ध्येय के प्रति दृढ़ता
लोकमान्य तिलक की भगवद्गीता के प्रति बहुत श्रद्धा थी। जब वे मांडले जेल में रहे, तब उन्होंने 'गीता रहस्य' नामक पुस्तक भी लिखी थी, पर यह उससे पहले की घटना है। वे अपने अन्य कार्य करते हुए 'केसरी' नामक समाचारपत्र का सम्पादन भी करते थे। एक बार उनका पुत्र बहुत बीमार था, उसकी देखभाल करते हुए भी वे समाचार पत्र का काम करते रहे। एक दिन जब वे कार्यालय में बैठे काम कर रहे थे, तो घर से सूचना आई कि बेटे की तबीयत बहुत खराब हो गई है, जल्दी आइए। उन्होंने उत्तर भिजवाया कि मैं काम पूरा करके आता हूं। तब तक चिकित्सक को बुलवा लें, क्योंकि दवा तो वह ही देगा। इसके बाद वे सम्पादकीय लिखने लगे और उसे पूरा करके ही घर गए। घर जाकर पता लगा कि बेटे ने प्राण छोड़ दिए हैं। उन्होंने इसे ईश्वर की इच्छा मानकर शांत मन से उसका अंतिम संस्कार कर दिया। यह उनकी ध्येय के प्रति दृढ़ता और मानसिक स्थिरता थी।
प्रस्तुति : देवेन्द्रराज सुथार