नारी सिर्फ प्रेम ही नहीं, पराक्रम भी
शमीम शर्मा
हैरानी की बात है कि हिंदी में योद्धा, पहलवान और बलशाली जैसे शब्दों के स्त्रीलिंग रूप ही नहीं हैं। क्या भाषाविदों ने स्वीकार लिया था कि साहस, ताकत और पराक्रम केवल पुरुषों के कब्जे में हैं? जब कोई स्त्री वीरता दिखाती है तो उसका जेंडर ही बदल देते हैं और उसे मर्दानी कहते हैं। जबकि कायर से कायर आदमी को भी हम जनानी नहीं कह सकते। इतिहास के पन्नों में दर्ज वह मां, जो अपने बच्चे को पीठ पर बांधकर युद्धभूमि में कूदी, क्या वह मर्दानी थी? नहीं वह भी एक नारी थी, जिसने साबित कर दिया कि योद्धा होने के लिये पुरुष होना जरूरी नहीं, हृदय में आग और आत्मा में संकल्प हो तो भी सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह जैसी योद्धा होने का गौरव मिल सकता है।
न जाने आज कितनी ही सोफिया और व्योमिका इस बात का जीवंत प्रमाण हैं कि नारी भी पूर्ण रूप से योद्धा हो सकती हैं। ये महिलायें न केवल रणभूमि में बल्कि समाज, परंपरा और सोच की दीवारों से भी लड़ रही हैं। उनकी लड़ाई सिर्फ अस्त्रोें से ही नहीं है, उन शास्त्रों से भी है जहां उन्हें देवी तो माना गया पर पराक्रमी नहीं। उसे पूजनीया तो कहा पर तलवार से कोसों दूर रखा। यह भी एक अचंभा है कि हमारी सारी देवियोें को पराक्रमशाली रूप में ही स्थापित किया गया है।
अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषा और सोच दोनों को ही बदलें। वीरता को लिंग से न जोड़ें, उसे व्यक्ति के साहस से जोड़ें। सबको समझ आ जाना चाहिये कि नारी केवल प्रेम नहीं, पराक्रम भी है। एक महिला को देखकर गुलाब की कोमलता का तो ध्यान आता है पर उसकी बहादुरी का नहीं। वह आमतौर से गाय तो लगती है पर शेरनी नहीं। नारी केवल प्रेम नहीं, वह चलती फिरती मोटिवेशन मशीन है- बिना चार्जिंग के 24 गुणा 7 ऑन रहती है। नारी सिर्फ नज़ाकत नहीं, जबरदस्त जज्बा भी है। नायिका कहते ही फिल्मी हीरोइन की छवि पर ध्यान जाता है, इसलिये पाकिस्तान के विरुद्ध इस संग्राम की योद्धाओं सोफिया और व्योमिका को नायिका नहीं नायक कहा जाएगा।
लड़की में हमें गुलाब, ख्वाब, किरण, हिरण और आहिस्ता-आहिस्ता चढ़ता नशा ही दिखता है, उसके भीतर बैठे शेर-चीते, आंधी-तूफान, तीर-तोप, गोला-बारूद किसी ने नहीं देखे। अब शुरू कर दो उसका वीर रूप देखना और उसे योद्धा स्वीकारना।
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एक बर की बात है अक नत्थू नैं किसी कुत्ते कै लात मारी अर बोल्या- मैं हूं बोंड। एक लात और मारकै बोल्या- जेम्स बोंड। कुत्ता भी कती हरियाणवी था। एक पिंडी पाड़ कै बोल्या- मैं सूं कुत्ता। फेर दूसरी पिंडी पाड़ कै बोल्या- पाड़णा कुत्ता।