जीवन को आध्यात्मिक पूर्णता देने वाला दिव्य सेतु
उत्तराखंड की हिमालयी वादियों में स्थित चार धाम केवल तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और परमात्मा की अनुभूति का पवित्र माध्यम हैं। यमुनोत्री से आरंभ होकर गंगोत्री, केदारनाथ और अंत में बदरीनाथ तक की यह यात्रा आस्था, तप और आत्मिक जागरण का मार्ग बन जाती है। यहां के मंदिर शाश्वत शांति और मोक्ष की अनुभूति कराने वाले दिव्य धाम हैं। वास्तव में, चार धामों की यह यात्रा जीवन को आध्यात्मिक पूर्णता की ओर ले जाने वाला एक दिव्य सेतु है।
डॉ. बृजेश सती
धर्म नगरी हरिद्वार से आगे का संपूर्ण क्षेत्र देवभूमि कहलाता है। इस भूभाग में कुछ स्थान अत्यन्त पवित्र और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं। मध्य हिमालय में आस्था के चार धाम—बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री स्थित हैं। यहां स्थित मंदिर केवल आस्था के केंद्र ही नहीं, बल्कि देश की एकता और अखंडता के प्रतीक भी हैं।
बदरीनाथ, देश के चार धामों में एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। नारायण का यह धाम जनपद चमोली में स्थित है। दूसरा धाम केदारनाथ भगवान शिव को समर्पित है, जहां शिव की पूजा लिंग रूप में की जाती है। यह धाम रुद्रप्रयाग जनपद में है। दो अन्य धाम गंगा और यमुना को समर्पित हैं। उत्तरकाशी जनपद में स्थित इन मंदिरों में गंगाजी और यमुनाजी की पूजा की जाती है।
उत्तराखंड स्थित चार धाम देश के ऐसे तीर्थ स्थल हैं, जहां कपाट खुलने और बंद होने की अनोखी परंपरा है। यहां छह महीने मनुष्यों और अगले छह महीने देवताओं द्वारा भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। अनादिकाल से चली आ रही इस परंपरा के अनुसार इस वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया (अक्षय तृतीया) 30 अप्रैल से चार धाम स्थित मंदिरों के कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू होगी। इस दिन यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिरों के कपाट खुलेंगे। 2 मई को केदारनाथ मंदिर और 4 मई को बदरीनाथ मंदिर के द्वार खुलने तक यह परंपरा चलेगी।
उत्तराखंड का अधिकांश क्षेत्र पांडवों की कर्मस्थली रहा है। पहले अज्ञातवास के दौरान और फिर कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद पांडव यहां आए। पांडवों ने गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ के दर्शन कर यहीं से स्वर्गारोहण के लिए प्रस्थान किया। यहां स्थित कई पौराणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के मंदिर पांडवकालीन हैं।
आदि गुरु शंकराचार्य का चार धामों से आध्यात्मिक जुड़ाव रहा है। आठवीं सदी में अपनी दिग्विजय यात्रा के दौरान आदि गुरु शंकराचार्य ने गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ और केदारनाथ का परिभ्रमण कर मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुनः स्थापना की। बदरीनाथ में भगवान के विग्रह को स्थापित कर मंदिर का पुनरुद्धार किया। शंकराचार्य परंपरा के अनुसार ही यहां पूजा-अर्चना की जाती है। इसके अतिरिक्त गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के पुनर्निर्माण में भी शंकराचार्य की महत्वपूर्ण भूमिका रही। जीवन के अंतिम समय में भगवद्पाद शंकराचार्य ने केदारनाथ में देह त्याग किया।चार धामों में टिहरी राजदरबार द्वारा किए गए उल्लेखनीय कार्य किसी से छिपे नहीं हैं। देश की आजादी तक गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर टेम्पल बोर्ड द्वारा संचालित किए जाते थे। इसके लिए राजदरबार की ओर से हर प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाती थीं। इसके अलावा टिहरी राजदरबार बदरीनाथ मंदिर से जुड़ी धार्मिक परंपराओं के निर्वहन के साथ ही अन्य व्यवस्थाएं भी करता था। बदरीनाथ मंदिर में रावल परंपरा की शुरुआत का श्रेय भी टिहरी राजदरबार को ही जाता है। मंदिरों का प्रबंधन और आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजदरबार ने विशेष व्यवस्था की। इसके लिए गूठ गांव और सदावर्त गांव रावल को दिए गए। वर्तमान में भी राजपरिवार की ओर से प्राचीन परंपराओं का निर्वहन किया जाता है।
ब्रिटिश काल में चार धाम यात्रा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। यात्रा पर आने वाले यात्रियों के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से स्वास्थ्य सेवाएं और सड़क की व्यवस्थाएं कराई जाती थीं। चार धामों में यात्री कई पड़ावों की यात्रा के बाद पैदल पहुंचते थे। हरिद्वार तक रेल और सड़क की सुविधाएं थीं। इसके आगे की यात्रा पैदल की जाती थी।
देश की आजादी के बाद यात्रा व्यवस्थाएं और प्रबंधन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किए जाते थे। हालांकि उस समय यात्रियों की संख्या बहुत सीमित होती थीं। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद चार धाम यात्रियों की संख्या में वर्ष दर वर्ष वृद्धि हो रही है। यह आंकड़ा पचास लाख पार कर गया है।उल्लेखनीय है कि चार धामों में स्थित मंदिरों के कपाट खुलने की अलग-अलग परंपराएं हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के कपाट अक्षय तृतीया के दिन श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुलते हैं। हालांकि, मंदिर के द्वार खुलने का मुहूर्त चैत्र नवरात्रि में तय किया जाता है। गंगोत्री मंदिर का मुहूर्त चैत्र प्रतिपदा और यमुनोत्री मंदिर का चैत्र शुक्ल षष्ठी (यमुना जयंती) के दिन निर्धारित किया जाता है। बदरीनाथ मंदिर की तिथि वसंत पंचमी और केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने की तिथि और समय महाशिवरात्रि के दिन तय होता है।
चार धामों की यात्रा का क्रम वामावर्त है। सबसे पहले यमुनोत्री में यमुना के दर्शन, फिर गंगोत्री में गंगा, इसके बाद केदारनाथ और अंत में बद्री विशाल के दर्शन का महत्व है। इसलिए श्रद्धालु सबसे पहले दर्शन के लिए यमुनोत्री धाम पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि यमुनाजी के दर्शन से भक्ति, मां गंगा के दर्शन से ज्ञान, केदारेश्वर महादेव के दर्शन से वैराग्य और बदरी विशाल के दर्शन से मोक्ष प्राप्त होता है।
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बताते हैं कि यहां के चार धाम आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा पर आधारित हैं। जो श्रद्धालु देश की चार दिशाओं में स्थित चार धामों की यात्रा किन्हीं कारणों से नहीं कर पाते, यदि वे उत्तराखंड स्थित चार धामों की यात्रा कर लें तो उन्हें वही फल प्राप्त होता है, जो द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम की यात्रा और दर्शन से प्राप्त होता है।