की टांट पै एक कबूतर नैं बीट कर दी। वो हाथ तै पोंछते होये बोल्या- शुक्र है राम जी का अक म्हैंस नै उड़ना नी आता।

Advertisement
Advertisement
Advertisement