केवल नदी नहीं इतिहास और भूगोल का संवाद
चिनाब नदी भले ही आकार में गंगा या ब्रह्मपुत्र जैसी विशाल न हो, परंतु राजनीतिक, भौगोलिक और कूटनीतिक दृष्टि से इसकी महत्ता अत्यधिक है। हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसके कूटनीतिक महत्व को स्पष्ट रूप से देखा जा चुका है।
वीना गौतम
नदियां जीवनदायिनी होती हैं। मानव सभ्यता का उद्गम नदी किनारे ही हुआ और नदियों के तट पर ही दुनिया की सभी प्रमुख सभ्यताएं और संस्कृतियां विकसित हुईं। धरती पर नदियों के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या और नदियों के प्रति आम जन की उदासीनता के चलते आज न केवल जल संकट गहराया है, बल्कि नदियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे में नदियों का संरक्षण आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य हो गया है। साथ ही, हमें अपनी नई पीढ़ियों को भी इनके प्रति संवेदनशील बनाना होगा, ताकि इनका अस्तित्व बना रहे और मानव सभ्यता एवं संस्कृति निरंतर फले-फूले।
चिनाब नदी भले ही आकार में गंगा या ब्रह्मपुत्र जैसी विशाल न हो, परंतु राजनीतिक, भौगोलिक और कूटनीतिक दृष्टि से इसकी महत्ता अत्यधिक है। हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इसके कूटनीतिक महत्व को स्पष्ट रूप से देखा जा चुका है। यह भारत-पाक संबंधों की संवेदनशील कड़ी है। इसके अलावा चिनाब नदी भारत की संस्कृति, अर्थव्यवस्था, राजनीति और पारिस्थितिकी में भी अहम भूमिका निभाती है।
यह नदी हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति क्षेत्र में स्थित दो प्रमुख जलधाराओं— चंद्रा और भागा — के संगम से उत्पन्न होती है। चिनाब की कुल लंबाई 974 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 486 किलोमीटर यह भारत में बहती है। आगे चलकर यह जम्मू-कश्मीर के जम्मू क्षेत्र से होती हुई पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। यदि केवल लंबाई, जलग्रहण क्षेत्र और प्रभाव क्षेत्र को आधार माना जाए, तो गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, गोदावरी, नर्मदा, यमुना और सतलुज जैसी नदियां चिनाब से ऊपर मानी जाएंगी। फिर भी, चिनाब सिंधु नदी प्रणाली की पांच प्रमुख सहायक नदियों में से एक है — अन्य चार हैं : झेलम, सतलुज, रावी और ब्यास। रणनीतिक दृष्टि से चिनाब भारत की शीर्ष 10 नदियों में शुमार होती है, क्योंकि यह भारत-पाक जल संधि का केंद्रीय बिंदु है।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर हुए थे। इसके अंतर्गत तीन पूर्वी नदियां —रावी, ब्यास और सतलुज— भारत को मिलीं, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब पर पाकिस्तान का अधिकार मान्य किया गया, किंतु भारत को इनका सीमित उपयोग— जैसे सिंचाई, बिजली उत्पादन, और बाढ़ नियंत्रण — की अनुमति दी गई।
इस संधि के तहत चिनाब नदी पाकिस्तान के लिए एक जीवनरेखा जैसी है, क्योंकि पंजाब प्रांत का एक बड़ा भाग कृषि के लिए इसी नदी पर निर्भर है। भारत ने चिनाब नदी पर कुछ प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित की हैं, जैसे : बगलिहार परियोजना — 450 मेगावाट, जम्मू, पकलडुल परियोजना — 1000 मेगावाट, किश्तवाड़, रातले परियोजना — 850 मेगावाट।
इन परियोजनाओं पर पाकिस्तान ने कई बार आपत्ति जताई है और मामला विश्व बैंक तक पहुंच चुका है। विशेष रूप से बगलिहार परियोजना को लेकर 2005 में विवाद हुआ, जिसे तटस्थ विशेषज्ञ ने भारत के पक्ष में निपटाया था।
चिनाब घाटी भौगोलिक, पारिस्थितिकीय महत्व और जैव विविधता के लिए जानी जाती है। यहां दुर्लभ पर्वतीय वनस्पतियां और जीव-जंतु पाए जाते हैं। यह क्षेत्र हिमालयन इकोज़ोन का हिस्सा है और कई वन्यजीव अभयारण्यों के समीप स्थित है। चिनाब का जलवायु और पारिस्थितिकी पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इसका प्रमुख जलस्रोत हिमनद (ग्लेशियर) हैं, जिनके पिघलने से नदी के प्रवाह में अनियमितता आती है। गर्मियों में बाढ़ और सर्दियों में जल की कमी—दोनों चिनाब घाटी में देखे जाते हैं, जिससे न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी, बल्कि मानव जीवन भी प्रभावित होता है। यही कारण है कि यहां बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं लगातार होती रहती हैं।
इस घाटी में रहने वाले अधिकांश लोग कृषि, पशुपालन अथवा जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़े हैं। चिनाब के जल से जम्मू क्षेत्र में अच्छी कृषि उपज होती है और पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित होती है। इसके जल पर आधारित परियोजनाएं रोजगार, ऊर्जा उत्पादन और स्थानीय विकास का आधार बनी हैं। स्थानीय समुदायों के लिए यह नदी जीवन रेखा है।