जीवन के अनुभवों की अभिव्यक्ति
सुशील ‘हसरत’ नरेलवी
काव्य-कृति ‘पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती’ वरिष्ठ कवि कुल राजीव पंत का प्रथम काव्य-संकलन है, जिसमें छंदमुक्त शैली में लिखी 59 कविताएं समाहित हैं। इसके अतिरिक्त, राजीव पंत की लेखनी कहानी और व्यंग्य लेखन में भी सक्रिय है।
इस काव्य-संग्रह में प्रकृति के विभिन्न रूपों और उसके मनोवैज्ञानिक प्रभावों का चित्रण किया गया है। कविताओं में पहाड़ों की सुंदर संस्कृति और उसके भावनात्मक जुड़ाव को प्रस्तुत किया गया है, और साथ ही आधुनिकता की आड़ में इस संस्कृति का क्षय होने का दुख भी व्यक्त किया गया है। पहाड़ का प्रतीकात्मक रूप में बदलना और नए अर्थों में मुखर होना इन कविताओं के कथ्य को गहरी सार्थकता प्रदान करता है। जीवन के विभिन्न पड़ावों और संघर्षों को प्रतीकों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, जैसे ऊबड़-खाबड़ पगडंडियां और ढलान।
संग्रह की कई कविताएं गहरे भावों को उजागर करती हैं, जो पाठक को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती हैं। ‘रफू का काम’ कविता में रोज़ी-रोटी की कशमकश को प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त किया गया है, वहीं ‘छाता’ कविता में बच्चों की कल्पनाशीलता और उनके निरंतर बदलते दृष्टिकोण को दर्शाया गया है। ‘पानी चोर’ कविता में जीवन की निराशा और उम्मीद की खोज की कथा है, जबकि ‘नदी एक यात्रा से’ में नदी के माध्यम से जीवन के निरंतर प्रवाह और बदलते रूपों को दर्शाया गया है।
संग्रह की कविताओं में प्रकृति के विभिन्न अंगों का चित्रण किया गया है, जिनके माध्यम से मनोवैज्ञानिक द्वंद्व और भावनाओं के विभिन्न आयाम सामने आते हैं। इन कविताओं में धूल, धूप, हवा, बारिश, पहाड़, पेड़, नदी, पंछी, बादल, मिट्टी, और बर्फ जैसे प्रतीकों के माध्यम से गहरे अर्थों की अभिव्यक्ति की गई है। कविताओं में अंतर्लय की समृद्धि है और प्रकृति को कविता के कथ्य में बखूबी पिरोया गया है। छंदमुक्त शिल्प होते हुए भी इन कविताओं की शैली आकर्षक और जीवंत प्रतीकों से भरी हुई है।
पुस्तक : पृथ्वी किताबें नहीं पढ़ती कवि : कुल राजीव पंत प्रकाशक : प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 250.