नारी की मर्यादा और राष्ट्रीय अस्मिता का सिंदूर
शमीम शर्मा
कुछ रंग सिर्फ रंग नहीं होते, वे चेतावनी होते हैं। जैसे सूरज डूबते वक़्त सिंदूरी हो जाता है कि अब रात आने वाली है, संभल जाओ। वैसे ही नारी की मांग का सिंदूर भी एक लाल संकेत है कि यह स्त्री केवल सौंदर्य का प्रतिरूप नहीं, यह शक्ति का साक्षात् रूप है और इसकी गरिमा को लांघने का अर्थ है –विनाश का न्योता।
सिंदूर... एक पतली-सी लाल रेखा... पर जनाब, ये रेखा सिर्फ माथे पर नहीं होती, ये तो संस्कृति के माथे पर खींची गई लक्ष्मण रेखा है। इसे लांघने की कोशिश करने वालों का अंजाम वही होगा जो रावण का हुआ था।
आजकल कुछ ज्ञानी जन इसे सिर्फ एक रूढ़ि मान बैठे हैं। जिसे वे पिछड़ापन समझ रहे हैं, वही तो हमारे संस्कारों की रीढ़ है। कुछ लोग इस सिंदूरी रेखा को मिटा देने की फिराक़ में हैं। उन्हें लगता है नारी की आज़ादी इसी में है कि वह सिंदूर न लगाए, मांग खाली रखे। स्वतंत्रता अच्छी बात है, पर संस्कारों को मिटाकर नहीं। सिंदूर लगाना मजबूरी नहीं, गर्व का चयन है।
सिंदूर केवल रोली नहीं, एक लाल अलार्म है जिसको छेड़ने-रौंदने से गोली और गोले बरसने लगते हैं। सिंदूर कोई मेकअप प्रोडक्ट नहीं, यह तो सुहाग की छाया, संघर्ष की लाली और नारी की अंतःशक्ति का प्रमाणपत्र है। ये रंग केवल सौंदर्य का नहीं, शौर्य का प्रतीक है। जब बात सिंदूर की लकीर से आगे बढ़ने की आती है, तो यह केवल नारी की मर्यादा की बात नहीं होती—यह राष्ट्र की अस्मिता से भी जुड़ जाती है। जिस तरह कोई हमारी नारियों की सिंदूरी मांग की तरफ आंख उठाए तो हम उसे इतिहास की धूल में मिला देने का संकल्प रखते हैं—ठीक उसी तरह जब दुश्मन देश ने हमारी सीमाओं की ओर नजरें उठाईं, तब भारत ने दुनिया को एक और ‘सिंदूरी संदेश’ दे दिया। हमारी सेना ने जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया तो वो सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी—वो भारत माता के माथे का तिलक था। ये संदेश था कि हम प्रेम करते हैं, सहते हैं, पर जब कोई हमारे आत्मसम्मान की रेखा पार करता है—फिर वो रेखा लाल हो जाती है, सिंदूरी हो जाती है और उस रंग का मतलब होता है– इन्कलाब।
ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए भारत ने यह भी जता दिया कि जो भी हमारी सीमाओं की लकीर को लांघेगा, उसे हम शांति के कबूतर नहीं, पराक्रम के गरुड़ भेजेंगे।
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एक बार की बात है एक जंगल म्ह भालू देखते ही नत्थू सांस रोक कै जमीन पै लेट ग्या। जद भालू उस धोरै पहुंच्या तो उसके कान म्ह बोल्या- आज भूख कोनी, नी तो तेरी साड़ी हेकड़ी काढ़ देता।