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निर्वासित बलोच सरकार को मान्यता का यक्ष प्रश्न

04:05 AM May 25, 2025 IST
निर्वासित बलोच सरकार को मान्यता का यक्ष प्रश्न
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बलूचिस्तान में स्वतंत्र राष्ट्र के लिए जारी आंदोलन जोर पकड़ रहा है। खनिज-समृद्ध यह क्षेत्र पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, पर सबसे गरीब भी। स्थानीय आबादी अपने संसाधनों की लूट व नरसंहार का सामना कर रही है। इसीलिए जमीनी स्तर पर दो प्रमुख समूहों बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट और बलूच लिबरेशन आर्मी का हिंसक विद्रोह जारी है। इनमें एकता के प्रयास भी हो रहे हैं। वहीं सियासी तौर पर सक्रिय डॉ. नायला कादरी ने निर्वासित बलोच सरकार गठित की है जिसके लिए भूभाग और मान्यता चाहिये। मदद की आस उन्हें भारत से है।

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पुष्परंजन

पंद्रह अगस्त, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल क़िले की प्राचीर से इस्लामाबाद पर प्रहार किया। उन्होंने इस्लामी गणराज्य के नेताओं को बलूचिस्तान प्रांत और देश के उत्तर में गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में हो रहे सितम की याद दिलाई। मोदी ने कहा, ‘यह कैसा जीवन है, जो आतंकवाद से प्रेरित है? यह कैसा सरकारी तंत्र है जो आतंकवाद से प्रेरित है? दुनिया को इसके बारे में पता चल जाएगा और मेरे लिए यही काफी है। बलूचिस्तान, गिलगित और पीओके के लोगों ने पिछले कुछ दिनों में मुझे बहुत धन्यवाद दिया है, मैं उनका आभारी हूं।’ बलूच कार्यकर्ताओं ने पीएम मोदी की टिप्पणी का स्वागत किया। वे बलूच विद्रोहियों के लिए नायक जैसे हैं।
ईरान और अफ़गानिस्तान की सीमा पर स्थित बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे ग़रीब, और सबसे कम आबादी वाला प्रांत बना हुआ है। बलूचिस्तान का क्षेत्रफल 347,190 वर्ग किलोमीटर है। क्षेत्रफल के हिसाब से यह पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो देश के कुल भूभाग का लगभग 44 फीसदी हिस्सा कवर करता है। वर्ष 2018 से बीएलए के नेता असलम बलूच, और उनके उत्तराधिकारी बशीर ज़ैब बलूच अफ़गानिस्तान में ही रह रहे हैं। साल 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद बीएलए गुट के लड़ाके निमरोज़ और हेलमंड चले गए, जो अफ़ग़ानिस्तान का प्रान्त है। पाकिस्तानी सेना मानती है, कि मार्च 2025 में जाफ़र एक्सप्रेस के अपहरण को उपग्रह संचार कमांड के माध्यम से अंजाम दिया गया था, इसकी सारी प्लानिंग अफ़गानिस्तान में हुई थी।
करीब 20 वर्षों से हिंसक विद्रोह में शामिल दो बलूच अलगाववादी समूह कथित तौर पर विलय करके एक एकीकृत मिलिटेंट्स ग्रुप बनाने के लिए बातचीत कर रहे हैं। एकीकरण में शामिल दो समूह, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ) और बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) इसके हामीदार यानी समर्थक हैं। इसके साथ-साथ छात्रों के एक समूह ‘बलूच राजी अजोई संगर (बीआरएएस या बलूच नेशनल फ्रीडम फ्रंट )’ को सक्रिय किया गया है। ‘बीएलएफ’ का नेतृत्व डॉ. अल्लाह नज़र बलूच करते हैं, जो पहले चिकित्सक थे, बाद में गुरिल्ला नेता बन गए। साल 2004 में एक कार बम हमले के बाद डॉ. अल्लाह नज़र बलूच कुख्यात हुए थे। इस बम विस्फोट में ग्वादर में काम करने वाले तीन चीनी इंजीनियर मारे गए थे, और 11 अन्य घायल हो गए थे। बीएलएफ ने, तटीय मकरान डिवीजन और अवारन जिले में अपनी उपस्थिति बनाए रखी है।
´बीएलए’ का नेतृत्व शुरू में बलाच मर्री ने किया था, जो नवाब खैर बख्श मर्री के बेटे हैं, जो खुद 1970 के दशक के बलूच विद्रोह में शामिल एक मार्क्सवादी नेता थे। बीएलए की स्थापना 2000 में हुई थी, हालांकि कुछ मीडिया और विश्लेषकों का अनुमान है कि यह समूह पिछले बलूच विद्रोहों, विशेष रूप से 1973 से 1977 के स्वतंत्र बलूचिस्तान आंदोलन का पुनरुत्थान है। कुछ स्रोतों के अनुसार, दो पूर्व केजीबी एजेंट कोड-नाम ‘मिशा’ और ‘साशा’ बीएलए के आर्किटेक्ट में से थे। उनके अनुसार, बीएलए का निर्माण बलूच छात्र संगठन (बीएसओ) के इर्द-गिर्द हुआ था। सोवियत संघ के अफगानिस्तान से वापस जाने के बाद बीएलए गायब हो गया क्योंकि यूएसएसआर ने फंडिंग वापस ले ली थी। साल 2007 में पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर एक सैन्य अभियान में बलाच मर्री की मौत के तीन साल बाद, ‘बीएलए’ को आंतरिक विभाजन का सामना करना पड़ा। यह समूह 2010 में दो गुटों में विभाजित हो गया, जिससे यूनाइटेड बलूच आर्मी (यूबीए) का उदय हुआ। बीएलए के नेता असलम बलूच को दिसंबर 2018 में अफगानिस्तान के कंधार में एक गुप्त आत्मघाती हमलावर ने मार गिराया था। असलम बलूच की मौत के बाद, पूर्व बीएसओ आज़ाद के अध्यक्ष, बशीर ज़ैब ने बीएलए का नियंत्रण संभाला। इन गुटों में यदि विलय होता है, मकरान तट पर सरकारी एजेंसियों और चीनी परियोजनाओं में काम करने वालों पर हमले बढ़ सकते हैं।
जो सवाल अबतक ज़ेरे बहस होना चाहिए, वो ये है, कि ज़मीन पर लड़ रहे गुटों में जब एका नहीं है, तो जो नेता निर्वासन में हैं, उनकी वतन वापसी पर ये लोग क्या उन्हें बतौर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति स्वीकार करेंगे? आजाद बलूचिस्तान के सपने को साकार करने के लिए डॉ. नायला कादरी बलोच ने निर्वासित बलोच सरकार की स्थापना की है। उनकी ‘शैडो कैबिनेट’ में वजा क़ादिर बकश निज़ामी, वजा सिदिक आज़ाद, आग़ा अब्दुल करीम अहमदज़ई, वज़ा युसूफ मुस्तीखान , बाबा जुम्मा खान, प्रो. एमवाई दुर्रा जैसी शख्सियतें भी हैं। वे स्वयं निर्वासित बलोच सरकार की स्वघोषित प्रधानमंत्री हैं। जिसकी स्थापना 21 मार्च 2022 को कहीं यूरोप में हुई थी। हालांकि सुरक्षा कारणों से इसका सटीक स्थान सार्वजनिक नहीं किया गया है। फिलहाल, डॉ. नायला कादरी बलोच कनाडा में रहती हैं। उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ब्लूचिस्तान के लोग ‘नायक’ की तरह देखते हैं।
डॉ. नायला कादरी बलोच लगातार भारत का दौरा करती रहती हैं। वे 2016 में भारत आईं थी। यह वो साल था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान का मुद्दा अपने 15 अगस्त के भाषण में लाल किले से उठाया था। इसके बाद वे 2023 और 2024 में भी भारत आई थीं। नायला कादरी बलोच का जन्म 18 जुलाई, 1965 को क्वेटा में हुआ था। महिला अधिकारों के लिए समर्पित नायला की अंतर्राष्ट्रीय फोरम पर लगातार उपस्थिति बनी रहती है। बॉन-बर्लिन से लेकर जेनेवा तक उनके समर्थक एक्टिव हैं। डॉ. नायला बलोच को ‘निर्वासित सरकार’ के लिए भूभाग, सरकार की मान्यता, और दूतावास भी चाहिए। क्या ये सब कर पाना उनके ‘नायक’ नरेंद्र मोदी के लिए सम्भव है?
ऑल इंडिया रेडियो की रिपोर्ट पर प्रधानमंत्री पं. नेहरु का बयान
आगा मीर सुलेमान दाऊद जान अहमदजई, कलात के 35वें खान हैं। साल 1998 में अपने पिता मीर दाऊद जान की मृत्यु के बाद से वह इस पद पर बने हैं। 26 अगस्त 2006 को बलूचिस्तान के कोहलू जिले में एक सैन्य कार्रवाई में अकबर बुगती और उनके कई सहयोगियों की हत्या कर दी गई थी। उसी दौरान आगा मीर सुलेमान दाऊद जान लंदन आ गए और निर्वासन में रह रहे हैं। इनके पूर्वज कलात के खान मीर अहमद यार खान ने 12 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय करा दिया था। क्या इसमें रेडियो की कोई भूमिका रही थी? वो अतीत का सवाल था।
27 मार्च,1948 को ऑल इंडिया रेडियो ने वी.पी. मेनन की प्रेस कॉन्फ्रेंस की रिपोर्ट दी थी, जिसमें उन्होंने कथित रूप से दावा किया था कि दो माह पूर्व, कलात की खानते ने विलय के अनुरोध के साथ नई दिल्ली से संपर्क किया था, लेकिन नई दिल्ली ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। इस खबर की जानकारी होते ही मुहम्मद अली ज़िन्ना एक्शन में आ गए, और साम-दाम-दंड-भेद से बलूचिस्तान का विलय करा लिया। बता दें कि कवि, इतिहासकार और पत्रकार गुल खान नसीर की एक किताब 1993 में आई, ‘तारीख़-ए-बलूचिस्तान’, जिसने इतिहास की परतें एकबार फिर खोलीं। गुल खान के अनुसार, ‘इस रिपोर्ट का उद्देश्य पाकिस्तानी नेतृत्व को उत्तेजित करना था, ताकि वे जल्दबाजी में काम करें, जिससे भारत को हैदराबाद डेक्कन के खिलाफ आगे बढ़ने का मौका मिल जाए।’
अहमद यार खान ने अपनी जीवनी ‘इनसाइड बलूचिस्तान’ में लिखा है कि खारन, लास बेला और मकरान का पाकिस्तान में विलय पाकिस्तान के क्षेत्रीय संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा था। उन्होंने चार प्रमुख प्रतिकूल प्रभाव सूचीबद्ध किए : पहला, अफ़गानिस्तान के साथ संबंध खराब हो गए; दूसरा, बलूच के 'अपमान' ने हैदराबाद निज़ाम को भारत के साथ विलय स्वीकार करने को राजी कर लिया; तीसरा, महाराजा कश्मीर ने पाकिस्तान में विलय के अपने फ़ैसले को बदल दिया और भारत में शामिल हो गए; चौथा, खाड़ी देशों के शेख़ जिन्होंने शुरू में पाकिस्तान का पक्ष लिया था, वे भारत के साथ मिल गए।
27 मार्च, 1948 को ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली ने एक रिपोर्ट प्रसारित की कि, ‘जनवरी 1948 में कलात के खान ने भारत के साथ विलय पर चर्चा करने के लिए नई दिल्ली से संपर्क किया था। नई दिल्ली ने अनुरोध या प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।’ अहमद यार खान ने इस कथित निराधार रिपोर्ट का विरोध करने हेतु भारत के गवर्नर-जनरल को टेलीग्राम भेजा और नई दिल्ली से कहा कि उनके पास जो सन्देश रिकार्ड में है, उसे जारी करें, अगर उन्होंने वास्तव में उनसे संपर्क किया था।
बहरहाल, इस रिपोर्ट ने नई दिल्ली में हलचल मचा दी, जहां कई सवाल उठाए गए। इस मुद्दे पर भारतीय संसद में भी चर्चा हुई। कवि, पत्रकार, लेखक और लोकसभा सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने इस मुद्दे को उठाया, और सरकार से विस्तृत जानकारी मांगी। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा, ‘मुझे यह अवसर पाकर खुशी हो रही है कि दुर्भाग्यवश उत्पन्न हुई एक गलतफहमी को दूर कर सकूं। मुझे खेद है कि रिपोर्टिंग में त्रुटि के कारण,27 मार्च रात को ऑल इंडिया रेडियो ने घोषणा की कि महामहिम खान ऑफ कलात ने भारत में विलय की अनुमति मांगने के लिए अपने एजेंटों के जरियेे लगभग दो महीने पूर्व भारत सरकार से संपर्क किया था, लेकिन भारत सरकार सहमत नहीं हुई। यह कथन गलत है। कलात के शासक के प्रतिनिधि या भारत सरकार द्वारा कभी भी कलात राज्य के भारत में विलय का उल्लेख नहीं किया गया था। कलात राज्य की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए, यह प्रश्न ही नहीं उठता। मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि भारत सरकार और कलात राज्य के बीच राजनीतिक वार्ता के बारे में विदेशी प्रेस में छपी कुछ रिपोर्टें भी पूरी निराधार हैं। यह कथन, कि सरकार की ओर से कलात राज्य को कोई धनराशि दी गई है, और सरकार ने कलात में एयरबेस की मांग की है, भी पूरी तरह से निराधार है।’

बलूच ज़मीनों और संसाधनों की लूट

बलूचों की आबादी दुनियाभर में छह करोड़ से अधिक है। उनमें से अधिकांश पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान में बलूचिस्तान के विभाजित क्षेत्रों में रहते हैं। बलूच सदियों से तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, मध्य पूर्व, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपीय देशों, और भारत में भी रह रहे हैं। पाकिस्तान नियंत्रित इलाक़ों में नरसंहार के परिणामस्वरूप, बलूच विस्थापित होकर यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अन्य देशों में शरण ले चुके हैं। भौतिक और आध्यात्मिक रूप से बलूचिस्तान एक अलग राष्ट्र का आकांक्षी है। सिस्तान बलूचिस्तान ज़ारतोश्त (ज़ोरोस्टर) का जन्मस्थान है, और अवेस्ता प्राचीन बलूची पाठ लिपि में लिखा गया है। इनके नेता दावा करते हैं, ‘अगर हम सोने, तेल, गैस, यूरेनियम और बहुमूल्य पत्थरों की अपनी संपत्तियों का आकलन करें, तो हम दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक हैं।’ मेहरगढ़ बलूच-कुर्द सभ्यता का अधिकेंद्र रहा है, जहां पाषाण युग के औजारों से लेकर पहिये तक के आविष्कार का दावा किया जाता है। बलूच इतिहासकार, मीर यार बलोच, मेहरगढ़ में पाए गए दंत चिकित्सा उपकरणों के साक्ष्य का दावा दरपेश करते हैं। इनका कहना है, पहिए का आविष्कार सबसे पहले मेहरगढ़ (बलूचिस्तान) में हुआ था। खारन की प्राचीन कब्रों से लेकर सोने से लदे ममीकृत शव और मकरान के पहाड़ पर स्फिंक्स कोई संयोग नहीं हैं। बलूचिस्तान में शहर-ए-सुतका, या शहर-ए-सोख्ता के अवशेष दर्शाते हैं, कि यह अपने समय का एक समृद्ध और आधुनिक शहर था, एक ऐसा स्थान जहां एनीमेशन की कला का आविष्कार हुआ। गोल्डस्मिथ, डूरंड और मैकमोहन की विभाजनकारी औपनिवेशिक रेखाओं, औपनिवेशिक नीतियों के परिणामस्वरूप, इनके सामाजिक ताने-बाने बिखर से गए हैं। साल 1871 की ‘गोल्डस्मिथ लाइन’, ब्रिटिश भारत और फारस के बीच एक सीमांकन रेखा थी। गोल्डस्मिथ रेखा में ऐतिहासिक बलूच बंदरगाह शामिल है; जिसका चाबहार, टेस, कंबरन (बंदर अब्बास) के तेल, गैस और सोने के भंडार पर कभी आधिपत्य था। बलूच राजा और उनके प्रतिनिधि सरदार फकीर बिजांजोव ने ‘गोल्डस्मिथ’ संधि को स्वीकार नहीं किया, इसलिए इनकी पीढ़ियों ने कई बार ईरान के कब्जे का विरोध किया। चाबहार और ग्वादर की बंदरगाह क्रमशः ईरान और पाकिस्तान द्वारा चीन को दी गयी हैं। यह बलूच लोगों की इच्छा के विरुद्ध हुआ, जो नरसंहार और विस्थापन का सामना कर रहे हैं।
ईरान ने सबसे पहले पाठ्य पुस्तकों से ऐतिहासिक तथ्यों को मिटा दिया। ठीक से देखा जाये, तो पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान ने बलोच संसाधनों को जमकर लूटा, और जिसे जहां सुविधा हुई, ज़मीनों को हथियाने आगे बढ़ लिये। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2430 किलोमीटर लम्बी अन्तरराष्ट्रीय सीमा का नाम डूरण्ड रेखा है, जो 1896 में एक समझौते के द्वारा स्वीकार की गयी थी। यह रेखा बलूच और पश्तून भूमि को उनकी इच्छा के विरुद्ध विभाजित करती है, इसे दोनों में से किसी भी पक्ष ने कभी स्वीकार नहीं किया। निमरोज, दक्षिणी हेरात, हेलमंड और दक्षिणी कंधार के रेगिस्तानी बलूच क्षेत्र अफगानिस्तान में शामिल किए गए। चमन, लोरालाई, झोब के साथ वही हुआ। मैकमोहन रेखा ने बलूच क्षेत्रों को विभाजित किया, जिसे ब्रिटिश सरकार ने बलूचिस्तान सरकार से पट्टे पर लिया था। अनुबंध के अनुसार वे इन्हें बलूचिस्तान को वापस देने के लिए बाध्य थे, लेकिन भारत छोड़ने के समय अंग्रेजों ने 11 अगस्त 1947 के स्टैंड स्टिल समझौते के माध्यम से इन क्षेत्रों को नए बने पाकिस्तान के हाथों में छोड़ दिया। पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को उन्हें वापस सौंपने के बजाय, अपने प्रांतों में शामिल कर लिया; डेरा गाजीखान, टोंसा शरीफ, भक्कर, मुजफ्फरगर और कुछ अन्य बलूच बहुल क्षेत्र पंजाब को दिए गए। कुल मिलाकर, जिसकी लाठी उसकी भैंस का सिद्धांत यहां लागू रहा। यदि बलूचिस्तान देश स्वतंत्र होता भी है, तो उसके हड़पे गए क्षेत्रों और संसाधनों की वापसी संभव नहीं है!

बलूचिस्तान का झंडा किसने बनाया?
बलूचिस्तान का तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज एकता और मुक्ति के संघर्ष का प्रतीक है। लाल रंग बलूच शहीदों के बलिदान को श्रद्धांजलि है, हरा रंग शांति और समृद्धि के लिए जुनून का प्रतीक है, नीला रंग बलूच सागर और बलूच राष्ट्र की आकांक्षाओं का सम्मान करता है। बलूचिस्तान की एक सदनीय प्रान्तीय विधानसभा में 65 सीटें हैं, जिनमें से 11 महिलाओं के लिये तथा तीन
अ-मुसलमानों के लिये आरक्षित हैं। सरकार की न्यायिक शाखा बलूचिस्तान उच्च न्यायालय द्वारा संचालित की जाती है, जो क्वेटा में स्थित है और एक मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में है।

आज़ाद बलूचिस्तान का लोगो

निर्वासन में बलूचिस्तान सरकार का लोगो मेहरगढ़ का सूर्य है, जो मानव इतिहास में समय के माप का पहला ज्ञात प्रतीक है। ऐसा दावा करते हैं, कि सूर्य की छाया से समय को मापने की विधि की शुरुआत पहली बार यहीं हुई थी। मेहरगढ़ पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में बोलन दर्रे के पास कच्छी मैदान में स्थित एक नवपाषाणिक स्थल है। मेहरगढ़ 9000 ईसा पूर्व से 25000 ईसा पूर्व तक की बलूच सभ्यता है, जिसे पृथ्वी पर पहली शहरी सभ्यता के रूप में जाना जाता है। सूर्य 1410 से बलूचिस्तान की सरकार का प्रतीक रहा है, और प्राचीन कुर्द बलूचिस्तान के मेडियन और मदिस्तान का प्रतीक है। फोटो : लेखक

-  लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार पत्रकार हैं।

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