दाता एक आप भिखारी सारी दुनिया
मुकेश राठौर
हमारे यहां भीख मांगने और देने की पुरातन परम्परा रही है। तीर्थाटन हों या उद्घाटन, लोग बजट का कुछ हिस्सा मांगने वालों के लिए रखते चले आ रहे हैं। राजा-महाराजाओं द्वारा खुशी के मौकों पर द्वार खड़े याचकों की झोलियां धन-धान्य से भर देने के अनेक उदाहरण मिलते हैं। धीरे-धीरे यह प्रथा धंधा बन गई। प्रथा आम की तरह पनपती है जबकि धंधा बैरी की तरह बढ़ता है। यों ही कोई भिखारी नहीं बन जाता बेकारी, लाचारी और मुफलिसी से तंग आकर लोग भीख मांगने पर बाध्य होते हैं। जब से मोबाइल और मुफ्त की रेवड़ियां हाथ लगीं ये तीनों बीते दिनों की बात हो गई इसके बावजूद भीख का वजूद बना हुआ है।
देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में अबके बरस भिक्षावृत्ति प्रतिबंधित हो गई। होना भी चाहिए। स्वच्छ शहर में इस टाइप का अस्वच्छ धंधा शोभा नहीं देता। स्वच्छता के सात फेरे लेने को आतुर शहर में जब सड़कों का बिखरा कचरा साफ किया जा रहा हो, तो सड़क किनारे बैठे भिखारी क्यों नहीं? सभ्य समाज की नजर में भिखारी कचरा ही तो है। बीते दिनों यहां भीख देने वाले एक युवक पर मुकदमा दर्ज हुआ, क्योंकि उसने एक भिखारिन को भीख देकर नया नवेला नियम तोड़ा था।
लेकिन भीख कहां नहीं चलती? भीख सर्वव्यापी है। शहरों के बरअक्स गांवों में भी भीख मांगने वालों की कमी नहीं। जब गांव में भीख की हांडी शिख चढ़ जाती है तो भिखारी दही-हांडी खेलने शहर जा पहुंचते हैं। गांव में बच्चा जन्मे या पिताजी गुजरे बगैर ‘नेग’ जन्म पत्री नहीं बनती और न चिट्ठी फटती। पिताजी गुजर ही गए तो वारिस प्रमाण पत्र के लिए ‘भेंट’। पुश्तैनी भू के नामांतरण हेतु पटवारी को ‘दान’। अब इस ऋण पुस्तिका को लेकर गांव के सहकारी बैंक में ऋण माफी आवेदन करो तो ‘कटौत्रा’। अपने उपनाम के छोटे ओ को बड़ा औ करवाने जाओ तो मोबलाइजर की ‘मांग-पूर्ति’। बीस साल बाद अपना सारा रिकॉर्ड लेने पाठशाला जाओ तो ‘चाय-पानी’।
हफ्तेभर अंधेरे में रहने के बाद मशाल लेकर ढूंढ़ने पर मिले विद्युतकर्मी को खंभे पर चढ़ाओ तो ‘चढ़ावा।’ खेत के मिट्टी परीक्षण हेतु मिट्टी का नमूना देने से पूर्व ग्राम सेवक की ‘सेवा’। गांव के साप्ताहिक हाट बाजार में टोकरी भर मेथी की दुकान लगाओ तो सरपंच का आदमी ‘रसीद’ फाड़ने आ जाता है। तमाम बुराइयों के बावजूद हर दशहरे पर बुराई के प्रतीक रावण के दहन हेतु ‘चंदा’ भी देना पड़ता है। एक्चुअली हर मांगने वाला देने वाले की केवाईसी कर रहा है। नो योर कस्टमर।
चैरिटी एड फाउंडेशन वर्ल्ड गिविंग इंडेक्स के एक सर्वेनुसार देश के साठ प्रतिशत लोगों ने भीख देना स्वीकारा है, भीख लेने वाले हैं कि खुलकर स्वीकारते नहीं। नियमानुसार औपचारिक रूप से भीख देने वाले सब कार्रवाई की जद में आते हैं लेकिन भीख मांगने वाले नहीं। एक सवाल है भाई साहब मतयाचकों के बरअक्स क्या इधर भी मतदाता ही घाटे में रहेंगे?