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जनरल मुनीर की डींगें और नफरत की विरासत

04:00 AM Apr 26, 2025 IST
जनरल मुनीर की डींगें और नफरत की विरासत
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बीते दिनों पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल मुनीर का वक्तव्य निश्चय ही दुर्भाग्यपूर्ण था। वे समझने में असफल रहे कि मनुष्यों की परंपराएं और रीति-रिवाज भिन्न होते हैं, लेकिन पूरी मानवता का सार तो एक ही है। पहलगाम में जो बहुत बड़ी दरिंदगी हुई है वह मानवता को शर्मसार करती है। दरअसल, मानवता हमारे द्वारा खींची गयी रेखाओं पर नहीं, बल्कि मानवीय संबंधों के पुलों पर टिकी है।

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लेफ्टि. जन. एसएस मेहता (अ.प्रा.)

कोविड-19 महामारी द्वारा कहर बरपाये जाने के बाद, और जलवायु परिवर्तन एवं भू-राजनीतिक टकरावों के कारण बनी उथल-पुथल वाले वैश्विक परिदृश्य के बीच, साल 2023 में भारत की मेजबानी में आयोजित किये गये जी-20 शिखर सम्मेलन में आपसी समन्वय बनाने का एक पवित्र आह्वान उभरा था : ‘एक पृथ्वी। एक परिवार। एक भविष्य’। इस पवित्र आह्वान की गूंज दुनिया भर में हुई। तब ऐसा लग रहा था कि अब तो रार पैदा करने वाले ‘उपदेश’ किसी अलग ही किस्म के प्राणी का काम होगा। जैसा कि अब हमने देख लिया है, एक जनरल असीम मुनीर नामक शख्स के रूप में उसे सामने आने में ज्यादा वक्त नहीं लगा।
और फिर भी, पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने बीते वक्त की बातों को याद दिलाते हुए, निश्चित तौर पर ठीक यही काम किया है। जिसके तहत कुछेक दिन पहले ही अत्यंत निश्चितता के साथ, उन्होंने दावा किया कि ‘हमारी महत्वाकांक्षाएं, परंपराएं, रीति-रिवाज हिंदुओं से अलग हैं’ और इस अंतर को आने वाली पीढ़ियाें को पक्के तौर पर अपने दिमाग में गहरे तक समा कर रखना चाहिये।
जो बात वे समझने में असफल रहे - या शायद वे इस बात को स्वीकार करने से डरते भी हैं - वो यह है कि भले ही मनुष्यों की परंपराएं और रीति-रिवाज भिन्न होते हैं, लेकिन पूरी मानवता का सार तो एक ही है। धर्म का चोला, संस्कृति का घूंघट और ताकत की वर्दी उतारकर देखा जाये, तो सामने आयेगा कि हम सब मानव एक ही प्रजाति के हैं, जिसके भीतर गरिमा की चाह , सुरक्षा की भावना और अपने अस्तित्व की सार्थकता के मामले में आकांक्ष्ााएं निस्संदेह एक समान हैं।
यहां यह बात समीचीन ही कही जाएगी कि जब कोई व्यक्ति एक प्रकार से अपने ही निहित पूर्वाग्रहों का बंधक बन जाता है, तो इसका स्वाभाविक परिणाम होता है कि वह एक नेता नहीं, बल्कि एक कैदी होता है– किसी भी प्रकार के तर्क का नहीं, बल्कि अपने खून में रच चुके मिथक का। जनरल मुनीर अपने वतन के लोगों का मार्गदर्शन कर उन्हें किसी बेहतर तरह के भविष्य में लेकर नहीं जा रहे वरन वे उन्हें इतिहास के सबसे अंधेरे कोने में धकेल रहे हैं, जहां पहचान का अहसास हथियारबंद होने से कराया गया और आपसी भिन्नता को घातकता में ढाला गया है। यदि इसमें किसी को जरा सा भी संदेह लगे, तो बस केवल हाल ही में पहलगाम में जो हुआ उसे याद कर लें, जो निस्संदेह अपने आप में बहुत बड़ी दरिंदगी है, लेकिन यह घटनाक्रम और करतूत पवित्र पुस्तक में दी गई हरेक मूल्यवान सीख की पूरी तरह से अवहेलना है।
इतिहास के सबसे हिंसक किरदारों ने मानवता को भिन्नता के आधार पर विभाजित करने वाली रेखाएं आत्मा के सबसे बड़े इस सत्य को अस्वीकार करके खींची हैं, वह यह है कि : हमारा जन्म राष्ट्रों के आधार पर नहीं होता, न ही हमारा जन्म आस्था के आधार पर होता है बल्कि हम महज मनुष्यों के रूप में ही पैदा होते हैं।
दरअसल, हमें स्पष्ट होना चाहिए : यह किसी की विरासत में निहित आस्था, संस्कृति या गौरव की आलोचना नहीं है। यह गहराई से व्यक्तिगत है, जो आम तौर पर मोहक, मानव पहचान के पहलू हैं। लेकिन वर्दीधारी जब इनको हांककर, आपस में बांटकर, एक-दूसरे पर स्थाई तौर पर शक करने या ‘हमारा-तुम्हारा’ वाली अपनी मनमानी लकीरों को न्यायोचित बना देते हैं – तब वे परंपरा के वाहक न होकर, जुल्म ढहाने के औजार बन जाते हैं। ऐसा करवाने वाले शख्स के वर्दी, ब्यानबाजी, पूर्वाभ्यासित दर्प को उतारकर देखें - तो आप एक वह व्यक्ति पाएंगे, जिसे अपने खुद के भ्रम से मुक्त होने से डर लगता है।
इस उपमहाद्वीप ने विगत में इस तरह के भ्रमों की कीमत बहुत अधिक खून बहाकर चुकाई है। देश के विभाजन ने परिवार, दोस्ती और सदियों से कायम रहे साझा अस्तित्व के टुकड़े ही कर दिए। साल 2025 में किसी शख्स के द्वारा ऐसे ‘तर्क’ को हवा देना न केवल बेहद गैर-जिम्मेवाराना है - बल्कि खतरनाक भी है। जनरल मुनीर के बोल महज पुराने युग के नहीं हैं, वे तो उस तरक्की को मटियामेट करने वाले हैं, जिसके वास्ते लाखों लोगों ने संघर्ष किया– जब तक कि यह एक और विभाजन करवाने के इरादे से न हो। पहला 1947 में, फिर 1971 में याह्या खान और पूर्वी पाकिस्तान वाला, और अब 2025 में? ईश्वर ही जानता है कि उन्हें अपने मन में किस लक्ष्य पर यकीन है, जिसकी वह कल्पना कर रहे हैं कहीं वह विभाजन की हैट-ट्रिक बन जाए। उन्हें यकीन है कि वे सही राह पर हैं।
पेंटागन के पूर्व अधिकारी माइकल रुबिन ने पहलगाम का जिक्र करते हुए एक लोकोक्ति या रूपक का इस्तेमाल किया : ‘यह चौंकाने वाला था, लेकिन इसने आपको केवल यही दर्शाया है कि ‘भले ही आप सुअर को लिपस्टिक लगाकर सज़ा दें, लेकिन रहेगा सुअर का सुअर ही। यह भी कि कोई नाटक कर सकता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित नहीं करता, लेकिन वह आतंकवाद को प्रायोजित करता रहेगा, चाहे हम उसके साथ संबंध कितने भी सामान्य बनाने की कोशिश क्यूं न करें’। उन्होंने आगे कहा कि ‘ओसामा बिन लादेन और जनरल असीम मुनीर के बीच एकमात्र अंतर यह है कि लादेन गुफा में रहता था और मुनीर महल में’। रुबिन ने एएनआई से कहा, ‘इसके अलावा, दोनों एक जैसे हैं और उनका अंत भी एक जैसा होना है’। उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की।
दक्षिण एशिया के लोग मौजूदा सूरत-ए-हाल से कहीं अधिक बेहतर के हकदार हैं। उन्हें ऐसे नेता मिलने चाहिए जो विरासत में मिली नफरत को ढोने से परे देखने की हिम्मत रखते हों। ऐसे नेता जिन्हें इस चीज़ की शिनाख्त हो कि आपसी भिन्नता कोई खतरा नहीं, बल्कि ताकत है। और यह भी कि शांति अलगाव से नहीं, बल्कि आपसी समझ से बनती है। अगर किसी नेता के पास कोई योजना है, तो उसे सड़कों पर इकट्ठा होकर दुहाई डालने वाले लाखों लोगों की आवाज़ सुननी चाहिए, जिन्हें जनकल्याण पर धन लगाए जाने की बजाय उसे हथियार खरीदने और बंदूक वालों की मौज बनाने की एवज में भुगतनी पड़ रही है।
इस घड़ी को पाकिस्तान के लोगों के लिए एक आईना बनने दीजिए। हर वह नेता, हर नागरिक जिसको यह भ्रम है कि विभाजन से सुख रहेगा, उसे सनद रहे कि मानवता हमारे द्वारा खींची गई रेखाओं पर नहीं, बल्कि हमारे द्वारा बनाए गए पुलों पर टिकी है। साथ ही, एक पूर्व सैन्य अधिकारी, मेरा एक संदेश है–‘अतुल्य भारत, अजेय भारत’ है।

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लेखक पुणे इंटरनेशनल सेंटर के संस्थापक ट्रस्टी हैं।

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