त्याग से अटूट संबंध
एक बार वन में चलते हुए माता सीता को प्यास लगी। भगवान राम इधर-उधर पानी की तलाश में थे कि तभी एक मोर से उनकी मुलाकात हुई। मोर ने भगवान राम को बताया कि यहां से कुछ दूरी पर एक जलाशय है और उसने भगवान राम से कहा कि वह मार्ग में उनका पथ-प्रदर्शक बनेगा। मयूर ने प्रभु राम से कहा, ‘किंतु मार्ग में हमारी भूल-चूक होने की संभावना है।’ प्रभु राम ने पूछा, ‘ऐसा क्यों?’ मयूर ने उत्तर दिया, ‘क्योंकि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप पैदल चलेंगे। अतः मैं मार्ग में अपना एक-एक पंख बिखेरता जाऊंगा, ताकि आप जलाशय तक पहुंच सकें।’ जलाशय तक पहुंचते-पहुंचते मयूर ने एक-एक करके अपने सारे पंख गिरा दिए और वह मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया। लेकिन उसे यह सुकून था कि उसने प्रभु राम, जो जगत की प्यास बुझाने वाले हैं, उनकी प्यास बुझाने में योगदान दिया। तभी प्रभु श्री राम ने मयूर से कहा, ‘मेरे लिए तुमने जो पंख बिखेरे हैं और मेरी सहायता की है, उससे जो उपकार हुआ है और ऋणानुबंध चढ़ाया है, वह मैं अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा।’ इसी कारण द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने अपने माथे पर मयूर पंख धारण कर मयूर का ऋण चुकाया और अपने वचन का पालन किया।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा