ट्रंप है तो कुछ भी मुमकिन
आलोक पुराणिक
कल्पना कीजिये, गैंगवार चल रहा है, कुछ बंदे इधर हैं, कुछ बंदे उधर हैं। ठायं-ठायं गोलियां चल रही हैं। एक गैंगस्टर देखता है कि उसकी साइड का एक बंदा गायब है। बड़ा खास बंदा था वह, हथियार वगैरह लाता था वह। अरे यह क्या हुआ, वह बंदा अब सामने वाली एंटी पार्टी के साथ जाकर मिल गया है, वहां से ठायं-ठायं कर रहा है।
गैंगस्टर चीख रहा है, भाई तू तो मेरे साथ था, वहां कैसे निकल लिया।
उसे जवाब मिलता है- पैसा निकाल, पैसा निकाल, तब आऊंगा तेरी तरफ। वरना इधर सैटिंग है मेरी।
यूक्रेन युद्ध में कुछ ऐसा ही हो रहा है, इधर से उधर जो गया है शख्स, वह है डोनाल्ड ट्रंप।
जो गैंगस्टर परेशान है अपने बंदे के जाने से, वह शख्स है यूक्रेन का राष्ट्रपति जेलेंस्की।
गैंगवार के नियम बदल गये हैं। अब बंदे बहुत तेजी से इधर से उधर, उधर से जाने क्या-क्या किधर-किधर जा रहे हैं। ट्रंप कारोबारी आदमी हैं। कारोबारी आदमी अपनी लड़ाई भी अपनी तरह से लड़ता है। ट्रंप कारोबार को लड़ाई की तरह करते हैं और लड़ाई को कारोबार की तरह करते हैं।
अमेरिका के पहले वाले राष्ट्रपति अलग स्टाइल के बंदे थे। जा तुझे गिफ्ट किया स्टाइल में, बहुत-सी रकम यूक्रेन को दे दी। अब ट्रंप कह रहे हैं, जेंलेस्की भाई उसका हिसाब दो। जेलेंस्की के पास हिसाब नहीं है, तो जेलेंस्की को अपनी जमीन में छिपे खनिज आइटम देने पड़ेंगे ट्रंप को। ट्रंप मुफ्त में कुछ न देता, किसी का न देता। ट्रंप भीख भी किसी को देते होंगे, उससे रसीद ले लेते होंगे कि पुण्य के इतने प्वाइंट ट्रंप महोदय के खाते में हस्तांतरित हो गये हैं। भिखारी से भी लड़ सकते हैं ट्रंप। मतलब भिखारी टाइप के देशों से भी ट्रंप नाराज हैं और लड़ते हुए दिख रहे हैं। भिखारियों से भी लड़ सकते हैं, उनसे वसूली कर सकते हैं। ट्रंप है, तो मुमकिन है।
एक बात तो समझ में आती है हाल की मारधाड़ से कि कोई भी लड़ाई अपने बूते ही लड़नी चाहिए। देख लूं, मेरे भाई को आने दे-टाइप धमकी देकर लड़ने वालों के दिन बहुत बुरे गुजर रहे हैं। जिस भाई के बूते धमकी दे रहे हैं, वही भाई रकम के लालच में दुश्मन पार्टी से जा मिल रहा है आजकल। भाइयों की क्वालिटी गिरती जा रही है, भाई पहले अमेरिकन क्वालिटी के होते थे, अब उनकी क्वालिटी चाइनीज हो गयी है। इसलिए असली चाइनीज भी प्राब्लम में आ गये हैं। चाइनीज को समझ आ रहा है कि ट्रंप को बेवकूफ न बनाया जा सकता। दरअसल किसी भी कारोबारी को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। मेरा फायदा क्या है, यह सवाल ट्रंप पूछ रहे हैं, सब तरफ। चीन ने बहुत फायदा कमा लिया है अमेरिका से। अब अमेरिका पूछ रहा है कि मेरा फायदा क्या है। चीन को मुनाफा लेने की ही आदत रही है, अब देने की आदत नहीं है। पुरानी आदत छूटती कहां है। छूट जायेगी, छूट जायेगी, ट्रंप है तो मुमकिन है।