कूल रहने को अपनाएं मोरीता थेरेपी
समय पर ध्यान न दें तो मानसिक समस्याएं व्यक्ति के जीवन के हर पहलू को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए इनकी रोकथाम के लिए समुचित उपाय अपनाने चाहिए। जापान के साइकोथैरेपिस्ट शोमा मोरीता ने मानसिक समस्याओं के इलाज के लिए प्रभावी थेरेपी इजाद की। मोरीता थेरेपी के माध्यम से हम अपने दिमाग को संतुलित रख सकते हैं।
शिखर चंद जैन
मानसिक अस्वस्थता इस वक्त दुनिया भर के लोगों को सबसे ज्यादा परेशान करने वाली समस्या बन चुकी है। दुनिया के ज्यादातर लोग इसके शिकार हो चुके हैं। इसके कारण न सिर्फ लोगों के रिश्ते बिगड़ रहे हैं बल्कि तरह-तरह की शारीरिक समस्याएं, हार्ट डिजीज, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के कारण समय पूर्व मृत्यु और आत्महत्या के मामले भी शीर्ष पर हैं।
जापानी विद्वान की विशेष थैरेपी
समय पर ध्यान न दें तो मानसिक समस्याएं व्यक्ति को शारीरिक, आर्थिक और व्यक्तिगत रूप से पूरी तरह खोखला और बर्बाद कर देती हैं। इसलिए इनकी रोकथाम के लिए शुरू से ही समुचित उपाय अपनाने चाहिए। इस बात को बहुत पहले समझकर जापान के साइकोथैरेपिस्ट, बौद्ध चिंतक और विचारक शोमा मोरीता (1874 से 1938) ने तमाम मानसिक समस्याओं जैसे- ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर, पोस्ट ट्रामेटिक स्ट्रेस, न्यूरोसिस, अवसाद एवं अन्य के इलाज के लिए अपनी थेरेपी इजाद की जो बेहद प्रभावी साबित हुई।
दूसरी थेरेपीज़ से कैसे अलग
मानसिक समस्याओं के इलाज के लिए जहां पाश्चात्य चिकित्सकों या विशेषज्ञों की थेरेपी में मरीज की भावनाओं या अनुभूतियों को नियंत्रित करने या मॉडिफाई करने पर जोर दिया जाता है वहीं मोरीता थेरेपी में मरीजों को अपनी भावनाओं को बिना नियंत्रित किये उनके मूल स्वरूप में स्वीकृत करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। ताकि वह सही एक्शन से इमोशंस के प्रति अपनी फीलिंग को बदल सकें। साथ ही मरीज की कार्य पद्धति और एक्शन के आधार पर इसमें नई इमोशन क्रिएट करना भी सिखाया जाता है। इस थेरेपी में हमें अपनी इच्छाओं, एंग्जायटी आदि को स्वीकार करना और उन्हें नजरअंदाज करना सिखाया जाता है। शोमा मोरीता ने अपनी पुस्तक ‘मोरीता थेरेपी एंड द ट्रू नेचर ऑफ एंग्जायटी बेस्ड डिसऑर्डर’ में लिखा है कि अनुभूतियों के मामले में आपको धनी और उदार होना चाहिए।
मोरीता थेरेपी के सिद्धांत
मोरीता थेरेपी के माध्यम से हम अपने दिमाग को शांत और संतुलित रख सकते हैं। इसके लिए इसके मूल सिद्धांतों को समझना होगा।
अपनी फीलिंग को स्वीकार करें
जब हम अपने ऑब्सेसिव विचारों को कंट्रोल करने या उनसे छुटकारा पाने की कोशिश करते हैं तो उनमें और उलझ जाते हैं। अपनी फीलिंग हम क्रिएट नहीं करते बल्कि वे स्वत: ही हमारे दिमाग में आती हैं। इसलिए उन्हें स्वीकार कर लें। हां, हमें उन्हें ऑब्जर्व करना चाहिए और उनकी जानकारी भी रखनी चाहिए।
वही करें जो आपको करना चाहिए
आपको अपने अनुभव व गतिविधियों से सीख लेनी चाहिए। इस थेरेपी में अपने अनुभवों से सही-गलत का पता लगाने की सलाह दी जाती है।
जीवन का मकसद समझें
हम अपनी भावनाओं को भले नियंत्रित न कर सकें लेकिन अपने क्रियाकलापों को अपने बस में अवश्य रख सकते हैं। इसलिए हमें रोज अपने लक्ष्य और उद्देश्यों का पता होना चाहिए जब हम इनकी पूर्ति के लिए सक्रिय रहते हैं तो सहज ही व्यस्त और सामान्य रह सकते हैं।
थेरेपी के चार चरण
मोरीता थेरेपी में मरीज का इलाज 15 से 21 दिनों तक चलता है जो 4 चरणों में होता है। शुरू के तीन चरण 5 से 7 दिन के होते हैं। जिनका क्रमवार ब्योरा इस प्रकार है-
एकांतवास और विश्राम
इसमें मरीज एक कमरे में बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के रहता है। यहां तक कि टीवी, पुस्तक, मित्र ,रिश्तेदार ,परिवार के सदस्यों से भी बातचीत करने की अनुमति नहीं होती। बस मरीज और उसके विचार। सिर्फ थैरेपिस्ट ही उससे मिलता है।
लाइट ऑक्यूपेशनल थेरेपी
इसमें मरीज मौन रखकर काम करता है और अपने विचारों व अनुभूतियों को एक डायरी में लिखता है। वह कुदरत की गोद में विचरण करता है और ब्रीदिंग एक्सरसाइज करता है। क्रिएटिव और रीक्रिएटिव एक्टिविटीज में इन्वॉल्व रहता है लेकिन सिवाय थैरेपिस्ट उसे किसी से बात करने की इजाजत नहीं रहती।
ऑक्यूपेशनल थेरेपी
इस चरण में मरीज से मेहनत वाले काम कराए जाते हैं। साथ ही लेखन ,पेंटिंग व अन्य काम भी कराए जाते हैं। इस चरण में मरीज दूसरों से बात कर सकता है मगर सिर्फ उसी काम के बारे में जो वह वर्तमान में कर रहा होता है।
वास्तविक जीवन में वापसी
इस चरण में मरीज फिर से नॉर्मल सोशल लाइफ में आ जाता है। लेकिन वह मेडिटेशन और ऑक्यूपेशनल थेरेपी मेंटेन करता है।