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दुष्प्रभावों से बचकर एआई का लाभ उठाया जाए

04:00 AM Feb 12, 2025 IST
दुष्प्रभावों से बचकर एआई का लाभ उठाया जाए
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मशहूर कारोबारी एलन मस्क और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स तक मानते हैं कि आने वाले वक्त में इंसानों को एआई से लैस सुपर-स्मार्ट मशीनों से चुनौती मिल सकती है। एआई की मदद से जब बेहद अक्लमंद मशीनें तैयार हो जाएंगी- तो ज्यादातर कारोबारी इंसानों के स्थान पर चौबीसों घंटे तैनात रहने वाली एआई-मशीनों पर निर्भर होना पसंद करेंगे।

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डॉ. संजय वर्मा

विज्ञान जगत अमूमन किसी तकनीक या सुविधा का आविष्कार सृजन के लिए करता है। यहां तक कि डायनामाइट हो या न्यूक्लियर एनर्जी जैसी चीजें- जिनके आविष्कार और खोज का मकसद विकास करना ही था, विनाश करना नहीं। इसी तरह करीब 7 दशक पहले ईजाद की गई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को इक्कीसवीं सदी के पहले दो दशकों तक खतरे की बजाय सहयोगी की भूमिका में ज्यादा देखा गया। लेकिन साल 2022 में जब से ओपनएआई ने चैटजीपीटी को दुनिया के सामने पेश किया है, मशीनों को मिली चेतना यानी कृत्रिम बुद्धि के इंसानों से भी आगे निकल जाने और नौकरियों से लेकर हमारी खुद की क्षमताओं के खात्मे का खतरा एक वास्तविकता में बदलते हुए प्रतीत होने लगा है।
हालांकि, दुनिया अभी भी वे रास्ते तलाश कर रही है, जिनसे होते हुए एआई को हमारी सभ्यता के विनाश के बजाय विकास की दिशा में मोड़ा जा सकता है। पेरिस (फ्रांस) में आयोजित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक्शन समिट इसकी सबसे ताजा पहल है। इस सम्मेलन में नीति-निर्माताओं (राजनेताओं) और कृत्रिम बुद्धि के कारोबार से जुड़ी नामचीन हस्तियों ने इस पर विचार किया है कि एआई का वह भविष्य क्या है, जिसमें दुनिया इस तकनीक से डरने की जगह पर इसके इस्तेमाल से खुद की बेहतरी के इंतजाम कर सकती है।
इस शिखर सम्मेलन में जुटे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस, ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन, माइक्रोसॉफ्ट प्रमुख ब्रैड स्मिथ, गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और चीनी उप-प्रधानमंत्री झांग गुओकिंग ने यह जानने की कोशिश की है कि क्या एआई की भी सार्थकता उसी तरह सामने आ सकती है, जैसी बीसवीं सदी के अंत में कंप्यूटरीकरण की प्रक्रिया ने अपने आगमन के साथ दुनिया भर के कामकाज को आसान किया था। उस समय भी दुनिया आशंकित थी कि कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी तकनीकें हमारी नौकरियों के लिए काल बन जाएंगी। लेकिन हुआ इसके उलट। इन तकनीकों ने नए रोजगार पैदा किए और कामकाज आसान किया।
लेकिन यहां एआई को लेकर अहम चिंता यह है कि यह सिर्फ मशीनी इंतजाम नहीं है। बल्कि कंप्यूटर-इंटरनेट से अलग इसका खतरनाक पहलू यह है कि यह तकनीक हमारे हाथ का कामकाज छीनकर सभ्यता पर कब्जा करने की हैसियत में आ सकती है। नवंबर, 2022 के आखिरी हफ्ते में चैटजीपीटी की लॉन्चिंग के साल भर में ही ऐसी स्थितियां बन गई थीं कि इसके आविष्कार में योगदान देने वाले अरबपति कारोबारी एलन मस्क कह बैठे कि दुनिया को एआई पर नियंत्रण की कोशिश करनी होगी, अन्यथा यह तकनीक इंसान के काबू से बाहर चली जाएगी।
ऐसे में यह प्रश्न मुख्य रूप से पैदा हुआ है कि क्या एआई के बारे में कोई यह भरोसे से कह सकता है कि आगे चलकर यह तकनीक पूरी मानवता की हितैषी साबित होगी। इसे लेकर आज जो डर व आशंकाएं हैं, क्या वे निराधार पाई जाएंगी और अंततः इससे हमारा भला ही होगा। फिलहाल जो परिदृश्य हैं, उन्हें देखकर यह मानना और कहना सच में मुश्किल है कि कंप्यूटर-इंटरनेट की तरह एआई के विविध स्वरूप (चैटजीपीटी, डीपसेक आदि) सार्थक परिणाम देंगे और डर के आगे जीत के मंत्र को साकार करेंगे। एआई से नौकरियों के छिन जाने का संकट अवास्तविक नहीं है। भारत में ही जब कुछ टेलीविजन चैनलों पर एआई एंकर खबरें पढ़ते दिख रहे हों, तो इस चुनौती को अनदेखा कैसे किया जा सकता है। दुनियाभर में कई कंपनियों बढ़ती श्रम लागत के मद्देनजर उत्पादन का काफी कामकाज रोबोट्स और एआई से लैस मशीनों-कंप्यूटरों के हवाले कर रही हैं। भारत में भी आईटी सेक्टर की 10 फीसदी नौकरियों पर ऑटोमेशन यानी खुद काम करने वाली मशीनों के कारण खत्म होने का खतरा मंडरा रहा है। इंफोसिस के पूर्व अधिकारी टीवी मोहनदास पई भी कह चुके हैं कि फिलहाल हर साल दो से ढाई लाख नौकरियां पैदा कर रहे आईटी सेक्टर से हर साल 25 से 50 हजार नौकरियां एआई जनित ऑटोमेशन के कारण खत्म हो जाएंगी। वैज्ञानिक स्टीफन, मशहूर कारोबारी एलन मस्क और माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स तक मानते हैं कि आने वाले वक्त में इंसानों को एआई से लैस सुपर-स्मार्ट मशीनों से चुनौती मिल सकती है। एआई की मदद से जब बेहद अक्लमंद मशीनें तैयार हो जाएंगी- तो ज्यादातर कारोबारी इंसानों के स्थान पर चौबीसों घंटे तैनात रहने वाली एआई-मशीनों पर निर्भर होना पसंद करेंगे।
हालांकि हो सकता है कि इसमें आगे चलकर स्थिरता आए और एआई के जानकारों की बदौलत नई नौकरियों का सृजन हो। कुछ क्षेत्रों में अभी से एआई के बेशुमार फायदे नजर आने लगे हैं। जैसे चिकित्सा विज्ञान के विकास में इसके सकारात्मक इस्तेमाल की बहुत-सी संभावनाएं हैं। यही वजह रही कि जब वर्ष 2023 में ब्रिटेन ने ‘एआई सुरक्षा शिखर सम्मेलन’ का आयोजन किया था, तो वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री ऋषि सुनक एआई को बहुतेरे क्षेत्रों में मददगार तकनीक के रूप में देखने और सतर्क ढंग से इसके इस्तेमाल की वकालत करते नजर आए थे। ध्यातव्य है कि यदि किसी तकनीक के फायदे-नुकसान की तस्वीर साफ होने से पहले ही उसे खलनायक मान लिया जाता तो परमाणु ऊर्जा से लेकर कंप्यूटर-इंटरनेट जैसे असंख्य आविष्कार मानवता की सेवा और बेहतरी का वह काम कभी नहीं कर पाते, जैसा कि वे आज कर रहे हैं।
हालांकि, एआई की समस्याएं कुछ दूसरी हैं। जैसे, इससे ऐसी नकल का खतरा बढ़ा है जो असल की पहचान मुश्किल कर दे। इसका साइबर फ्रॉड में जो इस्तेमाल हो रहा है, वह चिंता की बात है। इससे कॉपीराइट के जो मुद्दे पैदा हुए हैं, उनकी अनदेखी करना अनुचित है। इसके जरिए निजी डेटा चुराने की जो चुनौतियां पैदा हुई हैं, हमारे सिरदर्द की असल वजह उन्हें होना चाहिए। शिक्षा में साहित्यिक चोरी को एआई ने जैसे पांव लगाए हैं, उसने मौलिकता की जरूरत मानो खत्म कर दी है- वह गलत परंपरा है।
फिलहाल इन समस्याओं का समाधान एआई के विभिन्न इंतजामों (टूल्स) पर पाबंदी के रूप में देखा जा रहा है। जैसे दुनियाभर के विश्वविद्यालय छात्रों की पढ़ाई और परीक्षा संबंधी आकलन-मूल्यांकन में एआई टूल्स को खारिज करने के लिए इनके इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर रहे हैं। पर क्या ये उपाय एआई से पैदा समस्याओं का तोड़ हैं। हमारा जवाब है- नहीं। इसका प्रबंध एआई के इस्तेमाल संबंधी सख्त और प्रभावी कानून बनाने से होगा। एआई से अगर डीपफेक सामग्री बनाई जाती है, तो ऐसा करने वालों की धरपकड़ करना और उन्हें दंड देना ज्यादा सही है। अगर कोई प्रकाशक या मॉडरेटर कॉपीराइट के तहत सुरक्षित की गई सामग्री (कंटेंट) का बिना इजाजत इस्तेमाल करता है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाना सही कायदा होगा। विचार इस पर करना होगा कि वे उपाय कौन से हो सकते हैं, जिनके तहत आम लोगों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुष्प्रभावों से बचाते हुए इसके तकनीकी विकास का लाभ दिलाया जा सके।
एआई पर अंकुश या पाबंदी लगाने के लिए ज्यादा बेहतर तरीका इस बारे में एक स्वैच्छिक व्यवहार निर्देशिका या फिर कोड ऑफ कंडक्ट अपनाना होगा, जिसमें कॉपीराइट, निजता (प्राइवेसी) और उपभोक्ता सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सोच-विचार किया गया हो। हो सकता है कि इन बातों के मद्देनजर फिलहाल बनाए गए कानून एआई से जुड़े मुद्दों के लिए नाकाफी हों। इसलिए पेरिस में आयोजित शिखर सम्मेलन जैसी और भी बैठकों की जरूरत है, जहां नीति-निर्धारकों के साथ-साथ बड़ी कंपनियों और नियामकों को एक मंच पर लाया जाए। ये मिलकर तय करें कि एआई का कहां और कितना इस्तेमाल करना है और नकल व निजता जैसे मुद्दों पर क्या रुख अपनाना है।

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लेखक मीडिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

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