नारी का संघर्ष और बदलती छवियां
कृष्णलता यादव
गीत, ग़ज़ल, दोहा, कुण्डलिया, कविता आदि के माध्यम से नारी जगत की परिक्रमा करती कृति है– ‘हमारी लाडो, हमारा गौरव’। 96 रचनाकारों द्वारा रचित इस संकलन की सम्पादक हैं डॉ. शील कौशिक। सुस्थापित रचनाकारों के साथ नवोदितों का प्रवेश अच्छा लगा। सभी का कहने का अंदाज़ अलग था, किंतु भावभूमि लगभग समान थी। रचनाओं के केन्द्र में है– नारी का हर रूप, उसकी बदलती छवियां, उपलब्धियां, आशाएं-आकांक्षाएं, सपने और शिकवे-शिकायतें। कवि-कलमों ने बेटियों का रूप धारकर घर-परिवार तथा समाज से ज्वलंत प्रश्न किए हैं, गलत रीति-नीतियों के लिए उन्हें कटघरे में खड़ा किया है, उदाहरणस्वरूप :-
करुण क्रंदन सुनकर मेरा, क्यों तुझे रहम नहीं आया।
कोख में अपनी बेदर्दी से, कतरा-कतरा करवाया॥
बेटियों के महिमा-मंडन का दोहा दृष्टव्य है :-
बेटी है तो सृष्टि है, भूल न तू नादान।
जब-जब उजड़ी कोख तब, रोया है भगवान॥
बेटियों के प्रति सामाजिक सोच पर तंज कसती ये पंक्तियां काबिलेगौर हैं :-
सफर कर रही बेटियां, चलकर मीलों-मील।
चुभो रहे हैं आप हम, इनके पाँवों कील॥
बेटी हुंकार भरती है :-
बेटी हूं अबला नहीं, दुर्गा का अवतार।
मर्यादा जो लांघ दी, कर दूंगी संहार॥
बेटी की विदाई पर उमड़ी एक पिता की भावनाओं का सागर पाठक की आंखें भिगोता है :-
बिन तेरे इस घर को फिर से घर बनने में देर लगेगी।
तेरे बिन इस उजड़ी बस्ती को बसने में देर लगेगी॥
सरल, सुबोध भाषा, अर्थपूर्ण मुखपृष्ठ, भावों-संवेदनाओं से ओत-प्रोत कथ्य तथा कुशल सम्पादन कृति की अन्य विशेषताएं हैं।
पुस्तक : हमारी लाडो हमारा गौरव सम्पादक : डॉ. शील कौशिक प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशन, दिल्ली पृष्ठ : 171 मूल्य : रु. 250.