क्लासिक फिल्मों में होली गीतों की रंगत
क्लासिक फिल्मों के होली गीत आज भी इस पर्व के मौके पर गूंजते हैं। लेकिन आजकल फिल्मों में होली गीतों को आइटम के तौर पर नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में वे श्रोताओं पर प्रभाव नहीं छोड़ पाते। सीक्वेंस की तरह गाने होते हैं व प्रस्तुति कमजोर। पहले फिल्मांकन के दौरान फिल्मकार के जेहन में लोकप्रियता का एंगल रहता था।
असीम चक्रवर्ती
हिंदी फिल्मों का एक दौर ऐसा भी था, जब कई फिल्मों में सिचुएशन बेस्ड होली के गानों को प्रमुखता से स्थान दिया जाता था। निर्माता-निर्देशक ऐसे गानों को भी एक आइटम के तौर पर इस्तेमाल करते थे। महबूब खान की ‘आन’ से लेकर रमेश सिप्पी की ‘शोले’ तक ऐसी कई फिल्मों के उदाहरण हैं। आज ऐसे मिसालें कम ही देखने-सुनने को मिलती हैं। संयोग से ऐसी कोई फिल्म आ भी जाती है, तो उसके होली गानों की न कोई चर्चा होती है, और न ही वह ज्यादा बजते हैं।
अप्रभावी बने नए उदाहरण
पिछले दो साल के दौरान प्रदर्शित कुछ फिल्मों की बात करें, औरों में कहां दम था, वेदा, आजाद, नेटफ्लिक्स की महाराज जैसी कई नई फिल्मों में होली गीतों का फिल्मांकन किया गया। इनके फिल्मांकन में काफी पैसा भी खर्च किया गया, मगर कमजोर प्रस्तुति और गीतों के चलते ये गाने प्रभावित नहीं कर पाए। वैसे ‘औरों में कहा दम था ’ में होली के दृश्यों को निर्देशक नीरज पांडे ने फिल्मी जोड़ी अजय देवगन-तब्बू पर कोई डांस सीक्वेंस न फिल्माकर उन्हें महज एक मोंटाज में होली खेलते हुए दिखाया था। बस, इस दौरान पार्श्व में सिर्फ एक गीत बजता रहा है। आलोचकों का मानना है कि अब पहले की तरह होली गीत किसी आइटम की तरह नहीं आते हैं। महज एक सीक्वेंस की तरह इनका इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए श्रोताओं-दर्शकों पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। न ही इन फिल्मों के होली गीत बजते हुए सुनाई पड़ते हैं। कुछ माह पहले रिलीज जॉन अब्राहम की फिल्म ‘वेदा ’ का होली गीत ‘होलियाना’ को बजते हुए नहीं सुना गया।
याद आती हैं ओल्ड क्लासिक फिल्में
आन, मदर इंडिया, कोहिनूर, दो दिल, नवरंग, फागुन, उपकार, जख्मी, कटी पतंग, नमक हराम, शोले, सिलसिला, बागबान, नदिया के पार, वक्त आदि ऐसी कुछ ओल्ड क्लासिक फिल्मों के होली गीत हैं, जिनकी गूंज आज भी होली से जुड़े सभा-समारोहों में होती रहती है जाहिर है इनके साथ छोटी-बड़ी दिलचस्प घटनाएं भी स्वाभाविक तौर पर जुड़ जाती थीं। अब जैसे कि फिल्म आन के एक फिल्मी गीत ‘खेलो रंग हमारे संग’ के कम्पोजीशन में आठ दिन लगे थे। क्योंकि फिल्म निर्देशक महबूब खान इसकी सुर रचना में भरपूर मस्ती चाहते थे। संगीतकार नौशाद और गीतकार शकील बदायूंनी ने धैर्यपूर्वक उनका मनमुताबिक गाना बनाया। फिल्मांकन में 10 दिनों का वक्त लगा था। इसी तरह कालजयी फिल्म ‘मदर इंडिया’ के होली गीत ‘होली आई रे कन्हाई...’ के फिल्मांकन में महबूब खान ने बीस दिन का समय लिया था। गानों के फिल्मांकन के दौरान ही फिल्मकार इनकी लोकप्रियता को अच्छी तरह पकड़ने की कोशिश करते थे। जैसे कि हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘दो दिल’ के एक गाने की धुन ‘बम...बम भोले... ’ तो तीन दिन में ही कैफी आजमी और हेमंत कुमार ने तैयार कर दी थी, मगर इसकी शूटिंग पूरे सात दिन चली थी। इन फिल्मों के होली गीत आज भी सजग सिने रसिकों के जेहन में मौजूद हैं। इसके बाद के वर्षों में आई कुछ फिल्मों सिलसिला, बागबान, ये जवानी है दीवानी, नदिया के पार जैसी फिल्मों के होली गीत आज भी होली पर खूब बजते हैं जैसे जोगी जी धीरे...धीरे, बलम पिचकारी, रंग बरसे..., होली खेले रघुवीरा... आदि।
नए सितारों की बेरुखी
नए दौर के अभिनेताओं में रणबीर कपूर, रणवीर सिंह, विकी कौशल, कार्तिक आर्यन जैसे कुछेक हीरो ही होली गीत में रुचि दिखाते हैं। जहां तक रणबीर कपूर का सवाल है, ‘ये जवानी है दीवानी ’ के गाने ‘बलम पिचकारी ’ की शूटिंग में उनका विशेष योगदान था। अमिताभ बच्चन ने ऐसे गीतों के फिल्मांकन में बिल्कुल जीवंत रंग दिया था। यश चोपड़ा की ‘सिलसिला’ में संजीव कुमार और रेखा के साथ उनकी शानदार प्रस्तुति आज कई यादें ताजा कर देती है। ‘शोले’ के घर-घर बजने वाले गाने ‘होली के दिन...’ की शूटिंग निर्देशक रमेश सिप्पी ने सात दिनों तक की थी।
बजट की बात बेमानी
जब भी गाने पूरी संजीदगी के साथ आते हैं, उनके पीछे निर्माता की दरियादिली खुलकर सामने आती है। वह चाहे छोटा हो या बड़ा, वह ऐसे गानों की शूटिंग का बजट काफी ज्यादा रखता है। जहां तक बड़े निर्माता का सवाल है, सिर्फ सिप्पी ही नहीं, यश चोपड़ा, संजय लीला भंसाली, करण जौहर, बीआर चोपड़ा आदि बजट को ऐसी फिल्मों की बड़ी बाधा नहीं मानते हैं आज यदि हिंदी फिल्मों में होली गीत न के बराबर आ रहे हैं, तो इसके लिए हमारी निजी जीवन में आया बदलाव भी है। देश के विभिन्न प्रांतों में होली अपने पुराने अंदाज में मनाई जा रही है, पर बॉलीवुड अपने अंदाज में ऐसे दृश्यों को अपने तरीके से रखना चाहता है, जो आम दर्शकों को पसंद नहीं आते।