तंत्र की नाकामी
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भयावह भगदड़ में जिन 18 लोगों की जान गई, उसे महज दुर्घटना नहीं कहा जा सकता। सही मायने में यह योजना, दूरदर्शिता और जवाबदेही की विफलता थी। जैसा कि पहले से पता था कि रोज हजारों तीर्थयात्री प्रयागराज महाकुंभ के लिये ट्रेनों में चढ़ने के लिये उमड़ रहे थे, अधिकारी उस भारी भीड़ का अनुमान लगाने और उसे प्रबंधित करने में विफल रहे। जिसके चलते यह दुखद हादसा घटित हुआ। पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल समेत कई विपक्षी नेताओं ने रेल मंत्री की जवाबदेही तय करने की मांग है। उनका कहना है कि यात्रियों की अप्रत्याशित संख्या में वृद्धि को देखते हुए भीड़ नियंत्रण के लिये उपाय करने में सरकार विफल रही है, जो एक गंभीर चूक है। निस्संदेह, महाकुंभ पहली बार नहीं हो रहा है। रेलवे यातायात संचालन में इसके पैमाने और प्रभाव का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। इसके बावजूद इस त्रासदी का सामने आना कई सवालों को जन्म देता है। सवाल मृतकों व घायलों को दिये जाने वाले मुआवजे को लेकर भी है। जबकि सामान्य दिनों में वर्ष 2023 की मुआवजा निर्देशिका में निर्धारित मुआवजा राशि में बड़ा अंतर है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार प्रणालीगत मुद्दों को ठीक करने के बजाय नकद भुगतान बढ़ाकर तंत्र की साख को हुई क्षति की पूर्ति का प्रयास कर रही है। यही वजह है कि विपक्षी दल रेलमंत्री के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। हादसे की सूचना की लीपापोती को लेकर भी सवाल उठे हैं। कहा जा रहा है कि ऐसे रेल हादसों के वक्त रेलमंत्री के रूप में नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए लाल बहादुर शास्त्री और नीतीश आदि ने अपने पद से त्यागपत्र दिए थे। दरअसल, इस्तीफे से परे रेलवे में प्रणालीगत सुधार की भी आवश्यकता है। भारतीय रेलवे को अपने भीड़ प्रबंधन प्रोटोकॉल में सुधार करने की जरूरत है। खासकर धार्मिक पर्वों और त्योहार की भीड़ के दौरान अतिरिक्त सावधानी की जरूरत महसूस की जाती है।
सही मायनों में दिल्ली समेत तमाम रेलवे स्टेशनों में तीर्थयात्रियों की अप्रत्याशित भीड़ को देखते हुए टिकटों के वितरण और नई ट्रेनों के संचालन को लेकर जिस संवेदनशील प्रशासन की जरूरत थी, वह नजर नहीं आया। ट्रेनों के आने के समय और उनके स्थगित होने पर कारगर वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत थी,वह नजर नहीं आई। दिल्ली हादसे के बारे में कहा जा रहा है कि एक नाम की दो ट्रेनों को लेकर मची भगदड़ हादसे की वजह बनी। एक अनुमान के अनुसार रेलवे प्रयागराज जाने वाले यत्रियों के लिए हर घंटे डेढ़ हजार सामान्य टिकट जारी कर रहा था। जिसके चलते प्लेटफॉर्मों पर तिल धरने की जगह नजर नहीं आ रही थी। निश्चित जगह में बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करने तथा सीमित मात्रा में टिकट जारी करने की जरूरत थी। पैदल यात्रियों के लिये बने ओवरब्रिज पर लोग पहले ही बैठे थे और नई ट्रेन के आने की घोषणा से मची भगदड़ में कुछ लोग गिरे तो अन्य कई लोग गिरते गए, और दुखद हादसा हो गया। अनुमान लगाना चाहिए था कि सप्ताहांत में यात्रियों की संख्या बढ़ेगी, उसी हिसाब से चौकस सुरक्षा तथा ट्रेनों का संचालन व टिकट वितरण किया जाना चाहिए। हाल के दिनों में तीर्थ यात्रियों के रेल में असुरक्षित सफर करने के वीडियो सोशल मीडिया पर लगातार आ रहे थे। यहां तक कि कंफर्म टिकट वाले यात्री भी ट्रेनों में जगह नहीं पा रहे थे। आरक्षित डिब्बों में घुसने के लिये टकराव तक देखा जा रहा था। रेलवे को सुनिश्चित करना चाहिए था कि सफर के लिये यात्री अपनी जान को जोखिम में न डालें। यात्रियों के स्तर पर भी जिम्मेदार व अनुशासित व्यवहार होना चाहिए था। तीर्थयात्रियों में जो संयम व धैर्य होना चाहिए, वह भी अव्यवस्था के चलते चूकता नजर आया है। सही मायनों में तीर्थयात्री यदि अपनी सुरक्षा के प्रति गंभीर रहें तो ऐसे हादसे टाले जा सकते हैं। दरअसल, भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में भीड़ प्रबंधन के वैज्ञानिक तौर-तरीके अपनाये जाने की जरूरत है। मुट्ठीभर पुलिसकर्मियों के सहारे भीड़ नियंत्रण संभव नहीं है। बहरहाल, हादसे की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।