क्या अभिनय को अलविदा कहेंगे अमिताभ?
बॉलीवुड में अमिताभ बच्चन के अभिनय की शुरुआत धीमी ही रही। कुछ फ्लॉप के बाद 1973 में फिल्म ‘जंजीर’ हिट हुई व फिर ‘दीवार’, ‘शोले’ आदि की सफलता ने उन्हें चमकता सितारा बना दिया- एंग्री यंगमैन जो बाद में महानायक बना। एक दौर में उनकी फिल्में नहीं चली। लेकिन उबर गये और सफलता अब तक जारी है। उनका अभिनय जनभावनाओं को प्रतिबिंबित करता है। अमिताभ एक संस्था में तब्दील हो गये हैं।
डी.जे.नंदन
बॉलीवुड के ‘शहंशाह’ अमिताभ बच्चन जिस तरह आजकल अपनी ब्लॉग राइटिंग में अपने अभिनय कैरियर को विराम देने के संकेत कर रहे हैं, अगर वह सही है तो उनका अभिनय से रिटायर होना एक युग के अंत की तरह होगा। भारतीय सिनेमा के इतिहास में यह एक ऐसा समय होगा, जब हम पीछे मुड़कर ऐसे कलाकार की ओर देखेंगे, जिसने पर्दे के पार जाकर सिनेमा को जनता की चेतना से जोड़ा है। दरअसल, 83 वर्षीय अमिताभ बच्चन की अभिनय यात्रा केवल फिल्मों तक ही सीमित नहीं रही, यह भारतीय समाज, राजनीति और जनभावनाओं की बदलती धारा का दर्पण रही है। अपनी 55 वर्ष की यात्रा में वह सिर्फ एक अभिनेता नहीं बल्कि बॉलीवुड की एक संस्था में तब्दील हो गये हैं।
खामोश शुरुआत, बुलंदी की ओर
अमिताभ बच्चन ने साल 1969 में फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ से अपने कैरियर की शुरुआत की थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर पायी थी और इसके बाद आयी उनकी आधा दर्जन फिल्में भी कुछ खास नहीं कर पायीं। लेकिन फिर 1973 में अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘जंजीर’ आयी और यहां से इतिहास बन गया। बॉलीवुड में एक एंग्री यंगमैन पैदा हुआ, जो आगे चलकर मायानगरी का शहंशाह बना। अमिताभ बच्चन की सफलता का दौर वह था, जब भारत में बेरोजगारी और सामाजिक असंतोष ने सिर उठा रखा था। अमिताभ के किरदार इन सभी समस्याओं की मुखर आवाज बन गये। अमिताभ बच्चन के अलग-अलग किरदारों ने युवाओं की आकांक्षाओं को बखूबी पर्दे पर उतारा।
..और फिर बने सदी के महानायक
1980 के दशक तक आते आते अमिताभ बच्चन केवल बॉलीवुड के सुपरस्टार ही नहीं रहे बल्कि सदी के महानायक बन गये। उनकी लोकप्रियता का आलम यह हो चुका था कि फिल्म ‘कुली’ की शूटिंग के दौरान वह घायल हो गये तो पूरा देश उनकी सेहत के लिए प्रार्थना में जुट गया। यह लोगों का उनके प्रति भावनात्मक लगाव था। अमिताभ बच्चन की अभिनय क्षमता, उनकी संवाद अदायगी, उनके चेहरे के सम्पूर्ण भाव, अभिव्यक्ति और बॉडी लैंग्वेज, इन सब चीजों ने मिलकर उन्हें एक महानायक बना दिया। उनकी इसी खासियत ने ‘दीवार’, ‘शोले’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘त्रिशूल’, ‘दान’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘कालिया’ और ‘सत्ते पे सत्ता’ जैसी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा का चमकता सितारा बना दिया। इन सभी फिल्मों में उनके बहुआयामी किरदार थे -कभी विद्रोही, कभी दुखी प्रेमी, कभी दो व्यक्तित्व के बीच जद्दोजहद, तो कभी कॉमेडी से हंसाने वाले।
फिर पहुंचे राजनीति में
1984 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के कारण वे सत्ता के नजदीक आने लगे व लोकसभा चुनाव में अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से सांसद बने। लेकिन जल्द ही राजनीति से उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
असफलता का दौर
1990 के दशक में उनकी लगातार कई फिल्में फ्लॉप हो गईं और उनकी फिल्म निर्माण कंपनी एबीसी भी घाटे में डूब गई। फिर उनकी प्रोफेशनल लाइफ व आर्थिक हैसियत में सुधार साल 2000 में ‘कौन बनेगा करोड़पति’ टेलीविजन कार्यक्रम से हुआ। उन्होंने अपने कर्जों को उतारा। इसके बाद फिर से इतनी ज्यादा लोकप्रियता हासिल कर ली, कि ‘मोहब्बतें’, ‘बागवान’, ‘ब्लैक’, ‘पा’ और ‘पीकू’ जैसी फिल्मों ने कमाल कर दिया।
इन खूबियों के चलते खास हैं अमिताभ
अमिताभ अपने अभिनय की विविधता, गंभीर गरजती आवाज, हारकर जीत की तरफ लौटने के जज्बे और आधुनिकता के साथ परंपरा और संस्कारों के साथ चलने के तौर-तरीकों के लिए खास स्थान रखते हैं। अमिताभ जितना अच्छा गंभीर अभिनय करते हैं, उतना ही शानदार हास्य, रोमांटिक अभिनय भी कर लेते हैं। वो जितने बेहतर नौजवान लगे हैं, उतने ही ग्रेसफुल बूढ़े भी लगे हैं। हर तरह के किरदार में जान डाल देते हैं। जितने बढ़िया अंग्रेजी बोलते हैं, उतनी ही बहती हुई हिंदी।
बॉलीवुड के इतिहास में कई महान कलाकार हुए हैं। अगर राजकपूर ने आम लोगों के दिल को छुआ, तो दिलीप कुमार ने अभिनय की प्रतिभा को गहराई दी। शाहरूख खान ने मायानगरी में रोमांस को नये ढंग से परिभाषित किया, लेकिन अमिताभ बच्चन में ये सारी खूबियां एक साथ थीं। उन्होंने बेहद व्यापक, सामाजिक और नैतिक फलक को अपने अभिनय के जरिये प्रतिष्ठित किया। उन्होंने अपनी एक संवेदनशील, जिम्मेदार और अनुशासित महानायक की भी छवि बनायी। वे देश के हर वर्ग के दर्शकों को एक जैसे प्रभावित करते हैं। इसलिए अमिताभ बच्चन जब अभिनय से विदा लेंगे तो उनके साथ ही अभिनय और सिनेमाई संवेदना के एक युग का अंत हो जायेगा। -इ.रि.सें.