तेजवान की कसौटी
अंगिरा ऋषि का शिष्य उदयन अत्यंत तेजस्वी सरल तथा सेवाभावी वृत्ति का था। गुरु ने देखा कि कुछ दिनों से वह आलस्य व अहंकार का शिकार होता जा रहा है। एक दिन ऋषि ने उदयन से कहा, ‘वत्स, सामने रखी अंगीठी में झांक कर देखो, कोयला दहकने के कारण कितना तेजवान लग रहा है। इसे चिमटे से निकालकर मेरे सामने रख दो जिससे इसकी तेजस्विता का पास से अवलोकन कर सकूं।’ उदयन ने चिमटे से कोयला उठाया और गुरुदेव के पास रख दिया। कुछ ही क्षणों में कोयला अंगारे की जगह राख में बदल गया। ऋषि ने उदयन को समझाया, ‘वत्स, अंगीठी का सबसे चमकदार कोयला जिस प्रकार अग्नि के तेज से विमुख होते ही राख बन गया उसी प्रकार सक्रिय और प्रतिभावान व्यक्ति अभ्यास, स्वाध्याय तथा सक्रियता से विमुख होते ही आलस्य तथा अहंकार का शिकार होकर निस्तेज हो जाता है।’ उदयन गुरु जी का आशय समझ गया तथा उसने अहंकार और आलस्य त्याग कर पुनः कर्मठ जीवन बिताना शुरू कर दिया।
प्रस्तुति : डॉ. जयभगवान शर्मा