नशे के खिलाफ युद्ध
लगातार चुनौती बने नशीली दवाओं के कारोबार के खिलाफ पंजाब सरकार ने एक महत्वाकांक्षी युद्ध शुरू किया है। सरकार का दावा है कि तीन महीने के भीतर इस समस्या का खात्मा कर दिया जाएगा। इसी क्रम में विभिन्न सरकारी विभागों ने सैकड़ों छापे डाले, तीन सौ के करीब गिरफ्तारियां और बड़े पैमाने पर नशीले पदार्थों की बरामदगी हुई। निस्संदेह, यह कार्रवाई अभियान आक्रामक व तेज है, लेकिन ऐसे अभियान चलाने के दावे विगत में किए जाते रहे हैं। दरअसल, सबसे बड़ा संकट यह है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान में हेरोइन उत्पादन के केंद्र- गोल्डन क्रिसेंट के निकट होने के कारण पंजाब लंबे समय से मादक पदार्थों की तस्करी से जूझ रहा है। सवाल यह है कि मान सरकार का नशे के कारोबार के खिलाफ जारी अभियान कामयाबी की नई इबारत लिख पायेगा? उल्लेखनीय है कि मान के नेतृत्व वाले प्रशासन ने नशामुक्ति और पुनर्वास प्रयास के साथ ही प्रवर्तन एजेंसियों के जरिये एक व्यापक रणनीति को अंजाम देने की कोशिश की है। इस अभियान में नशामुक्ति केंद्रों और डॉक्टरों द्वारा लिखी जाने वाली दवाओं की बिक्री को विनियमित करने पर ध्यान देकर एक कारगर पहल की गई है। हालांकि, इस अभियान की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या हम इस समस्या की जड़ पर प्रहार कर पाए हैं? दरअसल, इस संकट के मूल में जहां राजनीतिक जटिलताएं, सीमा से जुड़ी समस्याएं हैं, वहीं युवाओं के लिये रोजगार से जुड़े विकल्पों की भी कमी है।
उल्लेखनीय है कि पंजाब में विगत में भी ऐसे दावे किए गए हैं। वर्ष 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने चार हफ्ते में नशे के कारोबार को खत्म करने का वादा किया था। निस्संदेह, उनकी सरकार ने भी इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। जिसमें सरकारी कर्मचारियों के लिये भी वार्षिक दवा परीक्षण तथा अधिकारियों की नशीली दवाओं के दुरुपयोग रोकथाम की जवाबदेही शामिल थी। लेकिन उसके बावजूद नशीली दवाओं का संकट जारी रहा। इससे पहले बादल के नेतृत्व वाली अकाली सरकार की भी नशे के खिलाफ शुरू की गई लड़ाई सिरे नहीं चढ़ सकी। दरअसल, नशे के कारोबार से जुड़े बड़े माफिया के खिलाफ कारगर कार्रवाई न हो सकने के कारण ये अभियान प्रभावी नहीं हो पाते। इस कार्रवाई का शिकार वे लोग होते हैं जो नशीली दवाओं के अंतिम उपयोगकर्ता नशेड़ी होते हैं। जो आमतौर पर गरीब लोग होते हैं। वहीं दूसरी ओर नशे का बड़ा कारोबार निर्बाध रूप से चलता रहता है। आखिर क्या वजह है कि भारी पुलिस व्यवस्था के बावजूद नशीली दवाओं की बड़ी खेप पंजाब में आसानी से प्रवेश कर जाती है। जो व्यवस्थागत संरचनात्मक मुद्दों की खामियों की ओर इशारा करती है। दरअसल, दीर्घकालिक दृष्टिकोण के बिना कोई भी कार्रवाई स्थायी परिवर्तन लाने में विफल ही रहेगी। सीमा पर सख्त नियंत्रण करने, न्यायिक दक्षता और समाज को जागरूक करने की जरूरत है। वहीं सुखद है कि हिमाचल सरकार ने छह माह में नशे के नेटवर्क को ध्वस्त करने का संकल्प जताया है, जिसमें तस्करों की संपत्ति जब्त करने व संदिग्ध खातों की जांच भी शामिल है।