घर-बाहर सजगता से करें बच्चों की सुरक्षा
घर हो या बाहर, बड़ी संख्या में बच्चों से कई तरह के हिंसक व्यवहार के मामले सामने आते हैं। कई बार पैरेंट्स भी दोषी पाये जाते हैं। लड़कियों और लड़कों दोनों का घरेलू शोषण, यौन शोषण, तस्करी, ऑनलाइन हिंसा व बाल मजदूरी के रूप में शोषण होता है। इसका उनके विकास पर दीर्घावधि प्रभाव पड़ता है, वे मानसिक, शारीरिक और सामाजिक तौर पर कमजोर पड़ जाते हैं। भारतीय कानून बाल शोषण के सभी रूपों के प्रति सुरक्षा प्रदान करता है।
अलका ‘सोनी’
हंसते-खेलते बच्चे हमारे भविष्य होते हैं। लेकिन उनकी इस हंसी को ग्रहण लगाती है उनके प्रति हो रही शारीरिक और मानसिक हिंसा। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के आधे से अधिक बच्चों को गंभीर हिंसा का शिकार होना पड़ता है। इनमें से 64 फीसदी बच्चे दक्षिण एशिया के हैं। जबकि हर बच्चे को हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार से सुरक्षित रहने का अधिकार है। लेकिन कई मामलों में तो बाल हिंसा की शिकायत ही दर्ज नहीं होती और दोषियों को सजा भी नहीं मिल पाती। बच्चों के साथ हिंसा कहीं भी और किसी भी तरह से हो सकती है। घर, स्कूल, और बाल देखभाल केंद्र पर अक्सर परिचित लोग ही बच्चों से हिंसा करते हैं। भारत में लड़कियों और लड़कों दोनों को ही घरेलू शोषण, बाल यौन शोषण, तस्करी, ऑनलाइन हिंसा, बाल मजदूरी और धमकी का सामना करना पड़ता है। शोषण का बच्चों के जीवन पर दीर्घावधि प्रभाव पड़ता है। बच्चे मानसिक, शारीरिक और सामाजिक तौर पर कमजोर पड़ते जाते हैं। कई मामलों में तो परिजन बाल हिंसा की रिपोर्ट देने में भी हिचकिचाते हैं। ऐसे में हिंसा का सामना करने वाले बच्चों का सही आंकड़ा पता नहीं चल पाता। साथ ही इन अपराधों की जांच कम हो पाती है। यह सब अगर सामाजिक रूप से कहीं हो तो माता-पिता बच्चे की सुरक्षा करते हैं। लेकिन अफ़सोस तब होता है, जब यही अत्याचार बच्चों के साथ स्वयं उनके अपने पैरेंट्स ही करते हैं और बच्चे कुछ कर ही नहीं पाते, सिवाय सहने के। ऐसे व्यवहार की समय रहते रोकथाम जरूरी है।
शारीरिक दंड यानी पिटाई
बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए माता-पिता द्वारा उनकी पिटाई किया जाना सामान्य बात है। लेकिन कभी-कभी यह हिंसक हो जाता है। आए दिन इस तरह की घटनाएं आसपास होती हैं व मीडिया में भी पढ़ते-देखते हैं। जैसे कि एक-दूसरे का ग़ुस्सा बच्चों पर उतार देना, पिता द्वारा नशे में पिटाई। माता या पिता छोटी-छोटी बात पर बच्चों की भयंकर पिटाई कर देते हैं। बाथरूम या अंधेरे कमरे में बंद कर देना, भूखा रखना आदि तरीकों से भी पैरेंट्स बच्चों को शारीरिक दंड देते हैं। शारीरिक दंड बच्चे के विकास को प्रभावित करता है, उसक भीतर क्रोध उत्पन्न करता है जिससे उसका व्यवहार उग्र हो जाता है। ऐसे बच्चों में आत्मविश्वा्स की कमी आती है।
मानसिक शोषण किया जाना
कई बार माता-पिता अपने बच्चों को, ‘तुम बेवकूफ़ हो, किसी लायक नहीं हो, तुम ज़िंदगी में कुछ नहीं कर सकते’- ऐसे ही कुछ वाक्य बोल देते हैं। लेकिन वो यह नहीं समझते कि इनका असर दूरगामी होता है और बच्चे का आत्मविश्वा स कम होने लगता हैं। पैरेंट्स अनजाने में ही ऐसी बहुत बातें बच्चों को बोल देते हैं व ऐसे व्यवहार कर देते हैं, जो उन्हें मानसिक रूप से परेशान करता है। दूसरे बच्चों व भाई-बहन से तुलना करना, दूसरों के सामने शर्मिंदा करना आदि उनके विकास में बाधा डालते हैं।
अपमान है अनुचित व्यवहार
प्रायः लोग बच्चों के सम्मान के प्रति सजग नहीं होते। बच्चे से कोई ग़लती हो जाने पर उसे सबके सामने डांटना बच्चे को सबसे ज़्यादा अपमानित करता है। यहां तक कि बहनों या भाइयों में कोई ज़्यादा सुंदर, गोरा और योग्य है, तो उसे हमेशा प्राथमिकता देना, साथ में ले जाना, उसी के गुणों का बखान करना, दूसरे बच्चे को हीनभावना से भरता है। ख़ुद को कमतर पाकर मन-ही-मन वह अपमानित महसूस करता रहता है। यह उसके संपूर्ण विकास पर बुरा प्रभाव डालता है।
उपेक्षित व्यवहार
कोई भी मां-बाप बच्चों की उपेक्षा जानबूझकर नहीं करते। लेकिन घर की परिस्थितियां, जैसे- वित्तीय कठिनाइयां, पति-पत्नी के बीच पारस्परिक कटु संबध, तलाक, पति या पत्नी की मृत्यु या अन्य तरह की कठिनाइयां, जैसे अनेक कारण बच्चे की उपेक्षा का कारण बनते हैं। इसका बच्चे पर गंभीर नकारात्मक असर पड़ता है। उपेक्षित परवरिश बच्चे पर बुरा प्रभाव डालती है। अगर घर पर उनके साथ हमेशा उपेक्षित व्यवहार किया जाता है, तो दूसरों को अनदेखा करना बच्चे के लिए स्वीकार्य सामाजिक व्यवहार का हिस्सा बन जाता है।
बढ़ती बाल यौन हिंसा
मौजूदा क़ानूनी प्रावधान पॉक्सो के अनुसार, ‘बच्चे को ग़लत तरीक़े से छूना, उसके सामने ग़लत हरकतें करना और उसे अश्लील चीज़ें दिखाना-सुनाना भी यौन हिंसा के दायरे में आता है।’ ये दुर्भाग्य की बात है कि बच्चे के साथ ये कहीं भी हो सकता हैं। घर, स्कूल, पास-पड़ोस आदि और ऐसी घटनाओं को अंजाम देनेवाले हमेशा परिवार के क़रीबी होते हैं। जिनका आना-जाना घर में बना रहता है। घर के बड़े भी उन पर विश्वास करते हैं। वे बच्चे को उनके पास छोड़ देते हैं। आजकल बच्चों को घरेलू सहायकों के सहारे बहुत छोड़ा जा रहा है। माता-पिता व परिजनों का कर्तव्य है कि वे बच्चों की परवरिश व सुरक्षा को हल्के में न लें। उनके साथ घर में या बाहर शारीरिक-मानसिक शोषण की कोई घटना नहीं हो इसका भी प्रयास करना चाहिए। बच्चे अगर किसी के बारे में कुछ बताएं तो उन्हें पूरे ध्यान से सुनना चाहिए। अगर आपका बच्चा किसी को लेकर असहज होता है तो उसके साथ उसे हरगिज़ न छोड़ें। जरूरत पड़ने पर कानून का सहारा लेने से न हिचकें। पोक्सो एक्ट बच्चों को शारीरिक, मौखिक, या दृश्य यौन शोषण से सुरक्षा देता है जिसमें अपराधी के लिए मृत्युदंड सहित अन्य कठोर सज़ा का प्रावधान है।