टैरिफ का कहर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मनमाने टैरिफ हमले और चीन की जवाबी कार्रवाई से विश्व के तमाम शेयर बाजार लहूलुहान हुए हैं। कई अन्य देशों की भी जवाबी कार्रवाई के फैसले से दीर्घकालीन व्यापार युद्ध की आशंका बलवती हो गई है। जिससे पूरी दुनिया में मंदी आने की चेतावनी दी जा रही है। निश्चित तौर पर इससे आर्थिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इस संशय और अनिश्चितता के चलते शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर बिकवाली से दुनिया के तमाम शेयर बाजार धराशायी हुए हैं। निवेशकों को लाखों करोड़ का नुकसान हो रहा है। आने वाले समय में टैरिफ वॉर के और बढ़ने की आशंका है क्योंकि चीन ने नौ अप्रैल को होने वाली विश्व व्यापार संगठन की बैठक में ‘नई व्यापार चिंता’ के रूप में अमेरिका की टैरिफ नीति का मुखर विरोध करने का फैसला किया है। चीन का मानना है कि अमेरिका के एकतरफा संरक्षणवाद का दुनिया के देशों को विरोध करना चाहिए, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली की सुरक्षा के लिये एक व्यापक गठबंधन बनाने की जरूरत बतायी है। इन हालात में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते अमेरिकी राष्ट्रपति टैरिफ थोपने के फैसले को वापस लेंगे? या फिर पहले की तरह टैरिफ लगाने की धौंस देते रहेंगे। वैसे इस बात की संभावना कम ही है कि जिद्दी ट्रंप अपने बढ़े कदमों को पीछे खींचेंगे। यहां सवाल यह भी है कि ट्रंप के टैरिफ का जवाब देने वाले देश पलटवार करने में कितने सक्षम हैं। वहीं भारत ने दीर्घकालीन व व्यापक हितों को देखते हुए टकराव टालने का प्रयास किया है और बातचीत का रास्ता चुना है। लेकिन इस अनिश्िचतता के दौर में निवेशकों में बढ़ती असुरक्षा ने भारत सरकार पर नीतिगत फैसले लेने के लिये दबाव बनाया है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी संभावना है कि चीन व प्रतिकार करने वाले अन्य देशों के दबाव के कारण ट्रंप अपनी आक्रामक रणनीति को लंबे समय तक जारी नहीं रख पाएंगे।
विडंबना यह है कि अमेरिका राष्ट्रपति के इन कदमों से खुद अमेरिका के लिये भी बड़ी आर्थिक चुनौती पैदा हो सकती है। येल विश्वविद्यालय में बजट लैब के एक विश्लेषण के अनुसार ट्रंप सरकार के प्रतिशोधात्मक टैरिफ से औसत अमेरिकी परिवार को सालाना चार हजार दो सौ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है। इतना ही नहीं अमेरिका में मंदी और तेज मुद्रास्फीति का खतरा भी मंडरा रहा है। वहीं भारत जैसे अन्य विकासशील व विकसित देशों को आशा है कि वैश्विक व घरेलू दबाव ट्रंप को उनकी भूल का अहसास कराएगा। जिससे वे अधिक आर्थिक अराजकता पैदा करने वाले फैसलों से पीछे हटेंगे। वैसे एक हकीकत यह भी है कि अमेरिका अपने कई उत्पादों के लिये अन्य देशों पर निर्भर है। उसके उद्यमियों ने भी दूसरे देशों में औद्योगिक यूनिट लगा रखे हैं। ऐसे में उन देशों पर टैरिफ लगाने से अमेरिकी जनता द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं के दाम भी स्वाभाविक रूप से बढ़ेंगे। यही वजह है कि अमेरिका के शेयर बाजारों में भी बड़ी गिरावट देखी गई है। जिसका असर पूरी दुनिया पर भी दिख रहा है और स्थितियां कोरोना काल के संकट जैसी बन गई हैं। वैसे आज भी दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाएं कोरोना काल से पूर्व की आर्थिक स्थिति पर लौटने के लिये संघर्षरत हैं। कमोबेश ये स्थितियां बड़े आर्थिक संकट की आहट दे रही हैं। जिसकी वजह है कि अमेरिका समेत अन्य देशों में निवेश बाधित होने, उत्पादन में गिरावट, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान से वैश्विक स्तर पर महंगाई उत्पन्न होने की चिंताएं बढ़ रही हैं। जिसका तमाम क्षेत्रों पर असर पड़ने से आम लोगों का जीवनयापन कठिन होता जाएगा। खपत कम होने से अर्थव्यवस्था का चक्र धीमा हो जाएगा। यही वजह है कि ट्रंप के मनमाने टैरिफ युद्ध से दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाएं खुद को बचाने की जद्दोजहद में जुटी हैं। हालांकि, खुद अमेरिका भी इसके दुष्परिणामों से अछूता नहीं रहेगा। निवेशकों की घबराहट से उसकी अर्थव्यवस्था भी चरमराएगी। आने वाले वक्त में उसके दांव ही उलटे पड़ने वाले हैं। घोर संरक्षणवाद के चलते वह कालांतर में शेष दुनिया से कट जाएगा।