निर्मल दृष्टि से पवित्रता
04:00 AM May 31, 2025 IST
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एक बार गुरु नानक देव जी अपने चार प्रिय शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले। एक गांव में गांववासियों ने उनका ससम्मान स्वागत किया। उसी गांव में एक वृद्धा रहती थी जो अत्यंत गरीब थी, परंतु श्रद्धा और प्रेम से परिपूर्ण थी। उसने अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया। वृद्धा ने बड़े प्रेम से सबके लिए शरबत तैयार किया, लेकिन उसके पास छानने के लिए छलनी नहीं थी। अतः उसने एक पुरानी, धुली हुई धोती के टुकड़े से शरबत छाना। यह देखकर शिष्यों को घिन आई, परंतु उन्होंने कुछ नहीं कहा। जब वृद्धा ने शरबत परोसा, तो गुरु नानक देव जी ने श्रद्धा और प्रेम से उसे पी लिया। शिष्यों ने शरबत तो पी लिया, लेकिन उनके मन में उसकी अशुद्धता को लेकर कसक बनी रही। गांव से निकलने के बाद एक-एक कर चारों शिष्यों को वमन हो गया। उन्होंने शरबत को दोष देते हुए कहा, ‘गुरुजी, अब आपकी बारी है!’ गुरु नानक देव जी मुस्कराते हुए बोले, ‘नहीं शिष्यों, तुम्हें वमन इसलिए हुआ क्योंकि तुमने उस शरबत में गंदगी देखी, पर मैंने उसमें उस वृद्धा का प्रेम, सेवा और सम्मान देखा। तुमने जो धारणा बनाई, वैसा फल पाया। गुरुजी ने समझाया, ‘यदि दृष्टि निर्मल हो, तो हर वस्तु पवित्र लगती है।’
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा
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