For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

गहराई का ज्ञान

04:00 AM Apr 08, 2025 IST
गहराई का ज्ञान
Advertisement

एक बार एक व्यक्ति स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास जाकर कहने लगा कि हमारा धर्म आपके धर्म से श्रेष्ठ है। साथ ही पूछा आपका धर्म किस आधार पर श्रेष्ठ है। परमहंस जी मुस्कराए और बोले, ‘एक बार सागर का एक मेढक अचानक कुएं में गिर गया। उसे देखकर कुएं का मेढक बोला तुम बहुत बड़े कुएं में आ गए हो। इसकी लंबाई, चौड़ाई और गहराई को मैं जानता हूं। क्या तुम जानते हो।’ समुद्री मेढक ने कहा, ‘मैं सागर से आया हूं क्या तुम सागर की लंबाई-चौड़ाई से परिचित हो।’ कुएं के मेढक ने कहा, ‘कुएं की लंबाई-चौड़ाई में मेरी दो-तीन छलांग के बराबर है, समुद्र की ज्यादा से ज्यादा छह-सात छलांग के बराबर होगी।’ समुद्री मेढक ने कहा, ‘तुम जीवन भर इस कुएं में रहे हो। सागर की अथाह लंबाई, चौड़ाई और गहराई की कल्पना करना तुम्हारे लिये संभव नहीं है। लाखों कुएं उसका मुकाबला नहीं कर सकते। मैं अनेक वर्ष समुद्र में रहकर उसकी ऊंचाई, गहराई व चौड़ाई का पता नहीं लगा सका।’ स्वामी परमहंस ने कहा कि इस कथा का सार यह है कि लोग अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने के दुराग्रह में जी रहे हैं। धर्म की श्रेष्ठता के रत्न को कोई व्यक्ति धर्म सागर की गहराई में उतरकर ही हासिल कर सकता है।

Advertisement

प्रस्तुति : डॉ. मधुसूदन शर्मा

Advertisement
Advertisement
Advertisement