जीत है न ही हार, आ बैल मुझे मार
शमीम शर्मा
एक कहावत है कि आ बैल मुझे मार। सबसे ज्यादा बैलों को आमंत्रण महिलाओं ने दिया है। वे ही उसे बुला-बुलाकर स्वयं को आहत करवाती हैं और फिर पछताती हैं। महिलाओं के पास पहले घर की साफ-सफाई और चौका-चूल्हा था। फिर उन्होंने बैल को कहा कि हम नौकरी भी करंेगी। करने लगीं। बच्चे ट्यूशन पढ़ने जाया करते। या ट्यूटर घर आ जाया करता। अब महिलाओं ने बैल को फिर बुलाया और बोलीं कि अपने बच्चों को हम खुद ही होम वर्क करवायेंगी। करवाने लगीं। बच्चों के पापा बच्चों को हॉबी क्लासों में लेकर जाया करते। छोड़ कर आते, फिर लेकर आते। महिलाओं ने फिर बैल को बुलाया और कहा कि हम स्कूटी सीख कर खुद ही बच्चों को छोड़ने-लाने का काम करंेगी। करने लगीं।
बैल भी हैरान होता रहा कि कैसी नस्ल की औरतें हैं जो खुद का दलिया बना रही हैं। बैल को हर बार यही लगता रहा कि महिलाएं उड़ता हुआ तीर पकड़ कर अपने सीने में घोंपने पर आमादा हैं तो वह क्या कर सकता है।
महिलाएं यहीं नहीं रुकीं बल्कि कार चलानी सीख ली। अब रिश्तेदारी में कहीं जाना होता तो पहले तो बेचारियां सूटकेस जंचाती हैं, रास्ते का खाना पैक करती हैं और फिर पति से कहती हैं- कार चलाऊंगी और पति महोदय को ड्राइवर के साथ वाली सीट मिलनी शुरू हो गई। इसे कहते हैं आ बैल मुझे मार। अब हांफ गई हैं। घर का सारा काम, बाजार का सारा काम, बच्चों का सारा काम, नौकरी की रेलमपेल ऊपर से बॉस की रीरी-पीपी। यह सब महिलाओं के कंधों पर आन नहीं पड़ा है बल्कि उन्होंने खुद ओढ़ लिया है। परिणाम यह कि उम्र से पहले थकी-थकी और बुझी-बुझी सी लालटेन जैसी अवस्था में ढलने लगी हैं। कई बेचारियों की हालत यह हो गई है कि सर्दियों में अगर उन्हें अलादीन का चिराग मिल जाये तो वे उसे मेथी चूंटने और मटर छीलने पर लगा देंगी।
शुक्र है कि अब चक्की चलाने का काम नहीं रह गया। आटा-बेसन, दाल-दलिया आदि दले दलाये पैक्ड मिलने लगे हैं। पर अब महिलाएं काम की चक्की में पिस रही हैं। यदि वह कभी-कभार कह दे कि आज बाहर खाने चलते हैं तो झट बड़ों के मुंह से निकलता है कि इसके हाड़ हराम हो गये हैं, इसे बाहर के खाने की पड़ी रहती है।
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एक बर की बात है अक रामप्यारी ऑटो चलाणिये नत्थू ताहिं बोल्ली- भाई! चांद तक ले ज्यैगा? नत्थू भी पूरा ए हाई था, बोल्या- बैठ ले पर पूरे 1200 करोड़ लागैंगे। रामप्यारी बोल्ली- क्यूं बावला बणावै है 600 करोड़ म्हं तो चंद्रयान ए पहोंच ग्या था। नत्थू समझाण के सुर म्हं बोल्या- बेब्बे! वापसी पै सवारी कोन्या मिलती, खाली आणा पड़ै है।