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देश की समरसता-संप्रभुता की रक्षा का वक्त

04:00 AM May 14, 2025 IST
देश की समरसता संप्रभुता की रक्षा का वक्त
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प्रधानमंत्री को देश को भरोसे में लेना चाहिए कि वे किसी विदेशी ताकत के इशारे पर काम नहीं करेंगे। इस प्रश्न का उत्तर भी मिलना चाहिए कि किसी और देश का राष्ट्रपति हमारे युद्धविराम की घोषणा कैसे कर सकता है? देश की प्रभुसत्ता से कोई समझौता नहीं हो सकता। देश सर्वोपरि है।

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विश्वनाथ सचदेव

बारह मई की सुबह से ही टीवी चैनलों पर प्रधानमंत्री के ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ की चर्चा होने लगी थी। कई खबरिया चैनलों ने तो बाकायदा यह चर्चा भी की कि प्रधानमंत्री अपने संदेश में क्या कहेंगे! आखिरकार प्रधानमंत्री बोले। अपने संदेश में उन्होंने जो कुछ कहा वह लोगों के कयास से बहुत अलग नहीं था। बड़ी स्पष्टता और बेबाकी के साथ उन्होंने यह बताया कि भारत-पाक के बीच का ‘संघर्ष-विराम’ हमने अपनी शर्तों पर किया है। अपने लगभग बाईस मिनट के भाषण में प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का नाम लिये बिना यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि हमने यह कदम किसी अन्य देश के दबाव में आकर नहीं उठाया है। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि पाकिस्तान के आग्रह पर ही संघर्ष-विराम के लिए बातचीत हुई थी। उन्होंने यह कहना भी ज़रूरी समझा कि पाकिस्तान से साफ कह दिया गया है कि अब यदि आतंकवाद की एक भी घटना घटी तो इसे भारत के खिलाफ युद्ध ही माना जायेगा और हम उसी के अनुरूप कदम उठायेंगे। हम क्या कदम उठा सकते हैं, यह हमारी सेनाएं इन दिनों में बखूबी बता चुकी हैं।
कहने को पाकिस्तान कुछ भी कह सकता है, पर सारी दुनिया ने देखा है कि इस दौरान भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकी अड्डों को तहस-नहस करने में पूरी सफलता पायी है। हमारे सेना-अधिकारी यह बात पहले से कहते आ रहे थे, प्रधानमंत्री ने इसे दुहरा कर देश के दावे पर मुहर ही लगायी है। बिना पाकिस्तान में प्रवेश किये ही हमारी सेनाओं ने सौ से अधिक आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया है। सैन्य-कार्रवाई की दृष्टि से यह बहुत बड़ी सफलता है। अपनी सेना की इस सफलता पर देश निश्चित रूप से गर्व कर सकता है।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि ‘पानी और खून साथ-साथ नहीं बह सकते।’ इसका सीधा अर्थ यही है कि सिंधु-नदी के जिस पानी को भारत ने पाकिस्तान में पहुंचने से रोका है, वह फिलहाल फिर से नहीं बहेगा। पाकिस्तान को अपनी करनी से यह बताना होगा कि वह कायराना आतंकवादी हमलों की नीति से बाज़ आ गया है।
एक और बड़ी बात जो प्रधानमंत्री मोदी के इस संदेश से स्पष्ट होकर सामने आयी है, वह यह है कि भारत न्यूक्लियर ब्लैकमेलिंग का शिकार नहीं होगा। आज भारत और पाकिस्तान दोनों ही एटॉमिक ताकतें हैं। दोनों के पास परमाणु बम हैं। और, दुर्भाग्य से, पाकिस्तान जब-तब यह धमकी देता रहता है कि वह परमाणु शक्ति का उपयोग कर सकता है। अब प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट करना ज़रूरी समझा है कि ‘हम इस धमकी से नहीं डरेंगे।’ हमारी सेनाओं के आला अफसर भी यह कह चुके हैं कि ‘भय बिनु होय न प्रीति।’ पाकिस्तान को इस संकेत की महत्ता समझनी चाहिए।
बहरहाल, पहलगाम के अमानवीय कृत्य के बाद भारत ने जो कदम उठाये हैं, वे यह तो स्पष्ट करते हैं कि अब पाकिस्तानी ज़मीन से संचालित होने वाली आतंकवादी गतिविधियों को सहने के लिए यह देश तैयार नहीं है। बिहार की एक ‘चुनावी सभा’ में भी प्रधानमंत्री ने यह साफ कहा था कि पहलगाम के अपराधियों को कल्पनातीत सज़ा दी जायेगी। अब हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि ‘कल्पनातीत’ के क्या अर्थ हो सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस घटनाक्रम से पाकिस्तान कुछ सीख ले पायेगा।
इस दौरान देश ने जिस एकजुटता का परिचय दिया है, वह भी एक तरह से कल्पनातीत ही है। समूचे विपक्ष ने एक स्वर से आतंकवादी गतिविधियों की भर्त्सना की थी और एक स्वर से ही यह भी कहा था इस संघर्ष के संदर्भ में सरकार जो भी कदम उठाती है, विपक्ष उसका समर्थन करेगा। पहले भी हम पाकिस्तान को चार युद्धों में पराजित कर चुके हैं, और पहले भी हम इस तरह की एकजुटता दिखा चुके हैं, पर इस बार कुछ विशेष था। पहलगाम की घटना ने सारे देश के मानस को हिला कर रख दिया था। पहलगाम में जो कुछ हुआ वह चरम अमानुषिकता का एक उदाहरण है। और इसके बाद देश ने जो एकजुटता दिखाई, वह भी इस बात का उदाहरण है कि महाभारत के कौरवों-पाण्डवों की तरह भले ही हम सौ और पांच हों, पर यदि सवाल देश की रक्षा का है तो हम सौ और पांच नहीं, एक सौ पांच हैं! पहलगाम-काण्ड ने एक सौ चालीस करोड़ भारतीयों को एक स्वर से बोलने का अवसर दिया है।
लेकिन, और यह महत्वपूर्ण है, संघर्ष के दौरान भले ही सवाल उठाना उचित नहीं था, पर अब, जबकि स्थितियां सुधरने का संकेत दे रही हैं, हमें यानी 140 करोड़ भारतीयों को अपने आप से यह सवाल पूछना होगा कि हम अक्सर बांटने वाली ताकतों की हिमाकतों के शिकार क्यों बन जाते हैं? पहलगाम की घटना की अमानुषिकता हर दृष्टि से निंदनीय है, पर इस घटना से हम यह सबक तो ले ही सकते हैं कि यह ‘हमला’ कुछ सैलानियों पर ही नहीं था, हमलावर भारतीय समाज की एकता को खण्डित करना चाहते थे। इसीलिए नाम पूछकर गोलियां चलीं। हमारे लिए ज़रूरी है कि हम इस हमले के निहितार्थों को समझें। आतंकवादियों की कोशिश यह थी कि धर्म के आधार पर भारतीयों को बांटने का षड्यंत्र रचा जाये पर उनकी यह कोशिश सफल नहीं हो पायी। पर हमें यह भी स्वीकारना होगा कि आतंकवादी ही नहीं, कुछ अन्य तत्व भी हैं जो अपने स्वार्थों के लिए हमें बांटना चाहते हैं। आवश्यकता इनके मंसूबों को विफल बनाने की है।
सोशल मीडिया पर दो-चार दिन पहले ही एक चित्र वायरल हुआ था। एक मुसलमान सिपाही के घर का चित्र था। दरवाजे के ऊपर संगमरमर की एक पट्टी थी। जिस पर लिखा था, ‘सीमा की रक्षा करने वाले का घर।’ देश की रक्षा मात्र देश की सीमाओं पर ही नहीं करनी होगी, देश के भीतर भी रक्षा करनी होती है। इस भीतर की रक्षा का मतलब है हर भारतवासी अपने भीतर की भारतीयता को जगाये रखे। दुर्भाग्य से, यह भीतर का भारतवासी कभी-कभी कमज़ोर पड़ जाता है। उसकी मजबूती की रक्षा करना ज़रूरी है। उसे कमज़ोर बनाने वाली ताकतें अपना काम लगातार कर रही हैं। ऐसी ताकतें ही इस तरह के सवाल उठाती हैं कि ‘हर मुसलमान भले ही आतंकवादी न हो, पर हर आतंकवादी मुसलमान क्यों होता है?’ यह सवाल ही बेहूदा है। क्या सारे नक्सली मुसलमान होते हैं? क्या सारे अलगाववादी मुसलमान हैं? क्या जिन्हें टुकड़ा-टुकड़ा गैंग कहा जाता है, वे सब मुसलमान हैं? इनमें से एक सवाल का उत्तर भी ‘हां’ में नहीं है, तो फिर आतंकवाद को धर्म से जोड़ने का क्या मतलब है?
पाकिस्तान का जन्म धर्म के आधार पर हुआ था, यह सही है, पर यह सरासर गलत है कि बंटवारे के समय पाकिस्तान के बजाय भारत में रहने का निर्णय लेने वाले मुसलमान को किसी भी तरह से कम भारतीय आंका जाये। अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए कुछ लोग, कुछ ताकतें लगातार इस कोशिश में लगी रहती हैं कि धर्म के नाम पर समाज को बांटा जाये। इन ताकतों में, और पहलगाम में नाम पूछकर गोली चलाने वाले आतंकियों में कोई विशेष अंतर नहीं है। आवश्यकता इन ताकतों को विफल करने की है। प्रधानमंत्री ने अपने बहुप्रतीक्षित संदेश में इस मुद्दे को भी उठाया होता तो बेहतर होता। वैसे उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए था कि भारत की प्रभुसत्ता की रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए। अपने दोस्त राष्ट्रपति ट्रम्प को भी उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहना चाहिए था कि भारत अपने मामलों को सुलझाने में सक्षम है। अमेरिकी अखबारों में ट्रंप के झूठ अक्सर गिनाये जाते हैं। फिर भी, प्रधानमंत्री को देश को भरोसे में लेना चाहिए कि वे किसी विदेशी ताकत के इशारे पर काम नहीं करेंगे। इस प्रश्न का उत्तर भी मिलना चाहिए कि किसी और देश का राष्ट्रपति हमारे युद्धविराम की घोषणा कैसे कर सकता है? देश की प्रभुसत्ता से कोई समझौता नहीं हो सकता। देश सर्वोपरि है।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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