For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

ज्ञान का योद्धा

04:00 AM May 06, 2025 IST
ज्ञान का योद्धा
Advertisement

पिता की मृत्यु के बाद मात्र चौदह वर्ष की आयु में जुर्गिस बिलिनिस पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी। कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन करते हुए, जब वे 22 वर्ष के हुए, तो उनके भीतर फिर से शिक्षा प्राप्त करने की तीव्र इच्छा जागी। इसी उद्देश्य से वे गांव से शहर की ओर रवाना हुए। उनकी मुलाकात दो राहगीरों से हुई। उन्होंने सुझाव दिया, ‘तुम पढ़ाई के साथ-साथ धन भी कमा सकते हो। इसके लिए बस तुम्हें सीमा पार जाकर वहां से लिथुआनियाई भाषा की किताबें लानी होंगी और इस पार बेचनी होंगी। इसके बदले में तुम्हें पैसे मिलेंगे।’ उन दिनों रूस के शासन के दौरान लिथुआनियाई भाषा, उसकी लिपि और उसके प्रकाशन पर प्रतिबंध था। इस तरह जुर्गिस बिलिनिस धीरे-धीरे लिथुआनियाई भाषा की पुस्तकों के एक प्रसिद्ध तस्कर बन गए। लेकिन वे इसे तस्करी नहीं, बल्कि राष्ट्रसेवा मानते थे। आख़िरकार एक दिन लिथुआनियाई भाषा से प्रतिबंध हटा दिया गया। लोग समझ गए कि पुस्तकों और ज्ञान के माध्यम से ही साम्राज्यवाद को हराया जा सकता है। जुर्गिस बिलिनिस लोगों के बीच सम्मानित व्यक्ति बन गए। उनके योगदान को याद करते हुए हर वर्ष 16 मार्च को, उनके जन्मदिन के दिन, ‘डे ऑफ बुक स्मगलर्स’ मनाया जाता है।

Advertisement

प्रस्तुति : रेनू सैनी

Advertisement
Advertisement
Advertisement