डेल्टा की घातकता
हाल के वर्षों में उन तमाम घटनाओं ने हर आम भारतीय को विचलित किया, जिसमें हमने लोगों को खेलते वक्त, दफ्तर में काम करते समय, मंच पर नृत्य करते अचानक बेहोश होकर गिरते देखा। इसे साइलेंट हार्ट अटैक के रूप में देखा गया। तुरत-फुरत अस्पताल ले जाने के बाद पता चला कि उस व्यक्ति की तो मृत्यु हो चुकी है। तब कुछ लोगों ने वैक्सीन के दुष्प्रभावों का जिक्र किया, लेकिन कोई अंतिम निष्कर्ष सामने नहीं आया। लेकिन अब एक भारतीय शोध में इस अचानक दिल की धड़कन बंद होने की वजह का पता लगाने का दावा किया गया है। यह तथ्य आईआईटी इंदौर और आईसीएमआर के सहयोग से किए गए नये शोध में सामने आया है। शोध बताता है कि कोविड-19 का डेल्टा वैरिएंट पिछले दिनों की साइलेंट हार्ट अटैक की घटनाओं की वजह बना है। साथ ही कुछ लोगों में थायराइड के अनियंत्रित होने की वजह भी इसी वैरिएंट को बताया गया है। बताया जाता है कि हाल ही में, यह शोध ‘जर्नल ऑफ प्रोटिओम रिसर्च’ में प्रकाशित हुआ है। यह खुलासा ऐसे समय में हो रहा है जब कोविड-19 के एक नये वैरिएंट ने एशिया और अमेरिकी देशों में लोगों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। भारत में भी कुछ मौतों के साथ इसके संक्रमण के बढ़ते मामले दर्ज किए जा रहे हैं। दरअसल, आईआईटी इंदौर और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के साझे प्रयास से हुए शोध में 3134 मरीजों के जुटाए डेटा का उपयोग करके इसे अंजाम दिया गया। जिसमें कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर के दौरान मूल वैरिएंट, अल्फा, बीटा, गामा व डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित रोगियों के शरीर के रसायनों में विभिन्न बदलावों से जुड़े डेटा का विश्लेषण किया गया। इसमें शारीरिक रसायनों में आए बदलाव के साथ ही स्पाइक प्रोटीन के संपर्क में आने वाले फेफड़ों और कोलन सेल का भी विश्लेषण किया गया। हालिया शोध में शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि डेल्टा वैरिएंट ने हार्मोन संतुलन बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभायी।
दरअसल, शोध में पाया गया कि डेल्टा वैरिएंट के चलते मानव शरीर में रासायनिक असंतुलन पैदा हुआ था। फलत: कैटेकोलामाइन और थायराइड हार्मोन पैदा करने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न हुआ। जिसकी वजह से कोविड से उबरे लोगों में कालांतर साइलेंट हार्ट अटैक और थायराइड में व्यवधान की स्थितियां पैदा हुई। इसी हालिया अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ कि कोरोना के शिकार हुए लोगों में स्वस्थ होने के बावजूद, उनके शरीर में यूरिया और अमीनो एसिड मेटाबोलिज्म में व्यवधान होने की पुष्टि भी हुई है। दरअसल, अचानक होने वाली मौतों, जिसे आमतौर पर साइलेंट हार्ट अटैक कहा जाता है, में वे लक्षण नहीं दिखाई देते जो सामान्यत: हार्ट अटैक होने पर नजर आते हैं। मसलन बेचैनी, पसीना आना, सीने में दर्द होना और सांस फूलने जैसे लक्षण दिखाई नहीं दिए। इसमें व्यक्ति कटे पेड़ की तरह अचानक नीचे गिर जाता है, जब तक उसके उपचार की कोशिश होती है तब तक पता चलता है कि उसकी मृत्यु हो चुकी है। दरअसल,यह स्थिति कार्डियक अरेस्ट से भिन्न है, जिसमें दिल की धड़कन बंद होती है। चिकित्सक इस स्थिति से बचाव के लिये नियमित आधे घंटे टहलने, गैर-संक्रामक रोगों मसलन उच्च रक्तचाप व मधुमेह पर नियंत्रण, तली-भुनी चीजों व डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों से परहेज, सिगरेट-शराब से तौबा करने की सलाह दे रहे हैं। साथ ही साइलेंट हार्ट अटैक आने पर उसे तुरंत कार्डियो पल्मोनरी रिसैसिटेशन यानी सीपीआर देने की राय दे रहे हैं। जिसे लगातार देने से जान बचाने की कोशिश की जा सकती है। जिसको लेकर समाज में जागरूकता अभियान चलाने की भी जरूरत है, क्योंकि रोगी की जान बचाने में सहायक साबित हो सकता है। जिसके बाद आपातकालीन चिकित्सा सुविधा किसी हद तक मददगार साबित हो सकती है। निस्संदेह, शोध के निष्कर्ष सचेतक और मार्गदर्शक हैं। सुखद यह भी है कि यह शोध भारतीय परिवेश में डेल्टा वैरिएंट के प्रभाव से उपजे साइलेंट हार्ट अटैक को लेकर दृष्टि को स्पष्ट करता है। जिसका लाभ भविष्य में नये वैरिएंट के प्रभावों का विशद् अध्ययन करने में भी हो सकता है।