जनता-संविधान के प्रति ही जवाबदेह रहे पुलिस
लोगों का कहना है कि पुलिस को सलामी में नहीं, देश और समाज की सुरक्षा और सेवा में व्यस्त रहने दीजिए। यदि वाकई जनप्रतिनिधियों का कद बढ़ाना है तो सेवा, ईमानदारी और जवाबदेही से बढ़ाइए, वर्दी के सम्मान को झुकने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
हेमंत पाल
वर्दी वाले जब किसी को सैल्यूट करते हैं, तो उसका आशय होता है सम्मान, आदर और शिष्टाचार। खासकर सैन्य और पुलिस जैसी संगठित संरचनाओं में सैल्यूट किसी के प्रति सम्मान व्यक्त करने या औपचारिकता का एक शिष्ट तरीका माना जाता है। वास्तव में यह औपचारिक अभिनंदन है, जो शिष्टाचार का पालन करने का संकेत देता है। सैल्यूट अनुशासन और आदेशों के पालन का भी प्रतीक है। यह प्रसंग इसलिए सामने आया कि मध्यप्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने अपने मातहत पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि प्रदेश के सभी विधायकों और सांसदों का सैल्यूट से अभिवादन किया जाए। जबकि, अभी तक ऐसा विशिष्ट सम्मान मुख्यमंत्री और मंत्रियों को ही दिया जाता था। लेकिन, अब सांसद और विधायक भी इस सम्मान के काबिल माने जाएंगे।
पुलिस महानिदेशक के निर्देशों के मुताबिक, किसी भी जनप्रतिनिधि के साथ शिष्ट व्यवहार में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। अगर कोई सांसद या विधायक उनसे मिलने आए, तो पुलिस अफसर प्राथमिकता के आधार पर मुलाकात कर उसका निराकरण करें। साथ ही जब किसी समस्या को लेकर सांसद या विधायक फोन करें, तो उनकी बात प्राथमिकता से सुनी जाए और उचित समाधान भी करना होगा। सांसदों और विधायकों के सम्मान को लेकर जारी निर्देश में आठ अलग-अलग परिपत्रों का भी जिक्र किया गया।
जारी किए गए निर्देशों में लिखा गया कि सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रमों या किसी भी सामान्य समारोह में पुलिस अधिकारी और कर्मचारी वर्दी में सांसदों और विधायकों को सलामी देंगे। साथ ही अधिकारी सांसदों और विधायकों के पत्रों का समय पर जवाब भी दें। जवाब वाले पत्रों पर अधिकारियों के हस्ताक्षर होने चाहिए। जब भी कोई सांसद या विधायक किसी कार्यालय में आए, तो अधिकारी को सर्वोच्च प्राथमिकता के तौर पर सांसदों और विधायकों से मिलना चाहिए। पुलिस महानिदेशक का यह आदेश ऐसी कई अप्रासंगिक बातें दर्शाता है, जो लोकतंत्र की मान्यताओं से मेल नहीं खाती। क्योंकि, इस निर्देश के सामने सरकार और जनप्रतिनिधि के बीच का फर्क ख़त्म हो जाता है। वास्तव में जन प्रतिनिधि को जनता ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर चुना है, वो सरकार नहीं है। जबकि, पुलिस प्रशासन का हिस्सा है, जिसे जबरन झुकने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
कहा गया कि यह आदेश मुख्यमंत्री से मिले निर्देश के बाद जारी किया गया। दरअसल, पुलिस अधिकारियों और विधायकों के बीच कुछ समय से तनातनी की खबरें सामने आ रही थीं। कटनी विधायक संदीप जायसवाल और एसपी अभिजीत राजन के बीच कहासुनी हुई। पिछोर से विधायक प्रीतम लोधी और मऊगंज से विधायक प्रदीप पटेल ने लगातार पुलिस के अधिकारियों की घेराबंदी की। विधायक प्रीतम लोधी ने पिछोर के एसपी पर गंभीर आरोप लगाते हुए थाने का घेराव किया और एसपी से उनकी तीखी बहस भी हुई। मऊगंज विधायक प्रदीप पटेल अपनी सुनवाई नहीं होने के चलते खुद ही थाने में गिरफ्तारी देने पहुंच गए थे। उन्होंने कहा कि अगला नंबर मेरा ही था, तो मैं गिरफ्तारी देने आ गया। नर्मदापुरम के विधायक सीताशरण शर्मा ने भी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इसी तरह पिछोर विधायक प्रीतम लोधी का शिवपुरी एसपी अमन सिंह राठौर से विवाद चल रहा है। पुलिसकर्मियों को लगातार हो रही ऐसी घटनाओं से खासी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इसके बाद से ही शिष्टाचार संबंधी मुद्दा जोर पकड़ने लगा था। पुलिस मुख्यालय तक ये मामले पहुंचे, जिसके बाद पुलिस महानिदेशक ने निर्देश जारी किया।
देखा जाए तो यह राजनीतिक दबाव का वैधानीकरण है। अब कई माफिया सरगना नेताओं के जरिये पुलिस पर ज्यादा दबाव बनाकर अपना मतलब साध सकते हैं। इससे जनता का भरोसा डगमगाएगा और पुलिस की निष्पक्षता पर भी लोगों को शक होगा। ये माना जाए या नहीं, पर सुरक्षा पंक्ति का आंतरिक अनुशासन भी खंडित और पुलिस विभाग में ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों को भी झुकना सिखाया जाएगा। निश्चित रूप से इस फैसले से अफसरशाही का मनोबल टूटेगा। दरअसल, वरिष्ठ अधिकारियों की गरिमा पद से नहीं, सच्चे कर्तव्य से बनती है, जो इस आदेश से निश्चित रूप से धूमिल होगी। यदि यह आदेश नेताओं के दबाव में लिया गया, तो स्पष्ट है कि नेताओं की मंशा पुलिस को आजाद नहीं, बल्कि सत्ता का सेवक बनाना है।
खास बात तो यह कि पूछा तक नहीं गया कि क्या सांसद और विधायक चाहते हैं कि उन्हें विशेषाधिकार के तहत पुलिस अधिकारी सलामी दें! तो क्या यह माना जाए कि ये आदेश नेताओं के अहं की तुष्टि के लिए जारी किया गया है। इस निर्णय को अलोकतांत्रिक, अहंकारपूर्ण और अपमानजनक कहने वालों की भी कमी नहीं है। लोगों का कहना है कि पुलिस को सलामी में नहीं, देश और समाज की सुरक्षा और सेवा में व्यस्त रहने दीजिए। यदि वाकई जनप्रतिनिधियों का कद बढ़ाना है तो सेवा, ईमानदारी और जवाबदेही से बढ़ाइए, वर्दी के सम्मान को झुकने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। पुलिस जब सलामी देती है, तो यह संदेश जाता है, कि वे पद के दबाव में हैं। जबकि, लोकतंत्र में पुलिस जनता और संविधान के प्रति जवाबदेह होती है, किसी विधायक या सांसद के प्रति तो शायद नहीं। लेकिन, जब निर्देश दिए गए हैं, तो पुलिस को उसका पालन तो करना ही होगा।