नयी स्थितियों से तालमेल की सीख
कामकाजी दुनिया में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। वे तकनीक के मोर्चे पर हों या फिर कार्पोरेट परिदृश्य में। ऐसे में जरूरी है कि बदलाव के प्रति युवा खुला रुख अपनाएं। नयी स्थितियों के साथ तालमेल बैठाने की सोच बने, उनके साथ ढलने की क्षमता जुटाएं। ऐसे में स्किल्स को भी तराशते रहना जरूरी है।
डॉ. मोनिका शर्मा
तेज़ी से बदलते इस दौर में नई सोच ही नहीं, न्यू एज स्किल्स भी आवश्यक हैं। युवाओं को स्व-निखार की सोच में व्यक्तित्व ही नहीं] कौशल को भी रखना होगा। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का अनुमान है कि 2030 तक 85 फीसदी ऐसी नौकरियां मौजूद होंगी, जो बिलकुल नये क्षेत्रों से जुड़ी होंगी। यानि रोजगार के ऐसे फील्ड और अवसर जो अभी तक अस्तित्व में नहीं हैं। इसलिए युवाओं में अडेप्टीबिल्टी और नया सीखने की सोच जरूरी है। सरकार और कंपनियां भी निरंतर कौशल विकास की जरूरत पर बल दे रही हैं। असल में तकनीकी तरक्की और कॉर्पोरेट दुनिया के तेज़ी से बदलते परिवेश में नये लोगों को ही नहीं, पहले से जुड़े कर्मचारियों को भी लगातार नई स्किल सीखनी जरूरी है।
बदलते हालात से तालमेल
बदलाव के प्रति खुला रुख और बदलती परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाने की सोच आज बहुत आवश्यक है। अनुकूलनशीलता से जुड़ा यह भाव वह सॉफ़्ट स्किल है, जिसपर सीखने-समझने की लगातार चलने वाली प्रक्रिया टिकी है। असल में अनुकूलनशीलता यानि अडेप्टीबिल्टी का मतलब ही नई परिस्थितियों के लिए खुद को तैयार रखना है। स्थितियों के साथ आसानी से ढलने की क्षमता जुटाना है। बदलाव के लिए लचीला रुख रखना है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लेकर व्यावसायिक संसार में लोगों से जुड़ाव की राह चुनने तक, पेशेवर दुनिया में नित नया सीखते रहने की प्रवृत्ति समय की जरूरत है। तकनीक, इंडस्ट्रीज व सेवा क्षेत्र- हर फ्रंट पर बदलाव आ रहा है। कामकाजी दुनिया की बदलती अपेक्षाओं के अनुरूप ढलना आवश्यक है। स्किल्स और माइंडसेट के मोर्चे पर स्वयं को संवारते रहने से ही अपडेट रहा जा सकता है। सुखद है कि युवा कौशल निखारने को प्राथमिकता भी दे रहे हैं।
आत्मविश्वास की थाती
उम्र के हर पड़ाव पर ही कुछ नया सीखना या सीखते रहना आत्मविश्वास की सौगात देता है। बात जब कामकाजी दुनिया में अपनी जमीन पुख्ता करने में जुटे युवाओं की हो तो यह पहलू और अहम हो जाता है। असल में अपनी स्किल्स निखारने से जॉब में सुरक्षा मिलती है। किसी क्षेत्र विशेष में पहचान बनाने का अवसर मिलता है। मौजूदा नौकरी में तो आगे बढ़ने के अवसर मिलते ही हैं, कैरियर के नये दरवाजे भी खुलते हैं। यह स्थिति तनाव से भी दूर रखती है, क्योंकि आने वाले समय के लिए खुद को तैयार करने के प्रयास असुरक्षा से दूर रखते हैं। नई स्किल्स सीखने से हर इंसान को अच्छी और सकारात्मक अनुभूति होती है। क्षमता के प्रति बने विश्वास से मन सशक्त महसूस करता है। कामकाजी दुनिया में इस मनःस्थिति के साथ चुनौतियों का सामना करना और आसान हो जाता है। नयी स्किल्स सीखने से नये लक्ष्य बनाने और पाने की भी हिम्मत मिलती है। फील्ड चाहे कोई भी हो, नयी स्किल्स सीखकर योग्यता के मोर्चे पर बेहतरी की ओर बढ़ते जाना कभी व्यर्थ नहीं जाता।
लचीली सोच को सही दिशा
औपचारिक डिग्री के बाद भी कुछ नया सीखते रहना व्यक्तित्व विकास में सहायक है। नयी स्किल्स सीखना अपने ज्ञान को बढ़ाना है, कार्यक्षमता को बेहतर करना है। समय के साथ चलते रहने की सोच को सही दिशा देना है। खासकर सॉफ्ट स्किल्स बेहतर करना अच्छी निर्णय क्षमता, प्रभावी कम्युनिकेशन और समस्याओं का समाधान तलाशने में मददगार साबित होता है। ऐसे सभी पहलू व्यक्तित्व विकास से जुड़े हैं। यही बातें पर्सनैलिटी को इंप्रेसिव बनाती हैं।
खुद के विकास से है नाता
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार, व्यक्ति की पर्सनैलिटी उसके स्थायी व्यवहार, विचार, इमोशनल पैटर्न और क्षमताओं को लिए होती है। कोग्निटिव बिहेवियरल थैरेपिस्ट और ‘द फील गुड जर्नल’ के लेखक लुडोविका कोलेला के मुताबिक ‘व्यक्तित्व व्यवहार और विचार पैटर्न का एक संयोजन है। जो कि समय के साथ अपेक्षाकृत स्थिर होता जाता है।’ ऐसे में पर्सनल ग्रोथ और पर्सनैलिटी डेवलपमेंट दोनों ही इरादतन एवं सिस्टमेटिकली कुछ न कुछ सीखते रहने से गहराई से
जुड़े हैं।