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छोटे-छोटे शब्दों में जीवन के बड़े बिंब

04:00 AM Feb 23, 2025 IST
छोटे छोटे शब्दों में जीवन के बड़े बिंब
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सुभाष रस्तोगी
लघुकथा के गुरु हस्ताक्षर अशोक भाटिया की अब तक सात विधाओं में 44 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। यह सत्य है कि उनके लेखन का ओढ़ना-बिछौना लघुकथा ही है। लेखक की आलोचना में ‘समकालीन हिन्दी लघुकथा’ ऐतिहासिक पर्यवेक्षक से संबद्ध उनकी एक शोधपरक कृति है। उनका लघुकथा-संग्रह ‘अंधेरे में आंख’ मराठी, तमिल और अंग्रेजी में भी प्रकाशित हो चुका है।
अशोक भाटिया के सद्यः प्रकाशित तीसरे लघुकथा संग्रह ‘सूत्रधार’ में कुल 18 लघुकथाएं संगृहीत हैं, जो समकालीन जीवन के विद्रूप और विसंगतियों के आईने के रूप में सामने आई हैं। इन लघुकथाओं की यह खासियत है कि ‘इनमें नारी-पुरुष, गरीब- अमीर, अगड़ा-पिछड़ा, इतिहास-वर्तमान, वैज्ञानिक, विकास और सांस्कृतिक अन्तःप्रवाह के द्वंद्वात्मक संघर्ष जीवन के यथार्थ परिदृश्य बन गए हैं।’ इन लघुकथाओं से लेखक की समतावादी दृष्टि उभरकर सामने आई है—जहां रिश्ते परिवार में विभेदक नहीं होते, बल्कि रिश्तों के ऐसे परिपूरक छोर होते हैं, जिन्हें परिवार की व्यापक परिधि में समेटा जा सकता है।
‘देश’ शीर्षक लघुकथा में दिल्ली की एक लड़की के साथ हुई दरिंदगी को लघुकथा के विन्यास में ढालने का प्रयास किया गया है और उसे एक वृद्धा की बीमारी से जोड़कर जो विचारोत्तेजक सवाल उठाया गया है, वह काबिलेगौर है: ‘क्या इसका कोई पक्का इलाज है?’ ‘स्त्री कुछ नहीं करती’ लेखक की सपाट शैली की सीधे पाठक की चेतना पर दस्तक देती है। ‘पहचान’ लघुकथा भारतीय जातीय व्यवस्था के कोढ़ को जैसे बेपर्दा कर देती है। ‘नमस्ते की वापसी’ इस सत्य की तर्जुमानी के रूप में सामने आती है कि बराबरी और पड़ोस के मकान के जर्जर होने पर नमस्ते का स्वरूप भी मरियल हो जाता है, जबकि शानदार मकान के सामने गाड़ी खड़ी होने की स्थिति में नमस्ते का स्वरूप भी एकदम कड़क हो जाता है। ‘आत्मालाप’ एक वृद्धा के निपट एकाकीपन पर केंद्रित लघुकथा है, जिसमें वृद्धा स्वयं से ही संवाद करती है। बुढ़ापे के सारे कष्टों के बावजूद वह इस कमरे को इसलिए छोड़ना नहीं चाहती, क्योंकि इस कमरे से बाथरूम जुड़ा हुआ है और उसे बार-बार बाथरूम जाना पड़ता है और जाली के दरवाजे के पीछे लोग आते-जाते दिखाई पड़ते हैं।
‘युगमार्ग’, ‘लोक और तंत्र’, ‘सूत्रधार’, ‘धंधा’, ‘शिव साईं’, ‘मां-बेटा संवाद’, ‘बेटी बड़ी हो गई है’, ‘तुरुप का पता’, ‘पार्टी लाइन’, ‘दानी’ और ‘धर्म और रोटी’ अशोक भाटिया के सद्यः प्रकाशित लघुकथा-संग्रह ‘सूत्रधार’ की कुछ अन्य महत्वपूर्ण लघुकथाएं हैं, जिनमें वे अपने अनुभव-संसार से प्रतिबद्ध लेखक के रूप में सामने आए हैं। लघुकथाओं के कथा-विन्यास के प्रति वे बहुत सचेत हैं। इसीलिए उनकी लघुकथाओं में भावनात्मक संवेदनशीलता सचेत कथा-निर्माण में ढलकर सामने आती है। छोटे-छोटे शब्द-बिंबों से जीवन का बड़ा बिंब खड़ा करने में निश्चय ही अशोक भाटिया को महारत हासिल है।

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पुस्तक : सूत्रधार लेखक : अशोक भाटिया प्रकाशक : किताब वाले, नयी दिल्ली पृष्ठ : 136 मूल्य : रु. 400.

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