धर्म में जीवनरक्षा
काशी के राजा ब्रह्मदत के शासन में धर्मपाल नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह बड़ा ही धर्मनिष्ठ और सदाचारी था। धर्मपाल ने अपने पुत्र को तक्षशिला पढ़ने के लिए भेजा। एक दिन किसी प्रसंगवश उस युवक ने अपने गुरु से कहा-‘गुरुदेव! हमारे कुल में सात पीढ़ियों से कोई युवावस्था में नहीं मरा।’ आचार्य विद्यार्थी की बात का सत्य जानने के लिए विद्यालय को दूसरे की देख-रेख में सौंपकर काशी रवाना हुए। रास्ते में उन्होंने बकरी की कुछ हड्डियां लीं और काशी में जाकर धर्मपाल ब्राह्मण से बोले, ‘बहुत दुःख की बात है, तुम्हारा पुत्र असमय मृत्यु को प्राप्त हो गया।’ यह सुनकर धर्मपाल हंसने लगा और बोला, ‘महाराज! कोई और मरा होगा, हमारे कुल में सात पीढ़ियों से कोई युवा नहीं मरा।’ आचार्य बोले, ‘ये हड्डियां तुम्हारे लड़के की हैं।’ धर्मपाल ने उन्हंे बिना देखे ही कहा, ‘यह हड्डियां भेड़-बकरी की होंगी, ये हमारे परिवार से किसी की नहीं हो सकती।’ अंत में आचार्य ने सच बताया और उनके कुल में सात पीढ़ियों से किसी युवा की मृत्यु न होने का रहस्य पूछा। धर्मपाल ने कहा, ‘महाराज! हम धर्म का आचरण करते हैं, सत्य बोलते हैं, जरूरतमंदों की सेवा करते और दान देते हैं। इस प्रकार धर्म की रक्षा करने पर धर्म हमारी रक्षा करता है।’
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि