जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए कुछ और...
सहीराम
मौका देखा तो धर्म ध्वजाधारियों ने कहा कि देखो पहलगाम के हत्यारे आतंकवादियों ने धर्म ही पूछा, जात नहीं पूछी। माफ कीजिए, यह तो जात वालों को ही लगा होगा वरना वे उन्हें नीचा थोड़े दिखाना चाहते थे कि तुम्हेें कौन पूछ रहा है, किस गिनती में हो तुम, देखो आतंकवादी भी जात नहीं पूछते। साहित्य जगत में चचा गालिब से जुड़ा एक चुटकला बड़ा चलता है। चचा गालिब को आम बड़े पसंद थे। एक दिन वे गली में बैठे दोस्तों के साथ आम खा रहे थे कि तभी एक गधा उधर से गुजरा और वहां आम की गुठलियों को सूंघकर उसने छोड़ दिया। इस पर चचा के एक मित्र ने उन पर तंज करते हुए कहा कि देखिए हुजूर, गधे भी आम नहीं खाते। इसका जवाब चचा गालिब ने यूं दिया कि हां हुजूर, गधे ही आम नहीं खाते।
इस चुटकले का अर्थ यह कदापि नहीं है कि बस आतंकवादी ही जात नहीं पूछते, वरना पंडित, ज्ञानी, बाबू साहब वगैरह तो सब जात ही पूछते हैं। धर्म ध्वजाधारियों का अहसान सा मानते हुए जात वालों ने कहा कि चलो कम से कम आप तो जात पूछ लेते हैं। इस पर धर्म ध्वजाधारी मान मेरा अहसान अरे नादान टाइप से मगन हुए। लेकिन जात वालों ने फिर कह ही दिया कि महाराज हमारे नेता तो धर्म ध्वजा फहराते हुए और जात का विरोध करते हुए कह रहे थे कि बंटोगे तो कटोगे। एक रहोगे तो सेफ रहोगे। फिर भी सेफ क्यों ना रहे?
खैर जी, आतंकवादियों ने हत्याएं करते हुए धर्म ही पूछा, जात नहीं पूछी। वरना तो अपने यहां किसी को पानी पिलाते हुए और यहां तक कि रास्ता बताते हुए भी जात ही पूछी जाती है। बिना जात पूछे अपने यहां कोई काम न सधता। न शादी-ब्याह, न नौकरी-चाकरी। अपने यहां तो वोट भी जात पर ही मांगे जाते हैं और जात पर ही मिलते भी हैं। इसे सामाजिक समीकरण कहा जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि आतंकवादी सचमुच ही हमारे यहां के नहीं थे, पाकिस्तानी ही थे। जात जो नहीं पूछी। लेकिन अब सरकार जात पूछेगी। वह जाति जनगणना करेगी।
विपक्ष के नेता बहुत दिन से इसकी मांग कर रहे थे। बार-बार कर रहे थे और कह रहे थे कि सरकार को हमारी बात माननी ही पड़ेगी। भाजपा वाले उनका मजाक उड़ा रहे थे कि जिसकी जात का पता नहीं, वह जातिगत जनगणना की बात कर रहा है। लेकिन अब सरकार ने उन्हीं की बात मान ली। जो लोग यह कहते हैं कि सरकार बात नहीं मानती, वे गलत हैं। सरकार ने तो तीन कृषि कानून वापस लेकर किसानों की बात भी मान ली थी। इस पर भक्त लोग नाराज हो जाते हैं। तब भी नाराज थे। अब भी नाराज हैं। किसानों की तो छोड़ो नेता प्रतिपक्ष की बात कैसे मान ली। यह कोई बात हुई।