दिल्ली की दिल्लगी में आफतों के तूफान
हम जिसे लोकतंत्र का पोषक कहते हैं वहां न्याय की तराजू के एक पलड़े के नीचे नोट चिपके हैं। फिलहाल दिल्ली की प्रसिद्धि में शीशमहल का नाम और जोड़ा जाए।
हेमंत कुमार पारीक
दिल्ली भी कैसी-कैसी हो जाती है। पता नहीं, नाम में ही कुछ ऐसा पेंच है कि हमेशा चर्चा में बनी रहती है। कभी धूल-धक्कड़ की वजह से तो कभी कचरे के पहाड़ की वजह से। शेक्सपियर ने कहा है कि नाम में क्या रखा है। पर हम देख रहे हैं कि आजकल नाम में ही सब कुछ है। इसलिए नाम बदलने के इस सीजन में किसी ने दिल्ली का नाम इंद्रप्रस्थ रखने की भली सलाह दी है।
अब इस प्रस्ताव से सौ फीसदी सहमत हुआ जा सकता है। जब दुनियाभर में नाम बदले जा रहे हैं तो दिल्ली ने क्या बिगाड़ा है? कारण भी है कि इस नाम के रहते दिल्ली सदियों से जुल्म सहती आ रही है। इतिहास गवाह है कि जो कोई भी दिल्ली के तख्त पर बैठा उसने दिल्ली को रबड़ की तरह ताना, खींचा और छोड़ दिया। तुगलक ने तो कोशिश भी की थी। दिल्ली के दर्द को समझा और उसे दौलताबाद ले गया। उसे मालूम था कि आगे चलकर उसकी और दुर्गति होनी है। पता नहीं कब हुड़दंगियों के दिमाग में कुछ चल जाए और फौज-पटाखे के साथ धावा बोल दें। फिर भी गद्दी पर बैठने को हर कोई लालायित दिखता है। वे भी जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। उन्हें ऊपर भी चैन नहीं है। दिल्ली का नाम सुनते ही उनका दिल धड़कने लगता है और कब्रें हरकत करने लगती हैं।
हालांकि वे दिल्ली से मीलों दूर हैं। फिर भी उनकी आत्माएं जमीन फाड़ बाहर आने को उतावली हो रही हैं। हो सकता है किसी भले मानुस की सलाह पर इन अत्याचारियों को इतनी दूर जगह दी। अगर दिल्ली में होतीं तो क्या हालत होती! फिलहाल बिजली, पानी आदि फ्री होने के बावजूद दिल्ली का बाशिंदा चैन की सांस नहीं ले पा रहा है। कभी तिहाड़ में हो-हल्ला मचने लगता है, कभी किसान झण्डा और डण्डा लिए बार्डर पर बैठ जाते हैं तो कभी हुड़दंगी शाहीन बाग में। अब बताइये कि नाम बड़ी चीज है कि नहीं? तुगलक महाशय ने ठीक ही तो किया था। अब ताकत तो देखिए कब्रों की? जरा सी हरकत पर खुदने लगती हैं। अभी तो एक ने हरकत की है। अगर यह खबर दूसरी कब्रों तक पहुंची तो क्या होगा?
हम जिसे लोकतंत्र का पोषक कहते हैं वहां न्याय की तराजू के एक पलड़े के नीचे नोट चिपके हैं। फिलहाल दिल्ली की प्रसिद्धि में शीशमहल का नाम और जोड़ा जाए। औरंगजेब ने रक्तपात और लूटपाट की। बावजूद इसके टोपी सीकर गुजारा किया। तराजू के एक पल्ले में लूटपाट रखें और दूसरे में सिली हुई टोपी। तो कहते हैं कि टोपी भारी पड़ेगी। शायद इसीलिए भाईसाहब ने टोपी पहन ली। टोपी को और वजनदार बनाने के लिए उस पर लिखवा दिया-‘मैं आम आदमी हूं।’